शीला दीक्षित का जीवन परिचय
लगातार तीन लोकसभा चुनाव जीत कर देश की राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर काबिज होने वाली शीला दीक्षित का जन्म ब्रिटिश शासन काल में 21 मार्च, 1938 को कपूरथला, पंजाब में हुआ था. शीला दीक्षित की शिक्षा-दीक्षा दिल्ली में ही संपन्न हुई. इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कॉंवेंट ऑफ जीसस एण्ड मैरी से प्राप्त की. इसके बाद शीला दीक्षित ने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाऊस कॉलेज से कला में स्नातक और स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण कर वहीं से पीएचडी की उपाधि ग्रहण की. शीला दीक्षित का विवाह प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी तथा पूर्व राज्यपाल व केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री रहे श्री उमा शंकर दीक्षित के परिवार में हुआ. इनके पति स्व. श्री विनोद दीक्षित, भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य रह चुके थे.
शीला दीक्षित का व्यक्तित्व
इतने वर्षों के अनुभव के बाद शीला दीक्षित राजनीति के दांव-पेंच बहुत अच्छी तरह समझ चुकी हैं. एक बेहद कुशल राजनेत्री होने के साथ ही शीला दीक्षित कला प्रेमी भी हैं. व्यक्तिगत जीवन में आत्म-निर्भर और आत्मविश्वासी महिला हैं. लगातार तीन बार मुख्यमंत्री पद पर जीत दर्ज करना स्वयं अपने आप में एक रिकॉर्ड है, जिससे यह साफ प्रमाणित होता है कि शीला दीक्षित के व्यक्तित्व में बेजोड़ नेतृत्व क्षमता है.
शीला दीक्षित का राजनैतिक सफर
शीला दीक्षित को प्रशासन और संसदीय कार्यों का अच्छा अनुभव है. इन्होंने केन्द्रीय सरकार में 1986 से 1989 तक मंत्री पद भी ग्रहण किया था. पहले ये संसदीय कार्यों की राज्य मंत्री रहीं तथा बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री बनाई गईं. 1984 से 1989 तक शीला दीक्षित ने उत्तर प्रदेश की कन्नौज लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी किया था. संसद सदस्य रहने के अपने कार्यकाल में, इन्होंने लोक सभा की अनुमान समिति के साथ कार्य किया. इसके अलावा शीला दीक्षित ने भारतीय स्वतंत्रता की चालीसवीं वर्षगांठ की कार्यान्वयन समिति की अध्यक्षता भी की थी. दिल्ली प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष के पद पर रहते हुए शीला दीक्षित ने वर्ष 1998 में कांग्रेस को दिल्ली में जीत दिलवाई.
मुख्यमंत्री के तौर पर शीला दीक्षित का योगदान
मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने महिला उत्थान के लिए कड़े प्रयास किए हैं साथ ही महिलाओं को समाज में बराबरी का स्थान दिलवाने के लिए चलाए विभिन्न अभियानों का भी इन्होंने कुशल नेतृत्व किया है. इन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की महिला स्तर समिति में भारत का प्रतिनिधित्व भी पांच वर्षों (1984 – 89) तक किया. उत्तर प्रदेश में महिलाओं के प्रति बढ़ रही आपराधिक गतिविधियों के विरोध में शीला दीक्षित ने प्रभावकारी प्रदर्शन भी किए थे, जिसकी वजह से उन्हें अगस्त 1990 में 23 दिनों की जेल यात्रा भी करनी पड़ी. इस यात्रा में उनके साथ उनके 82 सहयोगी भी थे. उनके इस कदम का व्यापक प्रभाव पड़ा. परिणामस्वरूप उनकी गिरफ्तारी से भड़के हुए लाखों नागरिक इस अभियान से जुड़े व जेलें भरीं. वर्ष 1970 में शीला दीक्षित यंग विमन्स एसोसिएशन की अध्यक्षा भी रहीं. इस दौरान इन्होंने महिलाओं के लिए दिल्ली में दो बड़े छात्रावास खुलवाए. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुका इंदिरा गाँधी स्मारक ट्रस्ट की सचिव भी शीला दीक्षित ही हैं. यह ट्रस्ट शांति, निशस्त्रीकरण एवं विकास के लिये इंदिरा गाँधी पुरस्कार देता है व विश्वव्यापी विषयों पर सम्मेलन आयोजित करता है. इतना ही नहीं शीला दीक्षित के संरक्षण में ही इस ट्रस्ट ने एक पर्यावरण केन्द्र भी खोला है. इसके अलावा शीला दीक्षित, हस्तकला व ग्रामीण कलाकारों व कारीगरों के उत्थान में विशेष रुचि लेती हैं. ग्रामीण रंगशाला व नाट्यशालाओं का विकास, इनका विशेष कार्य रहा है. 1978 से 1984 के बीच गार्मेंट्स एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के कार्यपालक सचिव पद पर इन्होंने तैयार कपड़ा निर्यात को एक ऊंचे स्तर पर पहुंचाया.
शीला दीक्षित से जुड़े विवाद
सन 2009 में बीजेपी की कार्यकर्ता और पेशे से वकील सुनीता भारद्वाज ने उन पर यह आरोप लगाया कि केन्द्रीय सरकार द्वारा राजीव रतन आवास योजना के लिए दिए गए 3.5 करोड़ रूपयों का व्यक्तिगत प्रचार के लिए प्रयोग किया है. दिल्ली के लोकायुक्त ने राष्ट्रपति को इससे जुड़े तथ्यों की जांच करने को कहा था. दूसरा विवाद तब गर्माया जब चर्चित जेसिका लाल हत्याकांड के आरोपी मनु शर्मा को बिना किसी पुख्ता वजह के पैरोल पर 1 महीने के लिए रिहा किया गया. पैरोल अवधि के बीच मनु शर्मा का अपने दोस्तों के साथ घूमना-फिरना मीडिया की नजर में आ गया. हाल ही में वर्ष 2010 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में हुए धन का अनुचित प्रयोग और घोटालों को लेकर भी शीला दीक्षित सवालों के घेरे में आ चुकी हैं. राष्ट्रमंडल खेलों से संबंधित CAG की रिपोर्ट में भी शीला दीक्षित को क्लीन-चिट नहीं दी गई है.
शीला दीक्षित धर्म-निर्पेक्षता पर हमेशा से ही अडिग रही हैं साथ ही इन्होंने सांप्रदायिक ताकतों का भी हर स्तर पर विरोध किया है. शीला दीक्षित का मानना है कि भारत में यदि जनतंत्र को जीवित रखना है तो सही व्यवहार और धर्म-निर्पेक्षता के मानदंडों का पालन करना जीवन का एक अभिन्न अंग होना चाहिए.
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