Menu
blogid : 321 postid : 1354

हजारों जवाबों से अच्छी है ख़ामोशी मेरी

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बेहद शांत स्वभाव वाले प्रधानमंत्री हैं. इतने शांत कि वे अपने मंत्रियों पर लगने वाले आरोपों, उनके कार्यकाल में होने वाले घोटालों के मसले पर भी कुछ नहीं बोलते. मनमोहन सिंह के अनुसार “हज़ारों जवाबों से अच्छी है ख़ामोशी मेरी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखे”, लेकिन अब लगता है उनकी यह खामोशी आलाकमान को ही रास नहीं आ रही है, जिसकी वजह से कभी तथाकथित तौर पर अत्याधिक सफल कहा जाने वाला मनमोहन-सोनिया मॉडल फेल होता दिखाई दे रहा है.


लूटने का अवसर नहीं मिला इसलिए खिलाफ हैं !!


उल्लेखनीय है कि हर हाल में चुप्पी बरतने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इस बार चुप रहना भारी पड़ रहा है क्योंकि मैडम सोनिया यह चाहती हैं कि मनमोहन सिंह कोलगेट और रेलगेट जैसे बड़े आरोपों से जूझ रही सरकार को विपक्षी हमलों से बचाएं लेकिन प्रधानमंत्री इस बार भी चुप रहने को ही बेहतर विकल्प मान रहे हैं.



उल्लेखनीय है सरकार चाहती है इस बार संसद सत्र में खाद्य सुरक्षा बिल पारित हो जाए लेकिन विपक्ष ने भ्रष्टाचार के बड़े आरोपों पर सरकार द्वारा कोई कड़ी कार्यवाही ना होने के कारण संसद को ठप्प कर रखा है, वहीं दूसरी ओर कुछ कांग्रेसी भी इस बार सरकार की कार्यप्रणाली के विरोध में आवाज उठाने लगे हैं.


हम भी पाकिस्तानियों से कम नहीं


राजनीतिक गलियारों में यह बात अकसर सुनाई दे जाती है कि गंभीर और जरूरी मुद्दों पर सरकार की चुप्पी खतरनाक साबित हो सकती है. यहां तक कि कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी भी यही चाहती हैं कि मनमोहन सिंह अपना पक्ष जनता के सामने रखें लेकिन मनमोहन सिंह हैं जो अपनी आलकमान की ही बातों पर गौर ना कर आदतन फिर से चुप्पी साधकर बैठ गए हैं क्योंकि उनका मानना है कि उनकी चुप्पी से हजारों सवाल उठने से बच जाते हैं. लेकिन यहां एक मुख्य सवाल यह उठता है कि उनके चुप रहने से किसके विरुद्ध उठने वाले सवालों की आबरू ढकी रहती है? हालांकि उन्हें लगता है कि वह इसीलिए चुप रहते हैं ताकि विपक्षी दल को सवालों का सामना ना करना पड़े लेकिन इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि सवालों के घेरे में हर बार उन्हीं की सरकार फंस जाती है.


शायद पीएम इन वेटिंग बन ही जाएं प्रधानमंत्री


सोनिया गांधी चाहती हैं कि प्रधानमंत्री मीडिया के सवालों का जवाब देकर उन्हें यह साफ कर दें कि ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे वे जनता से छिपाना चाहते हैं. सोनिया गांधी तो यह भी साफ कर चुकी हैं कि उनके चुप रहने से विपक्षी दलों की आवाज और प्रखर हो जाती हैं इसीलिए अब तो मनमोहन सिंह को अपना पक्ष सामने रखना ही चाहिए लेकिन मनमोहन सिंह सोनिया गांधी की इच्छा कह लीजिए या फिर राय लेकिन इसे बिल्कुल भी महत्व नहीं दे रहे हैं.


मोदी नहीं आडवाणी पर दांव लगाने के लिए तैयार है भाजपा !!


अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर अपनी मैडम के कहने को प्रधानमंत्री क्यों नजरअंदाज कर रहे हैं? तो हम आपको बताते हैं कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है. उल्लेखनीय है कि कोलगेट मामले में सुप्रीम कोर्ट के हत्थे चढ़े कानून मंत्री और रेलगेट मामले में फंसे पवन बंसल दोनों ही प्रधानमंत्री के करीबी हैं और शायद अपने इन्हीं करीबियों की लाज रखने के लिए ही प्रधानमंत्री चुप्पी साधे बैठे हैं. वह ना तो इस मसले पर कुछ कहना चाहते हैं और ना ही आरोपों का विरोध करना चाहते हैं क्योंकि सूत्रों की मानें तो पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इन नेताओं का मजबूती से बचाव ना करने का निर्देश दिया है ताकि वह खुद ही अपना इस्तीफा सौंप दें.


रिमोट से चलने वाला खिलौना देश चला रहा है !!


अब जो भी है, किसी ने भी कुछ भी कहा हो लेकिन सच यही है कि हमारे प्रधानमंत्री इस बार फिर अपनी जुबान पर ताला लगाए बैठे हैं लेकिन इससे फायदा किसे मिल रहा है यह बात जनता तो जानती ही है.



घोटाले का माल पचाना आसान भी नहीं है

राहुल को बचाने के लिए मनमोहन की बलि ली जाएगी !!

मोदी की मंशा देश भर में दंगे फैलाने की है !!


manmohan singh, prime minister manmohan singh, rahul gandhi, राहुल गांधी, राहुल गांधी प्राइम मिनिस्टर, कांग्रेस, prime minister manmohan singh congress, sonia gandhi, congress, सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री, मनमोहन सिंह, कोलगेट, रेलगेट, coalgate, railgate, coal scam in hindi, railway bribe case.




Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh