आजकल चर्चाओं के मध्य राहुल गांधी प्रमुख रूप से नज़र आ रहे हैं. ऐसे बहुत कम ही मौके आए हैं जब राहुल गांधी(Rahul Gandhi) चर्चाओं में हों और सारी राजनीति उनके ऊपर केंद्रित हो. ऐसा ही आलम हाल ही में रामलीला मैदान(Ramlila Maidan) में देखने को मिला जब वो उत्तर प्रदेश के चुनाव में हार के बाद पहली बार जनता से रूबरू हुए. रामलीला मैदान में कांग्रेस ने अपने शक्ति प्रदर्शन के दौरान अपनी पूरी और अधूरी कामयाबियों की सूची जनता के सामने रखी. इसमें मुख्य रुप से उन बातों के ऊपर ध्यान दिया गया जो कि किसी कारणवश रुकी हुई हैं. इस मौके पर कांग्रेस के प्रमुख नेता उपस्थित थे जिनका मुख्य लक्ष्य यही था कि फिर से एक विश्वास लोगों में पैदा किया जाए जो शायद कांग्रेस खोती जा रही है.
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पूरी सभा के दौरान एक बात आम थी कि किस प्रकार आने चुनाव में फिर से एक मजबूत दावेदारी के साथ खुद को प्रस्तुत किया जाए. चर्चाओं के उपर ध्यान दें तो यह कहा जा रहा है कि राहुल गांधी कभी भी आम जनता को संबोधित नहीं कर सके हैं या कभी भी किसी मामले पर टिप्पणी करते हुए नज़र नहीं आए हैं. उन्हें अकसर चुनाव प्रचार के वक़्त किसी खेत, मेड़ या किसी के घर रोटियां खाते हुए देखा गया है. कांग्रेस के शासनकाल में इतने नए मसले सामने आए पर एक महासचिव होने पर भी उन्होंने न तो मीडिया के बात की और ना ही उस मामले की आलोचना करते ही दिखे. राहुल गांधी का यह पक्ष शायद यही जहिर करता है कि उनमें एक शासक की योग्यता नहीं है. तमाम विपक्षी पर्टियां उन पर यही चर्चा कर रही हैं. अन्ना हज़ारे से लेकर कोयला आवंटन घोटाले तक ऐसा कोई भी मामला नहीं है जिसमें यह देखा गया हो कि राहुल गांधी खुल कर कांग्रेस की तरफ से पूरे मामले पर जवाब देने के लिए आए हों.
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इस सभा में उन मुद्दों को भी उकेरा गया जो वर्तमान भारत के विकास में एक अवरोध उतपन्न कर रहे हैं. राशन से लेकर सरकारी कार्यालयों तक की संचालन विधि पर चर्चा हुई. बस अब इंतजार मात्र इस बात का है कि कब ये भाषण यथार्थ का रूप लेते हैं या यह हवाई बुलबुले की तरह कहीं विलीन हो जाते हैं. यह बात भी कहीं ना कहीं इस बात का समर्थन करती है कि प्रयोगवाद के इस दौर में एक कथन को कितना महत्व देती है यह सरकार और राहुल गांधी अपने को किस रूप में प्रस्तुत करते हैं जनता के सामने जिससे वह इस आलोचना से बच सकें कि उनमें अपने खानदान की तरह ‘शासक की योग्यता’ नहीं है.
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