हमारे देश के नेता चुनाव के मौसम गलियों में हाथ जोड़कर वोट मांगते हुए दिख जाएंगे लेकिन चुनाव जीतने के बाद उनसे मिलने के लिए आपको लाख कोशिशें करनी पड़ती है। वहीं, ऐसे बहुत कम नेता हैं, जो अपने क्षेत्र के लोगों के लिए जमीनी तौर पर कुछ कर पाते हैं। इतिहास में एक नेता ऐसी ही रही हैं, जो जनता की समस्याएं सुनने तांगे से निकला करती थीं। अरुणा आसफ अली दिल्ली की पहली महिला मेयर थीं। वह 1958 में दिल्ली की मेयर बनी थीं। आज उनका जन्मदिन है, आइए जानते हैं उनसे जुड़ी खास बातें-
अंग्रेजों के खिलाफ होने वाले आंदोलनों में लिया हिस्सा
अरुणा गांगुली ने 1928 में परिवार के विरुद्ध जाकर कांग्रेसी नेता आसफ अली से विवाह किया। उस वक्त अरुणा की उम्र 23 साल थी। शादी के बाद अरुणा पति के साथ स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में जुट गईं और जेल भी काटी। नमक सत्याग्रह के दौरान अरुणा सार्वजनिक सभाओं में सक्रिय रहीं और जुलूस निकाले। इस पर उन्हें एक साल की जेल भी हुई। यह 1930 की बात है। जब गांधी- इरविन समझौते के तहत सभी राजनीतिक बंदियों को जेल रिहा किया जा रहा था उस वक्त अरुणा जेल में ही थीं। ब्रिटिश सरकार उन्हें जेल से रिहा नहीं करना चाहती थी लेकिन जब उनके समर्थन में बड़ा आंदोलन हुआ, तो अंग्रेजों को मजबूरन उन्हें जेल से छोड़ना पड़ा। 1932 में ब्रिटिश सरकार ने अरुणा को फिर से बंदी बना लिया और तिहाड़ जेल भेज दिया। भूख हड़ताल करने पर अरुणा को अंबाला में एकांत कारावास में डाल दिया गया। इस तरह अंग्रेजों ने उन्हें काफी वक्त तक भारत के स्वतंत्रता संग्राम से दूर रखा।
1958 में बनीं दिल्ली की पहली महिला मेयर
1958 में अरुणा दिल्ली की पहली महिला मेयर बनीं। 1948 में अरुणा कांग्रेस छोड़कर सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गईं। दो साल बाद 1950 में अरुणा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य बनीं। कम्युनिस्ट पार्टी से मोह भंग होने के बाद 1956 में अरुणा ने पार्टी छोड़ दी। 1975 में अरुणा को लेनिन शांति पुरस्कार दिया गया।
तांगे पर बैठकर निकलती थीं जनता के बीच
अरुणा शहरवासियों की समस्याओं को सुनने के लिए तांगे पर ही दिल्ली घूमती थीं। इस क्रम में वो दिल्ली के ज्यादातर गली-कूचों में जाकर लोगों की समस्या सुनकर नोट किया करती थीं।…Next
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