सियासत के सिंहासन पर बैठे लोगों को अपने विरोध में उठती हर आवाज को दबाने का अधिकार शायद सत्ता में आते ही मिल जाता है. तभी तो हर वो इंसान जो उनके सिंहासन को हिलाने की कोशिश करता है उस पर उनकी गाज अपने आप ही गिर जाती है. हालिया मुद्दा उत्तर प्रदेश की एक आइएएस ऑफिसर का है जिसने रेत माफिया के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और बदले में मिला अपने पद और सेवाओं से निलंबन. दुर्गा शक्ति नागपाल नाम की इस अधिकारी ने उत्तर प्रदेश सरकार और राज्य में मौजूद माफियाओं के सामने झुकने से मना कर दिया था. लेकिन आपको बता दें कि दुर्गा शक्ति नागपाल अकेली या एकमात्र ऐसी अफसर नहीं हैं जिन्होंने सियासत की राह में मुश्किलें पैदा की, गलत नीतियों के आगे झुकने से इनकार कर दिया. हम आपको बताते हैं कि वह कौन-कौन से अधिकारी हैं जिन्होंने सत्तासीन लोगों से लोहा लिया और कभी उनके आगे नहीं झुके.
दुर्गा शक्ति नागपाल: 2009 बैच की आइएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल मूलत: छत्तीसगढ़ से संबंधित हैं लेकिन उत्तर प्रदेश के आइएएस अधिकारी अभिषेक सिंह से विवाह करने के बाद उन्होंने अपनी पोस्टिंग उत्तर प्रदेश में ले ली थी. उन्होंने राज्य में अपने पैर पसारे रेत माफिया के सामने झुकने से इंकार कर दिया था. लेकिन इसके बदले ना तो उन्हें सरकार से कोई सम्मान मिला और ना ही उनकी तारीफ हुई, बल्कि उन पर तो राज्य में सांप्रदायिक हिंसा बढ़ाने जैसा आरोप लगाकर उन्हें निलंबित कर दिया गया. लेकिन इतना सब होने के बाद भी दुर्गा शक्ति नागपाल ने अपने घुटने नहीं टेके और अभी भी वह अपने इरादे पर अटल हैं.
हर्ष मंदर: 1980 में आइएएस बने हर्ष मंदर का 22 बार ट्रांसफर किया गया क्योंकि उन्होंने सरकार के आगे झुकने से इनकार कर दिया था. करीब दो दशकों तक हर्ष मंदर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के अलग-अलग हिस्सों में स्थानांतरित होते रहे. उनके विषय में ऐसा कहा जाता है कि वर्ष 1989 में समाजसेविका मेधा पाटकर की अगुवाई में शांतिपूर्ण ढंग से हुए नर्मदा बचाओ आंदोलन को रुकवाने से मना कर दिया था. इतना ही नहीं वर्ष 1990 में उन्होंने मध्यप्रदेश के एक कद्दावर भाजपा नेता की 2 हजार एकड़ जमीन गरीबों के बीच बांट दी थी. गुजरात दंगों को सरकार द्वारा प्रायोजित बताते हुए हर्ष मंदर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
संजीव भट्ट: गुजरात के पूर्व आइपीएस अधिकारी संजीव भट्ट तब सुर्खियों में आए जब उन्होंने गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी की भूमिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया था. आइआइटी मुंबई से पोस्ट ग्रैजुएट की डिग्री हासिल करने के बाद संजीव भट्ट आइपीएस अधिकारी बने. नरेंद्र मोदी के खिलाफ आवाज उठाने के बाद उन्हें अपने पद से निलंबित किया गया और आज भी वह अपने पद को दोबारा हासिल नहीं कर पाए हैं.
अशोक खेमका: 19 साल की नौकरी में करीब 43 बार एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरित होते रहे अशोक खेमका कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के एक जमीन सौदे के खिलाफ आवाज उठाने के बाद सुर्खियों में आए. अपनी निष्पक्ष कार्यशैली की वजह से वह कभी किसी एक पद पर एक महीने से ऊपर काम नहीं कर पाए. अपने पूरी कार्यकाल में मात्र दो बार ही वह एक साल से अधिक समय तक कार्यरत रहे.
भूरे लाल: राजीव गांधी के कार्यकाल में भूरे लाल प्रवर्तन निदेशालय के मुखिया थे और अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने अनिल अंबानी और अमिताभ बच्चन जैसे नामी-गिरामी लोगों और उद्योगपतियों के घर छापेमारी की थी. इस समय वी.पी. सिंह वित्त मंत्री थे और भूरे लाल के इस कदम के बाद वित्त मंत्री और भूरे लाल से उनका पद छीन लिया गया था.
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