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अब कौन बनेगा तारणहार ?

भारत में मौजूदा सरकार की हालत खराब हो चली है. किसी भी मुद्दे पर या किसी भी नई चीज को पूरा करने के लिए सरकार को पापड़ बेलने पड़ रहे हैं. भले वो छोटे से छोटे मामले की बात ही क्यों ना हो हर बार सरकार को अपनी बात मनवाने के लिए अनेक तरह की कवायद करनी पड़ रही है. एफडीआई हो या कोई भी बिल भारत की गठबंधन की राजनीति ने सब को एक-दूसरे पर आश्रित कर दिया है. कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी दिक्कत यह भी है कि अगर वो कोई बिल लोकसभा से पारित भी करा लेती है तो उसको राज्यसभा में अन्य पार्टियों पर ही निर्भर करना पड़ रहा है.


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fdiबाल-बाल बचे: इस बार सरकार बाल-बाल बची है. एफडीआई को रिटेल में लाने के लिए सरकार काफी दिनों से प्रयत्न कर रही थी. इस बार बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के सांसदों के वॉकआउट द्वारा लोकसभा में तो यह बिल पास हो गया. अब देखने वाली बात यह होगी कि सरकार राज्यसभा में अपने मन की बात कैसे मनवाती है. राज्यसभा में कांग्रेस का बहुमत नहीं है और यह चिंता का कारण होगा कि आखिर कैसे जोड़-घटाव कर इस सदन में भी इस बिल को पास कराया जाए. अब इस बिल का पूरा अस्तित्व पूरी तरह से राज्यसभा पर निर्भर करता है और देश की अवस्था को मोड़ सकता है, भले ही वो किसी भी दिशा में क्यों ना हो ! विकास की गति को बढ़ाने के लिए सरकार इस फैसले को अगर लाना चाहती है तो इसका विरोध भी क्यों इतनी तन्मयता से किया जा रहा है, कहीं ना कहीं कोई ऐसी बात है जो भारत के परिवेश के लिए अहितकारी है.


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कई बार कहा गया है: कई बार इस बात की आलोचना की गई है कि भारत में एफडीआई को लाना अच्छा नहीं है. भारत का एक ऐसा पक्ष है जो पूरी तरह से छोटे रोजगारों पर आधारित है. इस देश में किसानों की हालत किसी से भी नहीं छुपी है. इस बात का सब को ज्ञान है कि भारत में कितने किसान हर साल आर्थिक तंगी में आकर आत्महत्या का रास्ता अपनाते हैं जो इस बात का पुरजोर समर्थन करता है कि भारत में किसानों की हालत बहुत ही दयनीय है. जहां तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना है इस योजना से किसानों की हालत में बहुत सुधार होगा और इस बात का समर्थन करते हुए कुछ जानकार कहते हैं कि  ब्राजील और अर्जेंटीना जैसे देशों में जब से रिटेल में एफडीआई की इजाजत दी गई है, तब से किसानों को मिलने वाले आर्थिक फायदे में 37 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. अब देखा जाए भारत में यह किस हद तक किसानों की हालत में सुधार कर सकता है. छोटे कारोबारियों को इससे सबसे ज्यादा नुकसान होगा.


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गठबंधन की राजनीति: भारत की गठबंधन की राजनीति इस देश के विकास में सबसे बड़े कारक के रूप में उभर कर सामने आ रही है.  भारत में ऐसा बहुत कम ही बार हुआ है जब किसी सरकार ने पूर्ण तौर पर अपनी बहुमत से सरकार बनाई है. भारतीय राजनीति की यह एक विशेषता रही है. पिछले कई सालों से यह राजनीति का एक ऐसा कारक है जो किसी भी सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए चिंता का विषय रहा है. साधारण शब्दों में कहा जाए तो यह जोड़-तोड़ की राजनीति है. इस जोड़-तोड़ की राजनीति का लक्ष्य कुछ नहीं होता है, होती है तो मात्र सत्ता. ऐसी सत्ता प्राप्त करके आखिर किस रूप में विकास के बारे में सोचा जा सकता है. जितनी चर्चा एफडीआई पर की जा रही है अगर उतनी लोकपाल या जनलोकपाल पर की जाती तो देश में कुछ हद तक घोटाले कम होते और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी रूप में देश को ही लाभ पहुंचता और इसके लिए किसी अन्य बिल की आवश्यकता ही नहीं पड़ती. एक समानता के तहत देश विकास की ओर बढ़ता जहां कोई भी वर्ग अछूता नहीं रहता.


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Tags:FDI in Retail, Fdi in India, FDI, Foreign Direct Investment in India, एफडीआई, भारत, यूपीए, सुप्रीम कोर्ट, रिटेल,BSP, Samajwadi Party

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