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Pranav Mukherjee – भारत के वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी

pranav mukherjeeप्रणव मुखर्जी का जीवन परिचय

भारत के वर्तमान वित्तमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में से एक प्रणव मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर, 1935 को बीरभूम जिला, पश्चिम बंगाल के गांव मिराती में हुआ था. इनके पिता कामदा किंकर मुखर्जी एक प्रतिष्ठित स्वतंत्रता सेनानी और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य थे. आजादी की लड़ाई में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने के चलते वह लगभग 10 वर्षों तक जेल में भी रहे थे. तत्कालीन कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबंधित सूरी विद्यासागर कॉलेज से स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद प्रणव मुखर्जी ने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से ही इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई संपन्न की. कॅरियर के शुरुआती दिनों में प्रणव मुखर्जी लंबे समय तक वकालत और अध्यापन कार्य से जुड़े रहे. इसके बाद उन्होंने पत्रकार के रूप में अपने कॅरियर को आगे बढ़ाया. यूनिवर्सिटी ऑफ वॉल्वरहैम्पटन ने प्रणव मुखर्जी को डी.लिट की उपाधि भी प्रदान की है. प्रणव मुखर्जी के परिवार में उनकी पत्नी सुव्रा मुखर्जी और तीन बच्चे हैं.


प्रणव मुखर्जी का व्यक्तित्व

प्रणव मुखर्जी संजीदा व्यक्तित्व वाले नेता हैं. पार्टी के वरिष्ठतम नेता होने के कारण वह राजनीति की भी अच्छी समझ रखते हैं. बंगाली परिवार से होने के कारण उन्हें रबिंद्र संगीत में अत्याधिक रुचि है.


प्रणव मुखर्जी का राजनैतिक सफर

प्रणव मुखर्जी ने अपने शुरुआती जीवन में वकालत और अध्यापन कार्य समेत पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करते हुए भी काफी समय व्यतीत किया है. प्रणव मुखर्जी के पिता कामदा मुखर्जी एक लोकप्रिय और सक्रिय कांग्रेसी नेता थे. वह वर्ष 1952 से 1964 तक बंगाल विधानसभा के सदस्य रहे थे. पिता का राजनीति से संबंध होने के कारण प्रणव मुखर्जी का राजनीति में आगमन सहज और स्वाभाविक था. प्रणव मुखर्जी के राजनैतिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1969 में राज्यसभा सदस्य के रूप में हुई. वह कांग्रेसी प्रत्याशी के तौर पर कई बार इस पद पर चयनित हुए. वर्ष 1973 में प्रणव मुखर्जी ने कैबिनेट मंत्री रहते हुए औद्योगिक विकास मंत्रालय में उप-मंत्री का पदभार संभाला. इन्दिरा गांधी की हत्या के पश्चात, राजीव गांधी सरकार की कैबिनेट में प्रणव मुखर्जी को शामिल नहीं किया गया. इस बीच प्रणव मुखर्जी ने अपनी अलग राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया. लेकिन जल्द ही वर्ष 1989 में राजीव गांधी से विवाद का निपटारा होने के बाद प्रणव मुखर्जी ने अपनी पार्टी को राष्ट्रीय कांग्रेस में मिला दिया. पी.वी नरसिंह राव के कार्यकाल में प्रणव मुखर्जी के राजनैतिक जीवन को एक बार फिर गति मिली. पी.वी नरसिंह ने इन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष और फिर केंद्रीय कैबिनेट मंत्री बनाया. नरसिंह राव के कार्यकाल के दौरान उन्हें पहली बार विदेश मंत्रालय का पदभार भी प्रदान किया गया. वर्ष 1985 तक प्रणव मुखर्जी पश्चिम बंगाल कांग्रेस समिति के अध्यक्ष भी रहे, लेकिन काम का बोझ बढ़ जाने के कारण उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया था. प्रणव मुखर्जी पहली बार वर्ष 2004 में जंगीपुर निर्वाचन सीट से लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद लोकसभा पहुंचे.


प्रणव मुखर्जी की उपलब्धियां और योगदान

  • प्रणव मुखर्जी को कई प्रतिष्ठित और हाई प्रोफाइल मंत्रालय संभालने जैसी विशिष्टता प्राप्त है. उन्होंने रक्षा मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, शिपिंग, यातायात, संचार, वाणिज्य और उद्योग, आर्थिक मामले जैसे लगभग सभी महत्वपूर्ण मंत्रालयों में अपनी सेवाएं दी हैं.

  • प्रणव मुखर्जी एशियन डेवलपमेंट बैंक और अफ्रीकन डेवलपमेंट बैंक के अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के गवर्नरों से एक रह चुके हैं.

  • राजीव गांधी की मृत्यु के पश्चात जब सोनिया गांधी ने राजनीति में आने का निर्णय लिया तब प्रणव मुखर्जी ने उनके सलाहकार और मार्गदर्शक के रूप में भी अपनी सेवाएं दी. कांग्रेस के लिए अपनी प्रतिबद्धता दर्शाने के बाद ही सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा प्रणव मुखर्जी को वर्ष 2004 में रक्षा मंत्रालय सौंपा गया.

  • वर्ष 2005 में पेटेंट संशोधन अधिनियम के दौरान जब यूपीए सांसदों के भीतर मनमुटाव पैदा हो गया, जिसकी वजह से कोई राय नहीं बन पा रही थे, ऐसे समय में प्रणव मुखर्जी ने अपनी सूझबूझ और कुशल रणनीति का परिचय देकर 23 मार्च, 2005 को इस बिल को पास करवा दिया.

  • मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल में प्रणव मुखर्जी को दोबारा वित्त-मंत्रालय का कार्यभार प्रदान किया गया.

प्रणव मुखर्जी से जुड़े विवाद

  • आपातकाल के दौरान प्रणव मुखर्जी, इन्दिरा गांधी सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. इसी दौरान उन पर कई गलत व्यक्तिगत निर्णय लेने जैसे गंभीर आरोप लगे. प्रणव मुखर्जी के खिलाफ पुलिस केस भी दर्ज किया गया. लेकिन इन्दिरा गांधी के वापस सत्ता में आते ही वह केस खारिज हो गया.

  • विदेश मंत्री रहते हुए, विवादित बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन को घर में नजरबंद रख सुरक्षा प्रदान करने के प्रणव मुखर्जी के निर्णय पर लगभग सभी मुसलमान समुदायों ने आपत्ति उठाई और प्रणव मुखर्जी के खिलाफ प्रदर्शन किए. परिणामस्वरूप तस्लीमा नसरीन को 2008 में भारत से बाहर जाना पड़ा.

  • प्रणव मुखर्जी पर यह भी आरोप लगे कि उन्होंने निजी बैंकों को गुजरात में निवेश ना करने की धमकी दी है क्योंकि वहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है.

प्रणव मुखर्जी को राजनीति के अलावा बागवानी और किताबें पढ़ने का भी शौक है. वह रबिंद्र संगीत को सुनना भी अत्याधिक पसंद करते हैं. प्रणव मुखर्जी की तार्किक क्षमता और रणनीतियां बहुत प्रभावी हैं. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी अर्थ और राष्ट्र के कल्याण से जुड़ा कोई भी फैसला लेने से पहले प्रणव मुखर्जी से विचार-विमर्श जरूर करते हैं.


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