पूर्व रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडीस का मंगलवार को 88 साल की उम्र में निधन हो गया। वे लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे। उन्हें अल्जाइमर (भूलने की बीमारी) की बीमारी थी। वहीं, कुछ दिन पहले उन्हें स्वाइन फ्लू भी हो गया था। 3 जून 1930 को जन्मे जॉर्ज भारतीय ट्रेड यूनियन के नेता थे। वे पत्रकार भी रहे। वह मूलत: मैंगलोर (कर्नाटक) के रहने वाले थे। दुनिया को अलविदा कहने के साथ ही जॉर्ज से जुड़े कई किस्से एक बार याद किए जाने लगे। रक्षामंत्री रहते हुए जॉर्ज 30 बार से ज्यादा सियाचीन गए थे, जो अभी तक एक रिकॉर्ड है। आइए, एक नजर डालते हैं उनकी जिंदगी से जुड़े खास पहलुओं पर।
मां ने पादरी बनने के लिए भेजा लेकिन बन गए मजदूर
1946 में उनकी मां ने उन्हें पादरी का प्रशिक्षण लेने के लिए बेंगलुरु भेजा। 1949 में वह बॉम्बे आ गए और ट्रेड यूनियन मूवमेंट से जुड़ गए। यहां आकर काफी दिनों तक मजदूरों के साथ रहे और मजदूरी करके उनके संघर्ष को समझा। 1950 से 60 के बीच उन्होंने बॉम्बे में कई हड़तालों की अगुआई की।
फर्नांडीस, 1967 में दक्षिण बॉम्बे से कांग्रेस के एसके पाटिल को हराकर पहली बार सांसद बने। 1975 की इमरजेंसी के बाद फर्नांडीस बिहार की मुजफ्फरपुर सीट से जीतकर संसद पहुंचे थे। मोरारजी सरकार में उद्योग मंत्री का पद दिया गया था। इसके अलावा उन्होंने वीपी सिंह सरकार में रेल मंत्री का पद भी संभाला। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार (1998-2004) में जॉर्ज को रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई थी। कारगिल युद्ध के दौरान वह ही रक्षा मंत्री के पद पर काबिज थे।
गिरफ्तारी से बचने के लिए खुद को बताते थे खुशवंत सिंह
1967 से 2004 तक 9 लोकसभा चुनाव जीते। इमरजेंसी में सिखों के पहनावे में घूमते थे और गिरफ्तारी से बचने के लिए खुद को लेखक खुशवंत सिंह बताते थे।
एमरजेंसी में जेल हुई, कैदियों को भागवत गीता पढ़कर सुनाते थे
एमरजेंसी के दौरान जॉर्ज फर्नांडीस सहित उनके 27 साथियों पर देशद्रोह का केस चलाया गया था। जिसके चलते जेल भी हुई। जेल में यातनाएं दी गईं थी। एक से दूसरी और दूसरी से तीसरी जेल में लगातार बदली की जा रहीं थी। उस मुश्किल दौर में मन की शांति बनाए रखना बहुत मुश्किल था, ऐसे में जेल में रहने के दौरान वह कैदियों को श्रीमद्भागवतगीता पढ़कर सुनाते थे। अंत में उन्हें और उनके साथियों को इस आरोप से बरी कर दिया गया…Next
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