जीवन परिचय
दो बार भारत के कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे गुलज़ारी लाल नंदा का जन्म 4 जुलाई, 1898 को सियालकोट, जो कि अब पश्चिमी पाकिस्तान का हिस्सा है, में हुआ था. इनके पिता का नाम बुलाकी राम नंदा तथा माता का नाम श्रीमती ईश्वर देवी नंदा था. गुलज़ारी लाल नंदा की प्राथमिक शिक्षा सियालकोट में ही संपन्न हुई. इसके बाद उन्होंने लाहौर के ‘फ़ोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज’ तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन कर कला संकाय में स्नातकोत्तर एवं क़ानून की स्नातक उपाधि प्राप्त की.
भारत की संवैधानिक परम्परा के अनुसार प्रधानमंत्री के पद को रिक्त नहीं रखा जा सकता. यदि किसी प्रधानमंत्री की उसके कार्यकाल के दौरान मृत्यु हो जाए और तत्काल नए प्रधानमंत्री का चुनाव कर पाना संभव ना हो तो कार्यवाहक अथवा अंतरिम प्रधानमंत्री की नियुक्ति तब तक के लिए की जा सकती है, जब तक की विधिवत नए प्रधानमंत्री को नियुक्त ना कर दिया जाए. गुलजारी लाल नंदा भारत के एक मात्र ऐसे कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे हैं, जिन्होंने इस जिम्मेदारी को दो बार निभाया. कॉग्रेस पार्टी से संबंधित गुलज़ारी लाल नंदा प्रथम बार पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद 1964 में और दूसरी बार लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद 1966 में कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने.
गुलज़ारी लाल नंदा का व्यक्तित्व
गुलज़ारी लाल नंदा एक राष्ट्रभक्त होने के साथ-साथ बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे. वह सादा जीवन उच्च विचार को अपने जीवन का सिद्धांत मानते थे. दूसरों के प्रति गुलजारी लाल नंदा का व्यवहार हमेशा संवेदनशील रहता था. मुंबई के नेशनल कॉलेज में अर्थशास्त्र के व्याख्याता के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान करने के साथ ही वह सन 1922 से 1946 तक वह अहमदाबाद की टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री में लेबर एसोसिएशन के सचिव भी रहे. अपने इस लंबे कार्यकाल के दौरान वह श्रमिकों की समस्याओं को लेकर सदैव जागरुक रहे और उनका निदान करने के लिए निरंतर प्रयास करते रहे.
गुलज़ारी लाल नंदा का राजनैतिक योगदान
गुलजारी लाल नंदा मुंबई की विधानसभा में 1937 से 1939 तक और 1947 से 1950 तक विधायक रहे. इसके अलावा मुंबई सरकार में रहते हुए उन्होंने श्रम एवं आवास मंत्रालय का कार्यभार देखा. 1947 मेंस्थापित हुई ‘इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ का श्रेय भी गुलज़ारी लाल नंदा को जाता है. मुंबई सरकार में रहने के दौरान ही गुलज़ारी लाल नंदा की प्रतिभा के महत्व को समझते हुए कांग्रेस आलाक़मान ने उन्हें दिल्ली बुला लिया. दिल्ली आने के बाद वे 1950-1951, 1952-1953 और 1960-1963 में भारत के योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद पर आसीन रहे. गौवध विरोधी आंदोलन में गुलज़ारी लाल नंदा के सहयोग ने पहली बार इंदिरा गांधी को कांग्रेस पार्टी पर पकड़ मजबूत करने का मौका दिया.
गुलज़ारी लाल नंदा की उत्कृष्ट रचनाएं
दो बार भारत के कार्यकारी प्रधानमंत्री रहे गुलज़ारी लाल नंदा केवल राजनीति में ही दिलचस्पी नहीं रखते थे बल्कि उन्हें पढ़ने और पुस्तक लिखने का भी शौक था. अपने जीवनकाल में उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की जिनमें सम आस्पेक्ट्स ऑफ़ खादी, अप्रोच टू द सेकंड फ़ाइव इयर प्लान, गुरु तेगबहादुर, संत एंड सेवियर, हिस्ट्री ऑफ़ एडजस्टमेंट इन द अहमदाबाद टेक्सटाइल्स, फॉर ए मौरल रिवोल्युशन तथा सम बेसिक कंसीड्रेशन प्रमुख हैं.
गुलज़ारी लाल नंदा को दिए गए सम्मान
गुलज़ारी लाल नन्दा को राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में अपने अमूल्य योगदान के लिए देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ और सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से नवाजा गया.
गुलज़ारी लाल नंदा का निधन
गुलज़ारी लाल नंदा दीर्घायु हुए. सौ वर्ष की उम्र में 15 जनवरी, 1998 को उनका निधन हो गया, लेकिन आज भी इन्हें एक स्वच्छ छवि वाले गांधीवादी राजनेता के रूप में याद किया जाता हैं जिसने सदैव दूसरों की भलाई करते हुए ही अपना जीवन व्यतीत किया.
राजनीति से जुड़ी महत्वपूर्ण शख्सियत और एक समर्पित गांधीवादी नेता होने के बावजूद कला और साहित्य में गुलज़ारी लाल नंदा की विशेष रुचि थी. उन्होंने अपने विचारों और अनुभवों को पुस्तक के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया. सामाजिक तौर पर भी उनके अनेक योगदान रहे हैं. श्रमिकों और शोषित वर्ग के लोगों की दशा सुधारने और उनके हितों की रक्षा करने के लिए उन्होंने कई प्रयास किए. उन्होंने अपना असामान्य जीवन बेहद सामान्य और सादे ढंग से व्यतीत किया. उनका जीवनकाल तो हमें प्रेरणा देता ही है, लेकिन उनकी मृत्यु के इतने वर्षों बाद भी भारतीय उनके सिद्धांतों को अपना मार्गदर्शक मानकर उनके आदर्शों का अनुसरण करते हैं.
Read Comments