“जीवन में सुख का अनुभव तभी प्राप्त होता है जब इन सुखों को कठिनाईयों से प्राप्त किया जाता है।”
अब्दुल कलाम की कही ऐसी ही बातें हैं, जिसे सुनकर हर निराशा दूर हो जाएगी और आपको आगे बढ़ने की हिम्मत मिलेगी। उनकी जिंदगी से जुड़े ऐसे कई किस्से हैं, जिन्हें जानकर लगता है कि वो राष्ट्रपति की कुर्सी पर आसीन होने के बाद भी जमीन से जुड़े हुए थे नेता थे।
उनकी सादगी से जुड़े हुए ऐसे ही 5 किस्से आज उनके जन्मदिन पर पढ़िए। उनकी आत्मकथा ‘wings of fire’ में ऐसे कई दिलचस्प किस्से लिखे हैं।
आसमान की ओर देखते हुए बोले “मैंने ऊपर बात कर ली है”
5 अगस्त 2003 को कलाम ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर शाम को राष्ट्रपति भवन के लॉन में चाय पार्टी का आयोजन किया, जिसमें 3000 लोग आमंत्रित थे। उस दिन सुबह से झमाझम बारिश हो रही थी। सब परेशान थे कि इतने सारे लोगों को भवन के अंदर तो चाय पिलाई नहीं जा सकती। छाते भी केवल 2000 ही थे। भवन के अंदर ज्यादा से ज्यादा 700 लोग चाय पी सकते थे। दोपहर 12 बजे राष्ट्रपति के सचिव ने उनको यह समस्या बताई तो कलाम ने कहा, ‘अगर बारिश जारी रही तो ज्यादा से ज्यादा क्या होगा! हम भीगेंगे ही न।’ परेशान नायर वापस जाने के लिए मुड़े, वह दरवाजे तक ही पहुंचे थे कि कलाम ने उन्हें पुकारा और आसमान की ओर देखते हुए कहा, ‘आप परेशान न हों, मैंने ऊपर बात कर ली है।’ ठीक 2 बजे बारिश थम गई और सूरज निकल आया। चाय पार्टी समाप्त होने के बाद जैसे ही कलाम राष्ट्रपति भवन की छत के नीचे पहुंचे, फिर से बारिश शुरू हो गई।
जब पाकिस्तान के राष्ट्रपति को दिया लेक्चर
2005 में जनरल परवेज मुशर्रफ ने तत्कालीन राष्ट्रपति कलाम से मुलाकात की। मुलाकात से पहले उनके सचिव नायर ने उनसे कहा कि मुशर्रफ कश्मीर का मु्द्दा जरूर उठाएंगे। कलाम ने कहा कि वह सब संभाल लेंगे। 30 मिनट तक चली मुलाकात में मुशर्रफ ने सिर्फ कलाम की सुनी। कलाम उनको ‘संक्षेप’ में ‘पूरा’ (प्रवाइडिंग अर्बन फैसिलिटीज टु रूरल एरियाज) कॉन्सेप्ट का मतलब समझाते रहे और बताते रहे कि अगले 20 साल में दोनों देश इसे किस तरह हासिल कर सकते हैं। मुलाकात के 30 मिनट समाप्त होने के बाद मुशर्रफ ने कहा, ‘धन्यवाद राष्ट्रपति महोदय, भारत भाग्यशाली है कि उसके पास आप जैसा एक वैज्ञानिक राष्ट्रपति है।’ नायर ने अपनी डायरी में लिखा- कलाम ने आज दिखाया कि वैज्ञानिक भी कूटनीतिक हो सकते हैं।
52 परिवार के सदस्यों का चुकाया बिल
मई 2006 में राष्ट्रपति कलाम का पूरा परिवार (52 सदस्य) उनसे मिलने दिल्ली आया, जिनमें उनके 90 साल के बड़े भाई से ले कर उनकी डेढ़ साल की परपोती भी शामिल थी। वे 8 दिन राष्ट्रपति भवन में रुके। उनके घूमने से लेकर खाने-पीने तक, यहां तक कि एक प्याली चाय तक का भी पूरा खर्च कलाम ने अपनी जेब से चुकाया। उनके जाने के बाद कलाम ने अपने अकाउंट से 352000 रुपये का चेक काट कर राष्ट्रपति कार्यालय को भेजा। उनका राष्ट्रपति कार्यकाल खत्म होने के बाद अगर उनके सचिव नायर ने अपनी किताब में इस बात का जिक्र न करते तो शायद दुनिया को उनकी इस ईमानदारी और सादगी का पता भी न चलता।
बस 2 छुट्टियां
कलाम समय के बहुत पाबंद थे। वो हमेशा अपने काम को लेकर बहुत ही गंभीर रहते थे। कहा जाता है कि राष्ट्रपति पद पर होने के बाद कलाम तबियत खराब होने के बाद भी ऑफिस में आया करते थे। वो बच्चों और महिलाओं के भविष्य के लिए जानकारों से नीतियों के बारे में राय लिया करते थे। अपनी पूरी प्रोफेशनल जिंदगी में केवल 2 छुट्टियां ली थीं। एक छुट्टी अपने पिता की मौत के समय और दूसरी छुट्टी अपनी मां के मौत के समय।
इफ्तार का खाना अनाथालय में बांटा
नवंबर 2002 में रमजान के दौरान कलाम ने अपने सचिव को बुला कर कहा कि इफ्तार भोज में जो आएंगे, वे सब तो खाते-पीते घरों के लोग होंगे। इफ्तार भोज पर होने वाले खर्चे के बारे में पूछने पर उन्हें पता चला कि भोज पर करीब ढाई लाख रुपए का खर्च आता है। इस पर कलाम ने यह पैसा अनाथालयों में देने का फैसला किया। 28 अनाथालयों में जरूरी सामान बांटने के बाद कलाम ने सचिव नायर से कहा कि ये सारा सामान से सरकारी पैसे से खरीदा गया है, इसमें उनका तो कुछ योगदान नहीं है। इसलिए फिर कलाम ने अपने अकाउंट से एक लाख रुपये का चेक दिया और सचिव से कहा कि इसका भी वैसे ही उपयोग करें, जैसे इफ्तार भोज के पैसे का किया है। साथ ही उन्होंने इस बात की हिदायत भी दी कि यह बात किसी को पता न चले…Next
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