ज्ञानी जैल सिंह का जीवन परिचय
ज्ञानी जैल सिंह के नाम से विख्यात भारत के सातवें राष्ट्रपति का वास्तविक नाम जरनैल सिंह है. इनका जन्म 5 मई, 1916 को पंजाब के फरीदकोट जिले के संधवान ग्राम में हुआ था. इनके पिता भाई किशन सिंह एक समर्पित सिख थे. वह गांव में ही बढ़ई का कार्य करते थे. छोटी उम्र में ही जरनैल सिंह की माता का देहांत हो गया. इनका पालन-पोषण इनकी माता की बड़ी बहन द्वारा किया गया. मात्र 15 वर्ष की आयु में ही वह ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध काम कर रहे अकाली दल से जुड़ गए थे. अमृतसर के शहीद सिख मिशनरी कॉलेज से गुरु ग्रंथ का पाठ मुंह जबानी याद करने के बाद इन्हें ज्ञानी की उपाधि से नवाजा गया. सन 1938 में जरनैल सिंह ने प्रजा मंडल नामक एक राजनैतिक पार्टी का गठन किया जो भारतीय कॉग्रेस के साथ संबद्ध होकर ब्रिटिश विरोधी आंदोलन किया करती थी. अंग्रेजों के लिए यह सहन करना मुश्किल हो गया था. कोई और रास्ता ना मिलते हुए ब्रिटिशों ने जरनैल सिंह को जेल भेज दिया. उन्हें पांच वर्ष की सजा सुनाई गई. इसी दौरान उन्होंने अपना नाम बदलकर जैल सिंह (जेल सिंह) रख लिया.
ज्ञानी जैल सिंह का व्यक्तित्व
ज्ञानी जैल सिंह बचपन से ही भारत की स्वतंत्रता के लिए जागरुक थे. छोटी सी उम्र में ही उन्होंने ब्रिटिशों के खिलाफ चल रहें आंदोलनों में अपनी सक्रिय भूमिका निभानी शुरू कर दी. वह केवल एक दृढ निश्चयी और साहसी व्यक्तित्व वाले इंसान ही नहीं बल्कि एक समर्पित सिख भी थे.
ज्ञानी जैल सिंह का राजनैतिक सफर
स्वतंत्रता से पूर्व ज्ञानी जैल सिंह देश को स्वराज दिलाने और अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए विभिन्न आंदोलनों का हिस्सा बनने लगे थे. स्वतंत्रता के पश्चात ज्ञानी जैल सिंह को पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्यों के संघ (PEPSU) का राजस्व मंत्री बना दिया गया. 1951 में जब कॉग्रेस की सरकार बनी उस समय जैल सिंह को कृषि मंत्री बनाया गया. इसके अलावा वह 1956 से 1962 तक राज्यसभा के भी सदस्य रहे. सन 1962 में कॉग्रेस के समर्थन से ज्ञानी जैल सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री बने. 1980 के चुनावों में ज्ञानी जैल सिंह लोकसभा के सदस्य निर्वाचित होने के बाद इन्दिरा गांधी सरकार के कैबिनेट में रहते हुए गृह मंत्री बनाए गए. 1982 में नीलम संजीवा रेड्डी का कार्यकाल समाप्त होने के बाद सर्वसम्मति से कॉग्रेस के प्रतिनिधि ज्ञानी जैल सिंह को राष्ट्रपति पद पर बिठाया गया.
ज्ञानी जैल सिंह से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण घटनाक्रम
ज्ञानी जैल सिंह का राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल प्रारंभ से अंत तक विवादों से ही घिरा रहा. इन्दिरा गांधी के आदेशों के अनुसार जब सिख अलगाववादियों के मंसूबे नाकाम करने के उद्देश्य से स्वर्ण मंदिर में छुपाए गए हथियार और खालिस्तानी समर्थकों को पकड़ने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया, उस समय ज्ञानी जैल सिंह ही राष्ट्रपति थे. इन्दिरा गांधी की हत्या और उसके विरोध में हुआ सिख नरसंहार भी इन्हीं के काल में हुआ. इसके अलावा भारतीय डाक विधेयक, जिसके अंतर्गत निजी पत्रों के संप्रेषण और आदान प्रदान पर आधिकारिक सेंसरशिप लगाने का प्रावधान लागू किया जा सकता था, जैसे कठोर और अलोकतांत्रिक विधेयक को पास ना करने पर भी ज्ञानी जैल सिंह का राजीव गांधी से मनमुटाव हो गया था. हालांकि इस विधेयक पर अपने विशेषाधिकार पॉकेट वीटो का प्रयोग कर इसे पास ना करने पर इन्हें नागरिकों की बहुत प्रशंसा मिली थी. लेकिन यह भी माना जाता है कि उनके इस कदम ने राजीव गांधी सरकार के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. राजीव गांधी भारतीय डाक विधेयक जैसा कठोर विधेयक पास करवाना चाहते थे, उनकी इस मंशा ने समाज में उनकी छवि को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया था.
ज्ञानी जैल सिंह का निधन
ज्ञानी जैल सिंह बेहद धार्मिक व्यक्तित्व वाले इंसान थे. राष्ट्रपति पद पर पहुंचने के बाद भी जब कभी भी वह पंजाब के आस-पास होते थे, वह आनंदपुर साहिब जाना नहीं भूलते थे. इसी तरह वह लगातार तीर्थयात्राएं करते रहते थे. 1994 में तख्त श्री केशगड़ साहिब जाते समय उनकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई. उन्हें पीजीआई चंडीगढ़ इलाज के लिए ले जाया गया, जहां उनकी मृत्यु हो गई. दिल्ली में जहां ज्ञानी जैल सिंह का दाह-संस्कार किया गया उसे एकता स्थल के नाम से जाना जाता है.
ज्ञानी जैल सिंह देश के पहले सिख राष्ट्रपति थे. वह देश और अपने धर्म के लिए प्रतिबद्ध और जनता के हितों की रक्षा करने वाले व्यक्ति थे. उन्होंने अपने कार्यकाल में यह बात प्रमाणित कर दी थी कि जनता और देश का विकास ही उनकी प्राथमिकता है. चाहे अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालना हो या भारतीय डाक विधेयक पास ना करना हो, वह हमेशा अपने निश्चय पर अडिग रहे. भारतीय राजनीति में आज भी उन्हें एक निरपेक्ष और दृढ़ व्यक्तित्व वाले व्यक्ति के रूप में याद किया जाता है.
Read Comments