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Former Prime Minister Chandrashekhar – पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर

former prime minister chandrashekharजीवन-परिचय

स्वतंत्र भारत के आठवें प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का जन्म 1 जुलाई, 1927 को उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव इब्राहिमपुर के एक कृषक परिवार में हुआ था. विश्वनाथ प्रताप सिंह के असफल शासन के बाद चंद्रशेखर ने ही प्रधानमंत्री का पदभार संभाला था. राजनीति की ओर चंद्रशेखर का रुझान विद्यार्थी जीवन में ही हो गया था. निष्पक्ष देश-प्रेम के कारण इन्हें ‘युवा तुर्क’ के नाम से भी जाना जाता है. चंद्रशेखर की कुशल भाषा शैली विपक्षी खेमे में भी काफी लोकप्रिय थी. वह राजनीति को पक्ष-विपक्ष के दृष्टिकोण से नहीं देखते थे. वह केवल देश हित के लिए कार्य करने में ही खुद को सहज महसूस करते थे. इलाहाबाद विश्विद्यालय से स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ही उन्होंने भारतीय राजनीति में कदम रख दिया था.


चंद्रशेखर का व्यक्तित्व

चंद्रशेखर के विषय में कहा जाता है कि बहुत कम लोगों को मेधावी योग्यता प्राप्त होती है और यह उन्हीं में से एक हैं. चंद्रशेखर आचार्य नरेंद्र के काफी करीब माने जाते थे जिससे उनका व्यक्तित्व और चरित्र काफी हद तक प्रभावित हुआ. उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावी था कि पक्ष हो या विपक्ष सभी उनका सम्मान करते थे. साथ ही किसी भी समस्या की स्थिति में इनके परामर्श को वरीयता देते थे. वह पूर्णत: निष्पक्ष रह कर काम करते थे. वह अपने क्रांतिकारी विचारों के लिए जाने जाते थे. इनके विषय में एक व्यंग्य भी प्रचलित है कि अगर संसद मछली बाजार बन रहा हो तो इनके भाषण से वहां सन्नाटा पसर जाता था. उनका स्वभाव बेहद संयमित था. यहां तक कि प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वह अपने संयम और कुशल व्यवहार के लिए जाने जाते थे.


चंद्रशेखर का राजनैतिक सफर

राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही वह समाजवादी आंदोलन से जुड़ गए थे. जल्द ही वह बलिया जिला के प्रजा समाजवादी दल के सचिव बने और उसके बाद राज्य स्तर पर इसके संयुक्त सचिव बने. राष्ट्रीय राजनीति में चंद्रशेखर का आगमन उत्तर प्रदेश राज्यसभा में चयनित होने के बाद हुआ. यहीं से ही उन्होंने वंचित और दलित वर्गों के लोगों के हितों के लिए आवाज उठानी शुरू कर दी थी. गंभीर मुद्दों पर वह बेहद तीक्ष्ण भाव में अपनी बात रखते थे. विपक्ष भी उनके तेवरों को भांपते हुए कुछ नहीं कह पाता था. सन 1975 में अपातकाल लागू होने के बाद जिन नेताओं को इन्दिरा गांधी ने जेल भेजा था उनमें से एक चंद्रशेखर भी थे. वी.पी. सिंह के प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद चंद्रशेखर, कॉग्रेस आई के समर्थन से सत्तारूढ़ हुए. रिजर्व बैंक में मुद्रा संतुलन बनाए रखने में चंद्रशेखर का बहुत बड़ा योगदान था.


चंद्रशेखर का लेखन और पत्रकारिता के प्रति रुझान

चंद्रशेखर अपने विचारों की अभिव्यक्ति बड़े तीखे अंदाज में करते थे. राजनीति और समाज से जुड़े किसी भी मसले को वह तथ्यों के आधार पर ही देखते और समझते थे. केवल राजनीति ही नहीं वह पत्रकारिता में भी खासी रुचि रखते थे. उन्होंने यंग इण्डिया नामक एक साप्ताहिक समाचार पत्र का भी संपादन और प्रकाशन किया. अपने समाचार पत्र में वह किसी भी समस्या की समीक्षा बड़ी बेबाकी से करते थे. अपनी इसी बेबाकी और निष्पक्षता के कारण वह बौद्धिक वर्ग में भी काफी लोकप्रिय रहे. वह लेखन को आम जनता तक अपनी बात पहुंचाने का सबसे सशक्त माध्यम मानते थे. इसी कारण आपातकाल के समय इन्दिरा गांधी द्वारा जेल भेजे जाने की घटना को और अपने जेल के अनुभवों को उन्होंने एक डायरी में समेट लिया जो मेरी जेल डायरी के नाम से प्रकाशित हुई. इसके अलावा चंद्रशेखर की एक और कृति ‘डायनमिक्स ऑफ चेंज’ के नाम से प्रकाशित हुई. जिसमें उन्होंने यंग इंडिया के अपने अनुभवों और कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं को संकलित किया. उनके लेखन की सबसे खास बात यह थी कि वह विषय का भली प्रकार अध्ययन करते और शुरू से अंत तक अपनी पकड़ बनाए रखते थे.


चंद्रशेखर को दिए गए सम्मान

चंद्रशेखर देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्हें वर्ष 1955 में सर्वाधिक योग्य सांसद का सम्मान प्रदान किया गया था.


चंद्रशेखर का निधन

चंद्रशेखर काफी समय से प्लाज्मा कैंसर से पीडित थे. 8 जुलाई, 2007 को नई दिल्ली के एक अस्पताल में चंद्रशेखर का निधन हो गया.


चंद्रशेखर एक ईमानदार और कर्मठ प्रधानमंत्री थे. उनकी एक विशेषता यह भी थी कि वह हर कार्य को समर्पण भाव से करते थे. प्रधानमंत्री के पद से हटने के बाद वह भोंडसी में अपने आश्रम में ही रहना पसंद करते थे जहां सत्तारूढ़ नेता और विपक्षी दोनों ही उनसे परामर्श लेने आते थे. सरकार द्वारा अपने आश्रम की जमीन का विरोध करने पर उन्होंने इसका एक बड़ा हिस्सा सरकार को वापस कर दिया. चंद्रशेखर के विषय में यह कहना गलत नहीं होगा कि वह एक संयमित चरित्र वाला व्यक्ति होने के साथ-साथ एक ईमानदार प्रधानमंत्री भी थे जिनकी योग्यताओं और महत्वाकांक्षाओं पर संदेह करना मुश्किल है. अपने जीवनकाल में वह बेहद सम्मानीय पुरुष रहे. आज भी राजनैतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से इनकी लोकप्रियता को कम नहीं आंका जा सकता.


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