इंदिरा गांधी एक ऐसी शख्सियत जिनका जिक्र होते ही उनसे जुड़ी ऐसी कई घटनाओं पर भी बहस होने लगती है। इंदिरा को एक नेता के तौर पर पसंद और नापसंद करने वाले लोगों के अपने कई कारण हो सकते हैं लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इंदिरा गांधी एक प्रभावशाली नेता रह चुकी हैं, आज उनके जन्मदिन पर जानते हैं उनसे जुड़ी खास बातें।
इंदिरा गांधी जो विरोध के बाद भी बन गई पीएम
कुलदीप नैय्यर अपनी किताब ‘बियांड द लाइंस’ में इंदिरा के पीएम बनने से जुड़े एक किस्से को लिखते हैं।
किताब के मुताबिक लालबहादुर शास्त्री की अचानक मृत्यु से फिर प्रधानमंत्री के चयन की जिम्मेदारी कांग्रेस अध्यक्ष कामराज के कंधों पर आ पड़ी। इसी उद्देश्य से वह एक चार्टेड विमान से दिल्ली पहुंचे। उनके साथ दुभाषिए के रूप में आर वेंकटरमन भी थे, जो मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दिनों से उनके साथ जुड़े हुए थे। विमान के उड़ान भरते ही कामराज सो गए। दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरने से पंद्रह मिनट पहले ही उनकी आंख खुली तो वो बोले, इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री होंगी। मानों उन्होंने सोते समय इस प्रश्न को सुलझा लिया हो। जब वेंकटरमन ने उनसे जानना चाहा कि वो फैसले पर कैसे पहुंचे तो उन्होंने कहा, सिर्फ गुलजारी लाल नंदा और इंदिरा गांधी में से किसी एक को चुनने की बात थी।
कांग्रेस के ज्यादातर नेता थे गुलजारी नाल नंदा के पक्ष में
कांग्रेस के ज्यादातर नेता नंदा के पक्ष में थे। सभी ने कामराज को सुझाव दिया था कि इंदिरा पर भरोसा नहीं करना चाहिए। इसके बावजूद कामराज ने इंदिरा को ही चुना। जवाहर लाल नेहरू के विशेष सचिव एमओ मथाई अपनी किताब में लिखते हैं कि कामराज को लगा था कि वो एक गुड़िया को चुन रहे हैं, जो उन लोगों के मन मुताबिक चलेगी। लेकिन बाद में जब इंदिरा ने सरकार और पार्टी दोनों पर पकड़ बनानी शुरू कर दी तो कामकाज ने एक दिन मथाई से कहीं मिलने पर झुंझला कर कहा, मैंने तो उसे मूक गुड़िया समझा था लेकिन वो कुछ ज्यादा ही आगे जा रही है। जब कांग्रेस के पुराने दिग्गज नेताओं ने सिंडिकेट ने इंदिरा पर शिकंजा कसना चाहा तो उन्होंने 1969 में पार्टी ही तोड़ दी। 1971 में देश की जनता ने इंदिरा की कांग्रेस को बहुमत से जीत दिला दी थी। बस उसके साथ ही पुराने दिग्गजों की कांग्रेस हाशिए पर चली गई।
पीएम के तौर पर उनके 5 फैसले जिसने बदला इतिहास
पाकिस्तान के टुकड़े, 1971 में बना बंग्लादेश
पाकिस्तान के लिए इंदिरा गांधी किसी विलेन से कम नहीं है। पाकिस्तान के लिए यह जख्म 1971 के बांग्लादेश युद्ध के रूप में था जिसके बाद पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए। पाकिस्तान के सैन्य शासन ने पूर्वी पाकिस्तान के नागरिकों पर बहुत जुल्म किए थे। उसके नतीजे में करीब 1 करोड़ शरणार्थी भागकर भारत में चले आए थे। बाद में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ जिसमें न सिर्फ पाकिस्तान की शर्मनाक हार हुई बल्कि उसके 90,000 सैनिकों को भारत ने युद्धबंदी बनाया था।
आपातकाल जिसे कहते हैं लोकतंत्र का काला दिन
इंदिरा गांधी के संबंध में इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी। उस याचिका पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला दिया था। छह सालों तक उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई थी। उनको संसद से भी इस्तीफा देने को कहा गया था। लेकिन इंदिरा गांधी ने हाई कोर्ट का फैसला मानने से इनकार कर दिया। उसके बाद देश भर में विरोध-प्रदर्शन होने लगे और उनसे इस्तीफा की मांग की जाने लगी। इस सबको देखते हुए इंदिरा गांधी ने 25 जून, 1975 को आपातकाल लगा दिया और बड़ी संख्या में विरोधियों के गिरफ्तारी का आदेश दिया। भारतीय लोकतंत्र में इस दिन को ‘काला दिन’ कहा जाता है। आपातकाल करीब 19 महीने तक रहा।
ऑपरेशन ब्लू स्टार और उसके नतीजे
जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके सैनिक भारत का बंटवारा करवाना चाहते थे। उनलोगों की मांग थी कि पंजाबियों के लिए अलग देश ‘खालिस्तान’ बनाया जाए। भिंडरावाले के साथी गोल्डन टेंपल में छिपे हुए थे। उन आतंकियों को मार गिराने के लिए भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ चलाए थे। इस ऑपरेशन में भिंडरावाले और उसके साथियों को मार गिराया गया। साथ ही कुछ आम नागरिक भी मारे गए थे। बाद में इसी ऑपरेशन ब्लूस्टार का बदला लेने के मकसद से इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी।
प्रिवी पर्स की समाप्ति
आजादी के बाद भारत में अपनी रियासतों का विलय करने वाले राजपरिवारों को एक निश्चित रकम देने की शुरुआत की गई थी। इस राशि को राजभत्ता या प्रिवी पर्स कहा जाता था। इंदिरा गांधी ने साल 1971 में संविधान में संशोधन करके राजभत्ते की इस प्रथा को खत्म किया। उन्होंने इसे सरकारी धन की बर्बादी बताया था।
पोखरण में परमाणु परीक्षण
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