जीवन परिचय
फरवरी 1896 को तत्कालीन बॉम्बे प्रेसिडेंसी के बलसाड, जोकि अब गुजरात में हैं, में जन्में मोरारजी देसाई ‘जनता पार्टी’ से संबंधित स्वतंत्र भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने भारतीय जन संघ सहित विपक्ष को भारतीय शासन व्यवस्था में अपनी पहचान साबित करने का एक महत्वपूर्ण मौका दिया. इसके अलावा यह एक मात्र ऐसे भारतीय नागरिक हैं जिन्हें भारत (भारत रत्न) और पाकिस्तान (निशान-ए-पाकिस्तान) दोनों राष्ट्रों के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा गया. उनका पारिवारिक जीवन बेहद असामान्य हालातों से गुजरा था. उनके अवसाद ग्रस्त पिता के आत्महत्या कर लेने के कारण उन्हें जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. ऐसे प्रतिकूल परिस्थितियों ने उन्हें तोड़ा नहीं बल्कि उनके व्यक्तित्व को और मजबूती प्रदान की. मुंबई के विल्सन कॉलेज से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वह गुजरात सिविल सेवा में भरती हुए, लेकिन कुछ ही वर्ष बाद उन्होंने अंग्रेजों की नौकरी छोड़ सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया. स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सक्रियता की वजह से उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. मोरारजी देसाई ने अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण वर्ष जेल में ही बिताए. अपने विद्यार्थी जीवन में भले ही वह एक औसत बुद्धि के सामान्य छात्र थे लेकिन उनकी विवेकशीलता ने उन्हें कॉलेज स्तर पर वाद-विवाद टीम का सचिव बनाया. उन्होंने कई वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया. अपने विद्यार्थी कार्यकाल में वह महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक से काफी प्रभावित रहे.
मोरारजी देसाई का व्यक्तित्व
मोरारजी देसाई के जीवन में कई ऐसी घटनाएं हुई जिन्होंने उनके मस्तिष्क पर गहरा आघात किया. पिता द्वारा आत्महत्या कर लेना, मां का क्रोधी स्वभाव और संबंधियों की उपेक्षा ने उनके व्यक्तित्व को कठोर और मजबूत बना दिया था. मोरारजी देसाई ने गुजरात सिविल परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ब्रिटिश सरकार के अफसर पद को प्राप्त किया लेकिन अपने स्वभाव के चलते वह अधिक तरक्की नहीं कर पाए और केवल कलेक्टर के निजी सहायक के पद तक ही पहुंच पाए. जब तक वह कॉग्रेस में रहे उन्हें अपने कई आलोचकों का सामना करना पड़ा. यह माना जाता था कि उनका व्यक्तित्व बहुत जटिल है. वह केवल अपनी बातों को ही आगे रखकर चलते हैं. पार्टी और समाज में उनकी छवि एक गांधीवादी लेकिन अड़ियल व्यक्ति की थी.
मोरारजी देसाई का राजनैतिक सफर
सन 1930 में ब्रिटिशों की नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़ कर भाग लिया. कॉग्रेस ने उनकी सक्रियता और उनकी आवश्यकता को देखते हुए गुजरात प्रदेश का सचिव निर्वाचित कर दिया. अपने इसी कार्यकाल के दौरान मोरारजी देसाई ने गुजरात में भारतीय युवा कॉग्रेस की एक शाखा स्थापित की, सरदार पटेल के निर्देश पर देसाई को ही इसका अध्यक्ष भी बनाया गया. इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल में मोरारजी देसाई को उप-प्रधानमंत्री बनाया और गृह-मंत्री बनाया गया. लेकिन वह अपने पद से खुश नहीं हुए. वह राजनीति में काफी परिपक्व हो चुके थे लेकिन फिर भी प्रधानमंत्री इंदिरा को बनाया गया, उनसे यह बात सहन नहीं हुई. जब कॉग्रेस का विभाजन हुआ तब मोरारजी देसाई कॉग्रेस-ओ में शामिल हुए और 1975 में उन्होंने ‘जनता पार्टी’ की सदस्यता ग्रहण कर ली. 1977 के आम चुनावों में जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ और 81 वर्ष की उम्र में मोरारजी देसाई को जनता पार्टी की ओर से भारत का प्रधानमंत्री निर्वाचित किया गया. जनता पार्टी के शासनकाल में भारत के नौ राज्यों में कॉग्रेस की सरकार थी, जिन्हें भंग कर दोबारा चुनाव कराए गए. उनके इस कदम की बुद्धिजीवियों द्वारा बहुत आलोचना की गई.
मोरारजी देसाई को दिए गए सम्मान
मोरारजी स्वतंत्र भारत के एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री रहे जिन्हें अपने सामाजिक और आर्थिक योगदान के लिए भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ और पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान ‘निशान-ए-पाकिस्तान’ से नवाजा गया.
मोरारजी देसाई का निधन
10 अप्रैल, 1995 को दिल्ली में मोराराजी देसाई का देहावसान हुआ.
मोरारजी देसाई 81 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बनने वाले पहले व्यक्ति थे. कॉग्रेस की सदस्यता में उन्होंने कई बार प्रधानमंत्री बनने के प्रयत्न किए लेकिन किसी ना किसी वजह वह अपना उद्देशय पूर्ण नहीं कर पाए. जनता पार्टी से संबंध जोड़ने के बाद उन्हें प्रधानमंत्री पद का कार्यभार मिला लेकिन वो भी ज्यादा समय तक टिक नहीं पाया. चौधरी चरण सिंह से मनमुटाव के चलते उन्हें समयावधि समाप्त होने से पहले ही पद त्याग देना पड़ा. निःसंदेह वह एक सफल प्रधानमंत्री नहीं साबित हुए लेकिन उसके लिए जनता पार्टी के आंतरिक हालात जिम्मेदार थे. लेकिन उनका पूरा जीवन राजनीति में रूचि रखने वाले व्यक्तियों के लिए एक मार्गदर्शक की तरह है.
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