केशव बलिराम हेडगेवार का जीवन परिचय
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल, 1889 को नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ था. महाराष्ट्र, आंध्र-प्रदेश और कर्नाटक में नए-साल के रूप में मनाए जाने वाले पर्व गुडी पड़वा के दिन जन्में केशव बलिराम हेडगेवार महाराष्ट्र के देशस्थ ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते थे. मूलत: इनका परिवार महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के बॉर्डर पर स्थित बोधन तालुक से संबंध रखता था. हेडगेवार की प्रारंभिक शिक्षा उनके बड़े भाई द्वारा प्रदान की गई. मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद हेडगेवार ने चिकित्सा क्षेत्र में पढ़ाई करने के लिए कोलकाता जाने का निर्णय किया. प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी और मोतियाबिंद पर पहला शोध करने वाले डॉ. बी.एस. मुंजू ने हेडगेवार को चिकित्सा अध्ययन के लिए 1910 में कोलकाता भेजा था. वहां रहते हुए केशव बलिराम हेडगेवार ने अनुशीलन समिति और युगांतर जैसे विद्रोही संगठनों से अंग्रेजी सरकार से निपटने के लिए विभिन्न विधाएं सीखीं. अनुशीलन समिति की सदस्यता ग्रहण करने के साथ ही वह राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आ गए. केशब चक्रवर्ती के छद्म नाम का सहारा लेकर हेडगेवार ने काकोरी कांड में भी भागीदारी निभाई थी. जिसके बाद वह भूमिगत हो गए थे. इस संगठन में अपने अनुभव के दौरान हेडगेवार ने यह बात जान ली थी कि स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजी सरकार से लड़ रहे भारतीय विद्रोही अपने मकसद को पाने के लिए कितने ही सुदृढ क्यों ना हों, लेकिन फिर भी भारत जैसे देश में एक सशस्त्र विद्रोह को भड़काना संभव नहीं है. इसीलिए नागपुर वापस लौटने के बाद उनका सशस्त्र आंदोलनों से मोह भंग हो गया. नागपुर लौटने के बाद हेडगेवार समाज सेवा और तिलक के साथ कांग्रेस पार्टी से मिलकर कांग्रेस के लिए कार्य करने लगे थे. कांग्रेस में रहते हुए वह डॉ. मुंजू के और नजदीक आ गए थे जो जल्द ही हेडगेवार को हिंदू दर्शनशास्त्र में मार्गदर्शन देने लगे थे.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना
वर्ष 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नागपुर सत्र के दौरान केशव बलिराम हेडगेवार को इस स्वयंसेवी दल का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया. भारत स्वयंसेवक मंडल नाम के इस दल के मुखिया डॉ. लक्ष्मण वी. परांजपे थे. सभी को सेना जैसी पोशाक पहनने का निर्देश दिया गया था. इस प्रसंग को आरएसएस की उत्पत्ति की ओर पहला कदम कहा जा सकता है क्योंकि डॉ. परांजपे ने भविष्य में ऐसे एक दल की शुरूआत करने की अपनी योजना पहले ही जाहिर कर दी थी. हिंदू महासभा नागपुर क्षेत्र के अति वरिष्ठ नेता होने के कारण डॉ. मूंजे और डॉ. परांजपे ने हेडगेवार को आरएसएस दल की स्थापना करने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई. मूंजे और परांजपे ने हेडगेवार को धन जुटाने से लेकर हर प्रकार का समर्थन दिया.
काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों ने लगभग सभी नौकरियों और अदालतों में जज के तौर पर मुसलमानों को भर्ती करना शुरू कर दिया. राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि अंग्रेजी सरकार हिंदू धर्म के लोगों के साथ भेदभाव करने लगी थी. उनका मानना था कि अदालती कार्यवाही को निभाने में हिंदू अनुयायियों को संदेह की नजरों से देखा जाता था. हेडगेवार ने यह निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान समय में हिंदू धर्म के लोगों को जिन भी परेशानियों या सामाजिक बहिष्कारों का सामना करना पड़ा है वह हिंदुओं के भीतर विद्यमान उनकी अपनी कमियों के कारण हुआ है. क्योंकि वह कोई भी काम संगठित होकर नहीं करते इसीलिए जल्द ही विदेशी नीतियों का शिकार बन जाते हैं. इसीलिए उन्होंने एक ऐसे सांस्कृतिक दल की स्थापना करने का निर्णय लिया जो हिंदुओं को एक सांझा मंच प्रदान कर, उनके भीतर अनुशासन और समान राष्ट्र भावना का विकास कर सके. रत्नागिरी में नजरबंदी झेल रहे विनायक दामोदर सावरकर का भी उन्हें समर्थन मिलने लगा. हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के साथ जुड़े रहने के कारण हेडगेवार ने आरएसएस में भी उसी संविधान को अपनाया. काकोरी कांड के कुछ ही समय बाद विजया दशमी के दिन नागपुर के एक छोटे से मैदान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पहला अधिवेशन हुआ जिसमें मात्र 5-6 लोगों ने हिस्सा लिया. प्रत्येक ग्रामों, कस्बों और शहरों में इस दल की एक शाखा खोलना और खुले मैदान में जाकर कसरत और मंत्रोच्चारण करना आरएसएस का मौलिक तत्व है.
केशव बलिराम हेडगेवार का निधन
21 जून, 1940 को टाइफॉयड के कारण केशव बलिराम हेडगेवार का निधन हो गया. उनके गृहनगर नागपुर में ही हेडगेवार को अंतिम विदाई दी गई.
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