
Posted On: 2 Oct, 2014 Politics में
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महात्मा गांधी का नाम कौन नहीं जानता है, एक ऐसा इंसान जिसने देश को अहिंसा का मार्ग दिखलाया, उन्हें स्वराज का अर्थ समझाया और अपनी एक-एक सांस देश के नाम कर दी. वैसे तो मोहनदास करमचंद गांधी कोई ऐसा नाम नहीं है जिसे भुला दिया जाए लेकिन स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्वों के अवसर पर ‘बापू’ के बलिदान, उनके आदर्शों को जरूर याद किया जाता है.
लेकिन यहां हम आपको जो बताने जा रहे हैं उसे सुनकर हर उस भारतीय जो महात्मा गांधी को स्वतंत्रता संग्राम का नायक मानता है, को थोड़ा अटपटा जरूर लगेगा। वैसे जो हम आपको बताने जा रहे हैं उससे हम भी कुछ ज्यादा इत्तेफाक नहीं रखते या यूं कहें वह हमारे लिए भी संदेहास्पद ही है लेकिन अब जब ऐसी चर्चाएं हो रही हैं तो हमारा भी कर्तव्य बनता है कि इन सब चर्चाओं से आपको अवगत करवाएं.
बहुत से लोगों का कहना है कि भारत को स्वतंत्रता दिलवाने में महात्मा गांधी का नहीं बल्कि एडोल्फ हिटलर का योगदान था. कई ऐसे भारतीय हैं जिनका मानना है कि महात्मा गांधी के अहिंसा आंदोलन का स्वतंत्रता से कोई लेना देना नहीं है जबकि भारत की स्वतंत्रता और दूसरे विश्वयुद्ध का आपस में बहुत गहरा संबंध है.
असल में 1944 को समाप्त हुए दूसरे विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप ब्रिटिश सेना काफी कमजोर हो गई थी. ऐसे हालातों में ब्रिटेन का भारत पर शासन करना और आने वाली कठिनाइयों का सामना करना काफी मुश्किल हो गया था. इसीलिए उन्होंने जल्द से जल्द भारत को आजाद करने का फैसला लिया. महात्मा गांधी के अहिंसा आंदोलनों की वजह से भारत को स्वतंत्रता मिलना वाकई मुश्किल था.
उदाहरण के तौर पर वर्ष 2011 में जब समाजसेवी अन्ना हजारे सशक्त लोकपाल बनाने जैसे मुद्दे को लेकर अनशन पर बैठे थे तब भी अन्ना हजारे ने कहा था कि वह मरते दम तक भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपनी लड़ाई जारी रखेंगे. शुरुआत में ऐसा माना जा रहा था कि अन्ना हजारे सरकार को कड़ी चुनौती देंगे और उनके आमरण अनशन के आगे सरकार झुक जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि कुछ दिनों बाद अन्ना को अपना अनशन तोड़ना पड़ा और भी बिना किसी मजबूत सरकारी आश्वासन के.
आशय स्पष्ट है कि अहिंसा के मार्ग पर चलकर गांधी जी के भारत को स्वतंत्रता दिलवाने जैसी बात बहुत से लोगों को बेमानी प्रतीत होती है.
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