भारतीय इतिहास में जिन शहीदों को सम्मानजनक जगह दी गयी है उन्हें आतंकवादी कहना कितना सही है और वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि वे गरमपंथी विचारधारा के थे और उनका आंदोलन अहिंसात्मक नहीं था. यू. के. के इतिहासकार और वारविक यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डेविड हार्डिमन ने ‘नॉन वॉयलेंस रेसिस्टेंस इन इंडिया ड्यूरिंग 1915-1947’ विषय पर लेक्चर देते हुए सरदार भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद को ‘क्रांतिकारी’ कहने की बजाय ‘आतंकी (टेरोरिस्ट)’ कह दिया. डेविड के शब्दों में, “गांधी जी के अहिंसा आंदोलन के साथ ही एक टेरोरिस्ट ग्रुप भी इस दौरान साथ रहा जिनमें फेमस भगत सिंह, चंद्रशेखर अजाद जैसे लोग थे”.
डेविड ने अपने शब्दों को क्लेरिफाई करते हुए कहा, “ये ग्रुप अक्सर बम विस्फोट, गोलीबारी आदि टेरोरिस्ट एक्ट में शामिल रहे. इसी कारण नॉन-वॉयलेंट मूवमेंट भी फायदे में रहा क्योंकि अथॉरिटीज को इन खतरनाक टेरोरिस्ट से डील करने से बेहतर अहिंसक आंदोलनकारियों से डील करना लगा.”
गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी देश दूसरे देशों और उनसे जुड़ी भावनाओं के लिए सम्मानित शब्द और भाषा का प्रयोग करते हैं. डेविड जैसे इतिहासकार प्रोफेसर का ऐसा कहना यह दर्शाता है कि ब्रिटेन में आज भी भारतीय आजादी के आंदोलनों को महत्त्वहीन समझा जाता है. ऐसा हो भी सकता है क्योंकि कभी शासक रहे देश का नागरिक होने के नाते डेविड जैसे ब्रिटिशर्स का एक गुलाम देश की आजादी के लिए लड़ रहे क्रांतिकारी के जज्बे को समझने की उम्मीद नहीं की जा सकती लेकिन देश के लिए अपनी जान देने वाले किसी शहीदों को ऐसे लोगों द्वारा आतंकवादी सम्बोधित किया जाना कहां तक सहनशील हो सकता है. लेक्चर में मौजूद भारतीय, वीर नर्मद साउथ गुजरात यूनिवर्सिटी में एक्जिक्यूटिव काउंसिल के मेंबर मेजर उमेश पांड्या ने डेविड के इन शब्दों पर आपत्ति जताई. पांड्या के अनुसार प्रोफेसर हार्डिमन ने टेरोरिस्ट शब्द को सात से आठ बार बोला जबकि पूरे विश्व में टेरेरिस्ट शब्द सिर्फ उनके लिए प्रयोग किया जाता है जो लोगों को डराते और उनकी हत्याएं करते हैं. भगत सिंह या चंद्रशेखर आजाद ने ऐसा कुछ भी नहीं किया लेकिन अगर हिंसात्मक आंदोलन के लिए उन्हें टेरोरिस्ट कहा जाता है तो सबसे पहले ब्रिटिश इण्डिया शासन और क्वीन विक्टोरिया के शासन को टेरोरिस्ट एक्ट कहा जाना चाहिए.
हालांकि डेविड का बचाव करते हुए प्रोफेसर घनश्याम शाह (राजनीतिक वैज्ञानिक और बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ऑफ सेंटर फॉर सोशल स्टडीज के सदस्य) ने कहा कि डेविड के शब्दों को गलत रूप में पेश करने की बजाय किसी और रूप में देखा जाना चाहिए. इनके अनुसार 1915-1947 गांधी जी के अहिंसात्मक आंदोलन का दौर था लेकिन भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, सुखदेव आदि जैसे कुछ लोग इससे अलग हिंसात्मक तरीके अपना रहे थे. इसलिए डेविड का भगत सिंह को टेरेरिस्ट कहना, आतंकी कहना या उनकी तुलना आज के जिहादी टेरोरिस्ट से करना न होकर अहिंसा आंदोलन से अलग एक हिंसात्मक एक्ट अपनाए जाने की बात कहना था.
डेविड के शब्दों का अर्थ जो भी हो लेकिन यह जरूर है कि खुलेआम यह भारतीय भावनाओं का अपमान है. देश के लिए शहीद होने वाले क्रांतिकारियों के लिए अगर वे ‘आतंकवादी’ जैसे शब्द का प्रयोग करते हैं तो 200 सालों तक बर्बर तरीके से शासन करने पर वे खुद के लिए किस ‘शब्द’ का प्रयोग करेंगे? बहस कीजिए अपने देश के सम्मान में. आपकी नजर में भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों का दर्जा क्या होना चाहिए? शाह का डेविड के शब्दों का बचाव करना जायज है? एक भारतीय होने के नाते आप डेविड को क्या जवाब देना चाहेंगे?
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