देश में चुनावी सरगर्मियां तेज हैं। एक ओर जहां पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटों पर उपचुनाव की भी घोषणा हो चुकी है। गोरखपुर और फूलपुर की लोकसभा सीटों के लिए 11 मार्च को वोटिंग होगी और नतीजे 14 मार्च को आएंगे। गोरखपुर सीट से योगी आदित्यनाथ और फूलपुर सीट से केशव प्रसाद मौर्य सांसद थे। योगी के यूपी का सीएम और केशव प्रसाद मौर्य के डिप्टी सीएम बनने के बाद ये दोनों सीटें खाली हो गईं थीं। ये दोनों लोकसभा सीटें हाईप्रोफाइल हैं। इन पर जीत दर्ज कर भाजपा अपनी लोकप्रियता बरकरार रहने का संदेश देना चाहेगी, तो विरोधी खेमा भाजपा को हराकर इसके उलट संदेश देने की जुगत में है। सीएम और डिप्टी सीएम की सीट होने के कारण यहां के चुनाव परिणाम पर सियासी गलियारों की नजर बनी हुई है। आइये आपको बताते हैं पिछले दो दशक से क्या रहा है इन दोनों सीटों का गणित।
फूलपुर सीट का इतिहास बेहद खास
फूलपुर में 2014 में बीजेपी ने पहली बार जीत दर्ज की थी, वहीं गोरखपुर में 1991 के बाद से बीजेपी का परचम लहराता रहा है। फूलपुर सीट का इतिहास अपने आप में बेहद खास है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू समेत कई बड़े दिग्गजों ने इस सीट का नेतृत्व किया है। वहीं, बीजेपी-बीएसपी के लिए भी ये सीट अहमियत रखती है। साल 1952,1957 और 1962 में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था। 1962 में नेहरू को टक्कर देने के लिए डॉ. राम मनोहर लोहिया उतरे, लेकिन करीब 55 हजार वोटों से हार गए।
1996 से 2014 तक तीन पार्टियों के पास रही फूलपुर सीट
पिछले 5 लोकसभा चुनाव की बात करें, तो साल 2014 में बीजेपी को जहां 52 % वोट मिले। वहीं, कांग्रेस, बीएसपी, एसपी के कुल वोटों की संख्या महज 43 % ही रह गई। 2014 लोकसभा चुनाव की मोदी ‘लहर’ से पहले बीजेपी एक बार भी ये सीट जीत नहीं सकी। 2014 में केशव प्रसाद मौर्य ने 5 लाख से भी ज्यादा वोटों से जीत हासिल की। अटकलें यह भी लगाई जा रही थीं कि इस सीट से बसपा अध्यक्ष मायावती चुनाव लड़ सकती हैं। ये वही सीट है जहां से सन् 1996 के लोकसभा चुनावों में बसपा के संस्थापक कांशीराम चुनाव हार गए थे। कांशीराम को समाजवादी पार्टी उम्मीदवार जंग बहादुर पटेल ने 16 हजार वोटों से हराया था। बसपा ने इस सीट पर अपना खाता 2009 के चुनाव में खोला, जब कपिल मुनि करवरिया ने 30 फीसदी वोट हासिल किए थे। इससे पहले 1996, 98, 99 और 2004 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा था।
29 साल से गोरखपुर सीट पर गोरक्षपीठ का दबदबा
पिछले 29 साल से गोरखपुर सीट पर लगातार गोरक्षपीठ का दबदबा रहा है। साल 1989 में पीठ के महंत अवैद्यनाथ ने हिंदू महासभा के टिकट पर चुनाव लड़ा और 10 फीसदी वोट शेयर के अंतर से जनता दल के उम्मीदवार रामपाल सिंह को मात दी थी। 1991 और 1996 के चुनाव में महंत अवैद्यनाथ ने भाजपा के टिकट से जीत हासिल की। इसके बाद 1998 से लगातार 2 दशक तक यानी अभी तक इस सीट पर भाजपा के टिकट पर योगी आदित्यनाथ काबिज हैं। पिछले 5 लोकसभा चुनाव परिणाम पर नजर डाले, तो 1998, 1999 में इस सीट पर भाजपा को समाजवादी पार्टी से टक्कर मिलती दिखी थी। मगर 2004 के बाद से भाजपा ने यहां एकतरफा जीत हासिल की है।…Next
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