उत्तर प्रदेश में दो सीटों पर हुए उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा है। ये दो सीटें सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर लोकसभा सीट थीं। लेकिन दोनों ही सीटों पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की जुगलबंदी ने बीजेपी की लहर को उड़ा ले गई। वैसे गुरखपुर में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जनता ने पहले भी गोरखपुर से आने वाला मुख्यमंत्री को उपचुनावों में हराया है।
जब मुख्यमंत्री विधानसभा उप-चुनाव में हारे
1971 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह मणिराम विधानसभा उप-चुनाव में हार गये थे। मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए चुनाव हारने वाले नेताओं में उनका नाम आता है। 18 अक्टूबर 1970 को संयुक्त विकास दल के नेता के तौर पर त्रिभुवन नारायण सिंह ने यूपी के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। उस समय वह किसी सदन के सदस्य नहीं थे। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, लेकिन फैसला उनके पक्ष में आया।
गोरखपुर लोकसभा सीट से लड़े नारायण सिंह
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि, छह महीने के अंदर उन्हें किसी सदन का सदस्य होना जरूरी है। ऐसे में 1969 में महंत दिग्विजयनाथ के निधन के बाद गोरखपुर लोकसभा सीट खाली थी। उनके उत्तराधिकारी महंत अवेद्यनाथ ने लोकसभा उपचुनाव में खड़े होने के लिए इस लोकसभा की ही मानीराम विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया। मनीराम सीट से चुनाव लड़ने के लिए महंत अवेद्यनाथ ने तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह को बुलाया, लेकिन जनता ने अपने ही मुख्यमंत्री का हरा दिया।
इंदिरा ने किया था रामकृष्ण द्विवेदी के लिए प्रचार
त्रिभुवन नारायण सिंह के सामने थे कांग्रेस विधायक रामकृष्ण द्विवेदी, इस दौरान उनके लिए प्रचार किया था उस दौरान की मुख्यमंत्री रही इंदिरा गांधी ने। दरअसल उस वक्त त्रिभुवन नारायण सिंह के समर्थकों ने इंदिर की रैल में अशोभनीय प्रदर्शन किया। उसका सहानुभूति वोट कांग्रेस उम्मीदवार रामकृष्ण द्विवेदी को मिल गया, मुख्यमंत्री लगभग16 हजार मतों से हार गये। इस कारण 4 अप्रैल 1971 को त्रिभुवन नारायण को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी।
ऐसी थी वोटों की संख्या
रामकृष्ण द्विवेदी को उस वक्त 33230 वोट मिले थे, वहीं टी.एन. सिंह को 17137 वोट ही मिले थे। इससे पहले 1969 में चुनाव हुए थे उसमें महंत अवैद्यनाथ ने रामकृष्ण द्विवेदी को 19644 वोटों से मात दी थी। अब 47 साल बाद गोरखपुर ने एक बार फिर इतिहास दोहराया है। बस अंतर इतना है कि 1971 में मुख्यमंत्री विधानसभा सीट हारा था और 2018 में मुख्यमंत्री लोकसभा सीट हारा है।…Next
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