Menu
blogid : 321 postid : 1104

प्रधानमंत्री मैं बनूंगा!!

भारत में होने वाले चुनाव में कई प्रकार की बातें खुल कर सामने आ रही हैं. रोज़ ही कोई ना कोई अपने आप को प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल कहता है. पता नहीं कितने प्रत्याशी हैं भारत में जो आने वाले चुनाव में खुद को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. राहुल गांधी से लेकर लालकृष्ण आडवानी तक सब अपनी किस्मत आजमाने में लगे हुए हैं और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी तो अपने आप को एक प्रबल दावेदार मानते ही हैं. राजनीति के इस हुजूम में देश का क्या होगा यह किसी को भी ध्यान नहीं है. यह एक बहुत बड़ा सवाल पैदा करता है कि जिस प्रकार की राजनीति भारत में हो रही है क्या वो सही मायनों में भारत को एक अच्छी दिशा की ओर ले जाएगी या फिर इसी प्रकार से सेंध लगता जाएगा.


Read:ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजिए !!!


modi rahulपरंपरा का ऐसा चलन: भारतीय राजनीति पूरी तरह से परंपरा पर आधारित है. यहां पर पारंपरिक वोटों का चलन है जो कई वर्षों से एक निर्दिष्ट खेमे को अपना मत देते आ रही है भले ही उस पक्ष ने कोई खास काम किया हो या नहीं बस एक अदृश्य लगाव की वजह से उन्हें पाला जा रहा है. इस पंरपरा में सबसे पहले कांग्रेस का नाम आता है जो इस देश की सबसे पुरानी पार्टी होने के साथ-साथ भारत को स्वतंत्रता दिलाने में मुख्य रूप से क्रियाशील भी थी. एक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भाव सभी भारतीयों के दिल में है जो कांग्रेस के प्रति उनका लगाव जाहिर करता है. शायद देश के राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के जुड़ाव की वजह से लोग इससे अपना लगाव समझते हैं. इसके बाद कई सारे ऐसे दल या समुदाय आए भारत में जो सहानुभूति और कुछ कारणों से अपना समर्थन बना पाए लोगों में और अपनी सरकार का गठन करने में सफल रहे. कभी जातिवाद तो कभी किसी प्रकार की अलगाववादी मांग को लेकर छाए रहने वाले दल भी अच्छा समर्थन जुटा लेते हैं.


Read:सब्सिडी की आंच पर “रोटियां” सेंकने की तैयारी


राजनीति की प्रक्रिया: जैसे कि भारत को विभिन्नताओं का देश कहा जाता है इस बात की पुष्टि मात्र आज भारत की राजनीति ही कर सकती है. यहां ऐसे हज़ारों रंग फैले हैं जो अनेकता में एकता की नई परिभाषा देते हैं. यह नई परिभाषा कुछ इस प्रकार की है जो नवीन भारत की छवि पूरे विश्व के सामने रख रही है पर इसका प्रभाव सकारात्मक नहीं है. परिणामतः विश्व राजनीति में भारत की छवि हो रही है. जहां दल बदलू नेताओं की अधिकता होती जा रही है वहीं राजनीति किसी भी प्रकार से जनता और संसदीय कार्यवाही में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पा रही है. इसकी वजह से विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के लोगों का राजनीति पर से विश्वास उठता जा रहा है. इस अवस्था में देश किस प्रकार प्रधानमंत्री का चुनाव कर सकेगा इस बात का फैसला भविष्य के गर्भ में छिपा है. कहीं ना कहीं कुछ दावेदारों की दावेदारी भी एक बड़ा प्रश्न है जो भारत की तात्कालिक अवस्था को उजागर करती है कि किस प्रकार की राजनीति से आज भारत जूझ रहा है और आधुनिकता के नाम पर किए जा रहे प्रयोग किस तरह एक विशाल लोकतंत्र की हानि कर रहे हैं.


Read More:

यहां अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है!

क्या एफडीआई के पीछे यही सब है ?

कितने आदमी थे? हा हा हा हा………



Tags:Narendra Modi, Narendra Modi And  Shweta Bhatt, Manmohan Singh, Rahul Gandhi, Prime Minister , Election, Gujrat, Gujrat Election 2012, Gujrat Election News, नरेन्द्र मोदी, नरेन्द्र मोदी श्वेता भट्ट, गुजरात, चुनाव, गुजरात चुनाव, नरेन्द्र मोदी गुजरात एलेक्सन, मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री, राहुल गांधी

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh