कहा जाता है राजनीति में कोई किसी का स्थायी शत्रु या मित्र नहीं होता। अपने फायदों के हिसाब से दोस्ती और दुश्मनी बनती-बिगड़ती रहती है।
ऐसे में राजनीति में आए दिन काफी खबरें सुनने को मिलती है कि किसी दो पार्टियों के बीच काफी समय से तनातनी थी लेकिन चुनाव पास आते ही दोनों ने हाथ मिला लिया। ऐसी ही खबरें आंध्र प्रदेश से भी आ रही हैं।
15 साल के अंतराल के बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलुगू देशम पार्टी के प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू एक बार फिर राष्ट्रीय राजनीति में वापसी करने के लिए तैयार हैं। उनकी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ हुई बैठक और उसके बाद आगामी चुनाव में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की बात ने बीजेपी के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं। ये पहला मौका नहीं है, जब चंद्रबाबू नायडू ने पाला बदला है। बल्कि राजनीति में उन्हें गठबंधन उस्ताद के तौर पर देखा जाता है।
1984 में कांग्रेस को हराया था
चंद्रबाबू नायडू कांग्रेस के खिलाफ थे। नायडू अपने विरोधी YSR कांग्रेस को कांग्रेस का ही रुप कहते थे। इतना ही नहीं, टीडीपी वहीं पार्टी है जिसने 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस को हराया था।
कांग्रेस से राजनीति पारी शुरू करने वाले चंद्रबाबू ने इन मौकों पर बदला पाला
साल 1996 में कर्नाटक के नेता एच डी देवेगौड़ा को प्रधानमंत्री पद तक पहुँचाने के लिए जिस सेक्युलर मोर्चे को श्रेय दिया जाता है उसमें तमाम अलग-अलग पार्टियों को एकजुट करने का अहम काम नायडू ने ही किया था। नायडू ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत साल 1978 में कांग्रेस के टिकट से आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़कर ही की थी। साल 1980 में वे राज्य की कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रहे थे जिसके चलते वे तेलुगू फ़िल्मों में बड़ा नाम रखने वाले एनटी रामाराव की बेटी से शादी भी कर सके। साल 1982 में एनटीआर ने अपनी क्षेत्रीय पार्टी तेलुगू देशम पार्टी बनाई और कांग्रेस को उसी गढ़ में मात देने में कामयाबी पाई। हालांकि उस समय नायडू ने एनटीआर की बजाय कांग्रेस का साथ दिया और उसी के टिकट पर चुनाव भी लड़ा, जिसमें वे हार गए।
चंद्रबाबू का हाथ कांग्रेस के साथ राजनीति में क्या कमाल कर पाता है, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा…Next
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