देश में कई ऐसे प्रत्याशी रहे हैं जो देश के टॉप लीडर्स के भारी समर्थन और रैलियों में शामिल होने के बावजूद भी चुनाव जीत नहीं सके। ऐसी ही कहानी है पटौदी के नवाब की। दरअसल, हम बात कर रहे हैं क्रिकेट की दुनिया में शोहरत हासिल करने के बाद पॉलिटिक्स में उतरने वाले मशहूर शख्सियत मंसूर अली खान पटौदी की। नवाब पटौदी के नाम से चर्चित रहे इस शख्स का आज यानी 5 जनवरी को जन्मदिन है।
चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए
क्रिकेट की दुनिया में तहलका मचाने वाले मंसूर अली खान पटौदी का जन्म 5 जनवरी 1941 को भोपाल के नवाबी खानदान में हुई थी। चांदी का चम्मच लेकर पैदा होने की कहावत मंसूर अली खान पर सटीक बैठती है। तमाम सुख सुविधाऔं से लैस और आलीशान जिंदगी के हकदार मंसूर अली खान बेहद प्रतिभाशाली और महत्वाकांक्षी थे। देहरादून और इंग्लैंड से शिक्षा हासिल करने के बाद जब वह इंग्लैंड से भारत लौटे तो अपने साथ क्रिकेट का जुनून लेकर आए। इस दौरान उन्हें पटौदी स्टेट का नवाब बना दिया गया।
फैंस की डिमांड पर लगाते थे बाउंड्री
आजादी के बाद भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बने मंसूर अली खान को मात्र 21 वर्ष की उम्र में कप्तानी मिल गई। तेजतर्रार बल्लेबाज के तौर पर मशहूर रहे नवाब पटौदी जहां चाहते थे वहां बाउंड्री मारते थे। कहा जाता है कि उनमें इतनी काबिलियत थी कि वह दर्शकों की डिमांड पर और उनकी ही दिशा में छक्का जड़ देते थे। 46 टेस्ट मैच खेलने वाले मंसूर अली खान के नाम विदेशी धरती पर पहली बार भारत को जीत दिलाने का कीर्तिमान दर्ज है।
लोकप्रियता को चुनाव में लगा झटका
क्रिकेट में शोहरत हासिल करने वाले नवाब पटौदी जनता में काफी लोकप्रिय थे और वह अपने क्षेत्र में बेहद सम्मानित व्यक्ति थे। अपने करीबी मित्रों की सलाह पर मंसूर अली खान ने राजनीति में उतरने का मन बनाया। वह पहली बार 1971 में विधानसभा चुनाव में पटौदी स्टेट चुनाव क्षेत्र से मैदान में उतरे। लेकिन इस चुनाव में नजीदीकी अंतर से हार का सामना करना पड़ा। इस हार से उनकी सम्मान को काफी धक्का पहुंचा और उन्होंने राजनीति में नहीं रहने का मन बना लिया।
पीएम के प्रचार के बाद भी हार गए चुनाव
लंबे समय तक राजनीति से दूरी रखने के वाले मंसूर अली खान को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने संपर्क किया और 1991 के लोकसभा चुनाव में अपना प्रत्याशी बनाने का प्रस्ताव दिया। पिछली हार से आहत मंसूर अली खान ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया। काफी मान मनौव्वल के बाद मंसूर अली खान इस बात पर राजी हुए कि उनके समर्थन में प्रधानमंत्री राजीव गांधी को रैली करनी होगी। राजीव गांधी के रैली के बाद भी चुनाव नतीजे मंसूर अली खान के पक्ष में नहीं आए और वह भाजपा प्रत्याशी से हार गए।…NEXT
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