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आजाद हिन्द फौज में शामिल होने के लिए युवाओं में लगी थी होड़, नेताजी को दान में मिला था 80 किलो से ज्यादा सोना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजाद हिंद सरकार की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर साल में दूसरी बार लाल किले पर तिरंगा फहराया। इस कार्यक्रम में आजाद हिंद फौज के कई वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी, नेता जी सुभाष चंद्र बोस के रिश्तेदार चंद्र बोस मौजूद रहे। ऐसे में 75 साल पहले बनाई गई आजाद हिन्द फौज से जुड़े किस्से एक बार फिर से चर्चा में आ गए। आइए, जानते हैं इससे जुड़ी खास बातें।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal22 Oct, 2018

 

 

 

भारत नहीं, जापान में हुई थी स्थापना
अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई को तेज करने के लिए आजाद हिंद फौज की स्थापना की गई थी। खास बात यह है कि इस फौज की स्थापना भारत में नहीं, बल्कि जापान में की गई थी। आजाद हिंद फौज की स्थापना टोक्यो (जापान) में 1942 में रासबिहारी बोस ने की थी।
उन्होंने 28 से 30 मार्च तक फौज के गठन पर विचार के लिए एक सम्मेलन बुलाया और इसकी स्थापना हुई। इसका उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना था। आजाद हिंद फौज का जापान ने काफी सहयोग दिया और इसमें देश के बाहर रह रहे लोग इस सेना में शामिल हो गए। कहा जाता है कि आजाद हिंद फौज की स्थापना का विचार सबसे पहले मोहन सिंह के मन में आया था।

 

 

इस फौज में भर्ती होने के लिए युवाओं में लगी थी होड़
इस फौज में 85000 सैनिक शामिल थे और कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन के नेतृत्व वाली महिला यूनिट भी थी। पहले इस फौज में उन भारतीय सैनिकों को लिया गया था, जो जापान की ओर बंदी बना लिए गए थे। बाद में इसमें बर्मा और मलाया में स्थित भारतीय स्वयंसेवक भी भर्ती किए गए।
सुभाष चंद्र बोस के रेडियो पर किए गए एक आह्वान के बाद रासबिहारी बोस ने 4 जुलाई 1943 को 46 वर्षीय सुभाष को इसका नेतृत्व सौंप दिया। 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में अस्थायी भारत सरकार ‘आजाद हिन्द सरकार’ की स्थापना की। बोस इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सेनाध्यक्ष तीनों थे। इस सरकार को जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दे दी थी।

 

 

नेताजी को दान में मिला था 80 किलो से ज्यादा सोना
नेताजी रहस्यगाथा पर लिखी किताब ‘इंडियाज बिगेस्ट कवर-अप’ के मुताबिक आजाद हिंद फौज को बनाने के लिए पूरे देश ने नेताजी को करोड़ों रुपए का चंदा और 80 किलो से ज्यादा गोल्ड दान में मिला था। 1951 में एक जापानी अखबार ने खजाने की वैल्यू तकरीबन साढ़े पांच करोड़ रुपए आंकी थी। नेताजी के आखिरी जन्मदिन 23 जनवरी 1945 पर जब खजाना तुलवाया गया था, तो नेताजी के वजन से ज्यादा था। नेताजी की लंबाई 5 फुट 10 इंच थी और वजन तकरीबन 75 किलो था। सरकारी दस्तावेजों में दर्ज है कि अगस्त 1945 में नेताजी की मौत के बाद सरकार के हाथ जो खजाना लगा, वह मात्र 8-10 किलो का ही था। कहा जाता है कि सोने पर पहले से कई लोगों की नजर थी और सोना गायब करने में कई लोगों का नाम आया था…Next

 

 

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