देश के पहले गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का आज जन्मादिन है। उनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ था। देश में उनके जन्मदिवस पर तमाम कार्यक्रम अायोजित किए जा रहे हैं। सरदार पटेल का जन्मदिन उत्साह से मनाया जा रहा है। आमतौर पर जब हम वल्लभ भाई पटेल का नाम लेते हैं, तो उनके नाम के आगे सरदार जरूर लगाते हैं। मगर क्या आपको पता है कि ‘सरदार’ नाम उन्हें बचपन से नहीं मिला है। वल्लभ भाई पटेल को सरदार नाम ब्रिटिश हुकूमत के एक फैसले का विरोध करने के कारण मिला। आइये आपको बताते हैं वल्लभ भाई पटेल के ‘सरदार’ बनने की यह रोचक कहानी।
महिलाओं ने दी उपाधि
वल्लभ भाई पटेल के सरदार बनने की कहानी बारडोली सत्याग्रह से जुड़ी है। बारडोली सत्याग्रह भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान वर्ष 1928 में हुआ एक प्रमुख किसान आंदोलन था, जिसका नेतृत्व वल्लभ भाई पटेल ने किया था। दरअसल, 1928 में प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी थी। इसके बाद वल्लभ भाई पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। हालांकि, ब्रिटिश हुकूमत वाली सरकार ने इस सत्याग्रह को कुचलने के लिए कई बड़े कदम उठाए। मगर वल्लभ भाई पटेल की दृढ़ता के आगे अंग्रेजी सरकार लाचार हो गई और अंततः विवश होकर किसानों की मांगों को मानना पड़ा। दो अधिकारियों की जांच के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने 30 फीसदी लगान को गलत माना और उसे घटाकर 6 फीसदी कर दिया। इसी आंदोलन के बाद वल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार’ नाम मिला। सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद यहां की महिलाओं ने वल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि दे दी।
खरीदी थी 22 बीघा जमीन
कभी-कभी महात्मा गांधी भी आकर ठहरा करते थे। इस मकान से कुछ दूरी पर एक और भवन है, जहां स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी, सरदार पटेल और पंडित जवाहरलाल नेहरू बैठक किया करते थे।
सरदार पटेल की याद में बना है म्यूजियम
बारडोली सत्याग्रह की नींव रखने वाले सरदार पटेल की याद में यहां म्यूजियम बनाया गया है। यह म्यूजियम 18 कमरों का है, जहां सरदार वल्लभ भाई पटेल की दुर्लभ तस्वीरें हैं। उनकी इन दुर्लभ तस्वीरों को देखने की कीमत मात्र एक रुपये है, लेकिन इस म्यूजियम को देखने आने वालों की संख्या न के बराबर है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आश्रम के ट्रस्टी बताते हैं कि सरकार से आश्रम के विकास के लिए कहा गया है। अगर बारडोली को पर्यटन की दृष्टि से बढ़ाया जाए, तो सरदार पटेल की कर्मभूमि को विश्व पटल पर पहचान मिल जाएगी। सरदार पटेल के अनुयायी चाहते हैं कि उनकी इस कर्मभूमि को उसी तरह विकसित किया जाए, जिस तरह से महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम को पहचान दी गई…Next
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