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वो था सितंबर विवेकानंद का………….ये है सितंबर नरेन्द्र मोदी का

बीतता है समय यूँ ही

इतिहास बदलते रहते हैं

कुछ, चलना छोड़ देते हैं

और कुछ बढ़ते ही जाते हैं.


नरेंद्र दामोदारदास मोदी। करोड़ों की भीड़ में एक व्यक्ति जो वर्षों पहले अकेला चला था अपनी राह पर; रपटीली और जहरीली इस राह पर चलते हुए जिसने अपना रास्ता खुद बनाया और आज जिसके पदचिन्हों पर चलने को बेताब है एक पूरी कायनात. बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने आनंदमठ को खत्म करते हुए भारतवासियों को जिस समय की प्रतीक्षा करने को कहा है शायद वह समय अब आ गया है. आनंदमठ के शब्दों से निकला बंकिम का सपना आज वास्तविक आकार ले रहा है. और ऐसा जिस व्यक्ति के कारण हो रहा है वो है मोदी…जी हाँ, नरेंद्र दामोदरदास मोदी.



वर्ष 1893 में एक व्यक्ति शिकागो धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए अमेरिकी सड़कों की खाक छान रहा था. तब भारत जाना जाता था साँप-सपेरों वाले देश के रूप में. वहाँ जाकर विवेकानंद को यह पता चला कि बिना किसी नामचीन व्यक्ति के प्रमाणपत्र के कोई भी व्यक्ति धर्म-संसद में किसी धर्म का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता. उनके पास ऐसा कोई प्रमाणपत्र नहीं था. उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वो सितंबर में होने वाले धर्म-संसद के लिए एक-दो महीने पहले से शिकागो में रहते जो काफी महँगा शहर था. किसी ने उनकी मुलाकात हार्वड विश्वविद्यालय में यूनानी के प्रोफेसर जे.एच.राईट से करवाई. चार घंटे विवेकानंद से बातचीत के बाद वो प्रोफैसर उनसे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनके रहने और खाने का इंतज़ाम कर दिया. तब विवेकानंद ने प्रमाणपत्र की अपनी समस्या बताई. इस पर उस प्रोफेसर ने तत्काल ही प्रतिनिधियों को चुनने वाली समिति के अध्यक्ष को लिखा और कहा कि आपसे प्रमाणपत्र माँगना कुछ वैसा ही है जैसा सूर्य से उसकी चमकने के अधिकार के बारे में पूछना. वैसा ही हुआ, शिकागो के धर्म-संसद में उसके संबोधन के बाद न्यूयॉर्क की सड़कों पर बड़े-बड़े पोस्टर लगे थे जिस पर उनकी बड़ी सी तस्वीर और उसके देश का नाम था. भारत को गौरवान्वित करने वाले वह व्यक्ति और कोई नहीं स्वामी विवेकानंद थे.


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आज, करीब 120 वर्षों बाद फिर वह समय आया है जब ससम्मान किसी भारतीय को अमेरिका ने अपने यहाँ आने का न्यौता दिया है. वर्ष बीता है, पर महीना वही है जब विवेकानंद ने धर्मसंसद को संबोधित किया था. मोदी राजनीति से जुड़े हैं इसलिए अपेक्षाएँ भी उनसे बड़ी है.




साभार- किशन रेड्डी के फेसबुक वॉल से

हालांकि, मोदी पहली बार अमेरिका नहीं गए हैं. इससे पहले भी वो अमेरिका जा चुके हैं. पर, तब वो भारतीय प्रधानमंत्री नहीं थे. वर्ष 1994 के सितंबर में कभी व्हाइट हाउस के बाहर अपने दोस्तों के साथ तस्वीर खिंचवाने वाले मोदी आज उसी व्हाइट हाउस के अतिथि होंगे. तब शायद ही उनके दोस्तों में से किसी को यह विश्वास रहा होगा कि जिसके साथ वो व्हाइट हाउस के गेट पर तस्वीर खिंचवा रहे हैं वो एक दिन इस अदब के साथ अंदर जाएगा. यह भी संयोग ही है कि मोदी का यह अमेरिका दौरा तब हो रहा है जब भारत के कई राज्य नवरात्र मना रहे हैं. मोदी भी नवरात्र का व्रत रखते हैं इसलिए वो बराक ओबामा के निजी भोज पर खाने में सिर्फ नींबू पानी, शहद और चाय लेंगे.


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साभार- किशन रेड्डी के फेसबुक वॉल से



सच यही है कि मान्यताएँ और धारणाएँ ऐसे ही बनती है. भारतवासियों को विश्व के नेतृत्व का जो काम स्वामी विवेकानंद ने शुरू किया था उसी काम को उनके अनुयायी और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब आगे बढ़ाएँगे.

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