जब भी राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़े किस्सों के बारे में बात होती है, तो लालकृष्ण आडवाणी का जिक्र भी जरूर होता है। दोनों से राजनीति जगत के ऐसे किस्से जुड़े हुए हैं, जो आज भी सुनने में दिलचस्प लगते हैं।आइए, जानते है लालकृष्ण आडवाणी से जुड़े किस्से।
पाकिस्तान के कराची में हुआ जन्म
लालकृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को उस समय के एकीकृत हिन्दुस्तान के कराची शहर में हुआ। लालकृष्ण आडवाणी का सिंधी में नाम लाल किशनचंद आडवाणी है। कराची के सेंटर पैट्रिक्स हाई स्कूल और सिंध में हैदराबाद के डीजी नेशनल कॉलेज से पढ़ाई करने वाले आडवाणी ने बंबई युनिवर्सिटी के गवर्मेंट लॉ कालेज से स्नातक किया।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के तौर पर शुरु का करियर
आडवाणी को 1947 में कराची में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में सचिव बनाया गया। इसके साथ ही उन्हें मेवाड़ भेजा गया, जहां सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे। 1951 में जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की तो आडवाणी इसके सदस्य बन गए। जनसंघ में कई पदों पर अपनी सेवाएं देने के बाद आडवाणी 1972 में इसके अध्यक्ष चुने गए।
ऐसे हुई थी आडवाणी-वाजपेयी की पहली मुलाकात
अटल जी 1952 में जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ राजस्थान के कोटा से ट्रेन से गुजर रहे थे। उस वक्त आडवाणी संघ के प्रचारक थे। ट्रेन में ही दोनों की पहली मुलाकात हुई। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अटल और आडवाणी का परिचय एक-दूसरे से करवाया। उसके बाद करीब 65 सालों तक दोनों दिग्गज नेताओं ने साथ काम किया और वक्त के साथ ही उनकी दोस्ती भी गहराती गई। आडवाणी और अटल ने साथ मिलकर जनसंघ को मजबूत करने के लिए काम किया। दोनों की छवि हिंदुत्ववादी की थी, दोनों के बहुत से विचार एक-दूसरे से मेल नहीं खाते थे, लेकिन दोनों के बीच कभी भी मनभेद नहीं हुआ। अटल जी ज्यादातर फैसले आडवाणी से सलाह करने के बाद लेते थे। आपातकाल के दौरान भी दोनों नेता एक साथ जेल में रहे। दोनों ने एक साथ साल 1977 में जनता दल की टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ा था। जनता दल की सरकार में वाजपेयी विदेश मंत्री बने तो आडवाणी को सूचना एवं प्रासरण मंत्रालय दिया गया। दोनों ने जनता पार्टी से अलग होकर बीजेपी का गठन किया। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पहले अध्यक्ष अटल जी बने।
विचारों में मतभेद के बाद भी दिखाई देते थे एक साथ
आडवाणी और अटल दोनों ही अयोध्या में राम मंदिर बनाने के पक्षधर थे, लेकिन अटल कट्टर हिंदुत्व की राजनीति को कभी सही नहीं मानते थे। 80 के दशक का वक्त ऐसा था जब धीरे-धीरे आडवाणी का कद बीजेपी में अटल से बड़ा होता गया, लेकिन उसके बाद भी दोनों में कभी भी मनभेद नहीं हुए। 1992 में अयोध्या में हुए बाबरी मस्जिद कांड को लेकर अटल बिल्कुल भी सहज नहीं थे, यह वो समय था जब अटल और आडवाणी के बीच थोड़े मतभेद हुए, लेकिन 1995 तक दोनों की दोस्ती एक बार फिर मजबूत हो गई। 1995 में आडवाणी ने ही मुंबई में बीजेपी के अधिवेशन में पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर बहुत बड़ा ऐलान किया। उन्होंने घोषणा कर दी कि 1996 में बीजेपी अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ेगी। आडवाणी अक्सर ही अटल जी की तारीफ करते थे। वह अटल जी को बहुत ही प्रभावशाली वक्ता मानते थे, जो कि पूरा देश मानता है। आडवाणी ने एक इंटरव्यू में यह तक भी कहा था कि जब उन्होंने अटल जी को पहली बार बोलते सुना था तब उन्हें लगा था कि कहीं वह गलत पार्टी में तो नहीं आ गए।
2005 में छोड़ा पार्टी अध्यक्ष का पद
2004 में अटलबिहारी वाजपेयी के सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने के बाद आडवाणी बीजेपी के सबसे बड़े और प्रमुख नेता बन गए। दिसंबर 2005 में मुंबई में आयोजित बीजेपी के सिल्वर जुबली कार्यक्रम में आडवाणी ने पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ दिया और राजनाथ सिंह को बीजेपी अध्यक्ष बनाया गया।
बीजेपी के लक्ष्मण कहे जाते थे आडवाणी
एक समय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को बीजेपी का राम और आडवाणी को लक्ष्मण कहा जाता था। साल 2002 से 2004 के बीच आडवाणी देश के उप-प्रधानमंत्री रहे। लालकृष्ण आडवाणी कभी पार्टी के कर्णधार कहे गए, कभी लौह पुरुष और कभी पार्टी का असली चेहरा। हालांकि, आज राजनीति के समीकरण बदल चुके हैं और लालकृष्ण आडवाणी की राजनीति में सक्रिय भूमिका नहीं रही…..Next
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