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इस भाषण से प्रभावित होकर मायावती से मिलने उनके घर पहुंच गए थे कांशीराम, तब स्कूल में टीचर थीं बसपा सुप्रीमो

राजनीति एक ऐसी मायावी दुनिया है, जहां कब कोई नई घटना घट जाए, कहा नहीं जा सकता। यहां जो आज राजा है वो कल रंक बन जाए, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। कई राजनेताओं की जिंदगी को देखकर ये बात समझी जा सकती है। आज राजनीति के एक खास चेहरे का जन्मदिन है, मायावती। जिनके साथ कई विवाद भी जुड़े हुए हैं। हाल ही में सपा के साथ हुए गठबंधन को लेकर बसपा सुप्रीमो का नाम चर्चा में है।  ऐसे में मायावती से जुड़ी कई घटनाएं ताजा हो रही है। आइए, जानते हैं बसपा सुप्रीमो की कैसे हुई थी राजनीति में एंट्री।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal15 Jan, 2019

 

 

अभिव्यक्ति से प्रभावित हुए थे कांशीराम
मायावती की कांशीराम से मुलाकात और उनके राजनीति में आने की भी दिलचस्प कहानी है। 1977 में सितंबर की बात है। जनता पार्टी ने दिल्ली के कांस्टिट्यूशन क्लब में ‘जाति तोड़ो’ नाम से एक तीन दिवसीय सम्मलेन आयोजित किया। इसमें मायावती भी शामिल हुईं। इस सम्मलेन का संचालन तत्कािलीन केंद्रीय मंत्री राजनारायण खुद कर रहे थे। वह कार्यक्रम में बार-बार हरिजन शब्द का प्रयोग कर रहे थे। मायावती को राजनारायण के हरिजन शब्द के प्रयोग से आपत्ति थी। जब मायावती मंच पर अपनी बात रखने आईं तो सबसे पहले उन्होंने हरिजन शब्द पर आपत्ति जताई और कहा की एक तरफ तो आप जाति तोड़ने की बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ आप इस शब्द का प्रयोग कर रहे हैं। यह शब्द ही दलितों में हीनता का भाव जगाता है। उनके इस भाषण से राजनारायण समेत सम्मेलन में मौजूद सभी लोग खासे प्रभावित हुए।

 

मायावती से मिलने घर जा पहुंचे थे कांशीराम
इस सम्मेलन में मौजूद बामसेफ (बैकवर्ड एंड माइनॉरिटीज एमप्लाइज कम्यूनिटीज फेडरेशन) के कुछ नेताओं ने प्रभावित होकर यह बात कांशीराम को बताई। बामसेफ के निर्माण में कांशीराम की अहम भूमिका थी। इसके बाद कई कार्यक्रमों में कांशीराम ने खुद मायावती के विचार सुने और एक दिन एकाएक वह खुद मायावती के घर पहुंच गए।

 

मायावती उस समय टीचर की नौकरी के साथ एलएलबी भी कर रही थीं। कांशीराम ने सीधे पूछा कि पढ़कर क्या बनना चाहती हो तो मायावती का जवाब था आईएएस बनकर अपने समाज की सेवा करना चाहती हूं। कांशीराम ने कहा कि कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि देश और प्रदेश की सरकारें जो चाहेंगी वही करना होगा और हमारे समाज में कलेक्टर की कमी नहीं है। कमी है तो एक ऐसे नेता की जो उनसे काम करवा सके। कांशीराम की बातों से प्रभावित होकर उन्होंने कलेक्टर बनने का सपना छोड़ दिया और नेता बनने की ठान ली…Next

 

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