राजनीति में ऐसे कई किस्से होते हैं, जो इतिहास बन जाते हैं। इनमें से कुछ किस्से ऐसे होते हैं, जो रहस्यमय होते हैं, जिनके बारे में जब भी बात होती है तो कई तरह की थ्योरी सुनने को मिलती है। लोग अपनी तरह से घटना को किसी कहानी से जोड़कर देखने लगते हैं।राजनीति में ऐसी ही एक घटना है भारत के पीएम लाल बहादुर शास्त्री की मौत की घटना। आज के दिन शास्त्री जी दुनिया को अलविदा कह गए थे। इनकी मौत से जुड़ी घटना आज भी एक पहेली ही है। लेखक और पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने अपनी आत्मकथा में इस घटना का जिक्र किया है। ताशकंद समझौता और वो घटना तत्कालीन सोवियत रूस के अंतर्गत आने वाले ‘ताशकंद’ में 10 जनवरी 1966 को भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पड़ोसी पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच बातचीत मुकर्रर हुई।
शास्त्री जी की मौत का आंखों देखा हाल!
ताशकंद में भारतीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल रहे वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर इस घटना का जिक्र अपनी आत्मकथा ‘बियॉन्ड द लाइंस (Beyond the Lines)’ में करते हुए लिखते हैं, ”आधी रात के बाद अचानक मेरे कमरे की घंटी बजी। दरवाजे पर एक महिला खड़ी थी। उसने कहा कि आपके प्रधानमंत्री की हालत गंभीर है. मैं करीबन भागते हुए उनके कमरे में पहुंचा, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. कमरे में खड़े एक शख़्स ने इशारा से बताया कि पीएम की मौत हो चुकी है”। उस ऐतिहासिक समझौते के कुछ घंटों बाद ही भारत के लिए सब कुछ बदल गया। विदेशी धरती पर संदिग्ध परिस्थितियों में भारतीय पीएम की मौत से सन्नाटा छा गया। लोग दुखी तो थे ही, लेकिन उससे कहीं ज्यादा हैरान थे।
जांच की कोई रिपोर्ट नहीं!
लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद तमाम सवाल खड़े. उनकी मौत के पीछे साजिश की बात भी कही गई. खासकर जब शास्त्री जी की मौत के दो अहम गवाहों, उनके निजी चिकित्सक आर एन चुग और घरेलू सहायक राम नाथ की सड़क दुर्घटनाओं में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई तो यह रहस्य और गहरा गया. लाल बहादुर शास्त्री की मौत के एक दशक बाद 1977 में सरकार ने उनकी मौत की जांच के लिए राज नारायण समिति का गठन किया. इस समिति ने तमाम पहलुओं पर अपनी जांच की, लेकिन आज तक इस समिति की रिपोर्ट का अता-पता नहीं है.
ऐसे में लाल बहादुर शास्त्री की मौत राजनीति के गलियारों में मौजूद कई पहेलियों में से एक है…Next
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