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बाबा साहब ऐसे बने थे ‘अंबेडकर’, जानें इसके पीछे की कहानी

संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने देश को सामाजिक समानता का रास्‍ता दिखाया। उन्‍होंने विज्ञान और तकनीक के जरिये देश के विकास का सपना देखा था। हम सम्‍मान से उन्‍हें बाबा साहब कहते हैं। उनकी जिंदगी से जुड़े अनेक किस्‍से हैं। उन्‍हीं में से एक किस्‍सा है उनके नाम में ‘अंबेडकर’ जुड़ने का। बहुत कम लोगों को पता होगा कि डॉ. भीमराव का सरनेम पहले ‘सकपाल’ था। बाद में उनका सरनेम आंबेडकर हुआ, जिसके बाद उनका पूरा नाम डॉ. भीमराव अंबेडकर लिखा जाने लगा। आइये आपको बताते हैं डॉ. भीमराव के अंबेडकर बनने का किस्‍सा।


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पहले सरनेम था ‘सकपाल

डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के छोटे से गांव महू में हुआ था। 6 दिसंबर 1956 को 65 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। बाबा साहब के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था। इस वजह से शुरू में उनका सरनेम सकपाल था। अब सवाल उठता है कि फिर उनका सरनेम अंबेडकर कैसे हुआ।


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महार जाति में हुआ था जन्‍म

बाबा साहब का जन्म महार जाति में हुआ था, जिसे उस समय लोग अछूत और निचली जाति मानते थे। अपनी जाति के कारण उन्हें सामाजिक दुराव भी सहन करना पड़ा। प्रतिभाशाली होने के बावजूद स्कूल में उनको छुआ-छूत के कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। इसे देखते हुए उनके पिता ने स्कूल में उनका उपनाम ‘सकपाल’ की बजाय ‘आंबडवेकर’ लिखवाया। इसके पीछे की वजह यह थी कि वे कोंकण के अंबाडवे गांव के मूल निवासी थे। उस क्षेत्र में उपनाम गांव के नाम पर रखने का प्रचलन था। इस तरह भीमराव सकपाल का नाम आंबडवेकर उपनाम से स्कूल में दर्ज किया गया।


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शिक्षक ने दिया ‘आंबेडकर’ सरनेम

एक ब्राह्मण शिक्षक को विशेष स्नेह था। इस स्नेह के चलते ही उन्होंने बाबा साहब के नाम से ‘अंबाडवेकर’ हटाकर उसमें अपना उपनाम ‘आंबेडकर’ जोड़ दिया। इस तरह उनका नाम भीमराव आंबेडकर हो गया, जिसके बाद उन्‍हें अंबेडकर बोला जाना लगा। बताया जाता है कि 1898 में पुनर्विवाह के बाद वे परिवार के साथ बंबई यानी मुंबई चले गए। वहां एल्फिंस्टन रोड स्थित गवर्नमेंट हाईस्कूल के पहले ऐसे छात्र थे, जिसे उस समय अछूत माना जाता था।


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नई तकनीक के इस्तेमाल के थे पक्षधर

बताया जाता है कि बाबासाहब नई तकनीक के इस्तेमाल के पक्षधर थे। डॉ. अंबेडकर देश के तकनीकी विकास के लिए संकल्पित थे। उन्होंने पहले संसदीय चुनाव (1951-52) के पहले घोषणापत्र में कहा था कि खेती में मशीनों का प्रयोग होना चाहिए। भारत में अगर खेती के तरीके आदिम बने रहेंगे, तो कृषि कभी भी समृद्ध नहीं हो पाएगी। मशीनों का प्रयोग संभव बनाने के लिए छोटी जोत की बजाय बड़े खेतों पर खेती की जानी चाहिए…Next


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