सियासत के बारे में एक कहावत बड़ी पुरानी है कि यहां हमेशा न कोई सगा होता है और न ही कोई हमेशा दुश्मन रहता है। देश की राजनीति में सबसे महत्वूपर्ण माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में दो सीटों पर होने वाले उपचुनाव के दौरान ये कहावत एक बार फिर चर्चा में है। यहां एक-दूसरे की धुर विरोधी सपा-बसपा वर्षों बाद एक बार फिर करीब नजर आ रही हैं। पहली बार राम लहर, तो अब की बार मोदी लहर इन दोनों पार्टियों को करीब ले आई है। हालांकि, सियासत में एक-दूसरे को अपना दुश्मन मानने वाली ये दोनों पार्टियां इतनी आसानी से साथ नहीं आई हैं। आइये आपको बताते हैं कि पहली बार जब ये दोनों पार्टियां साथ आई थीं, तो उसके परिणाम क्या थे और इस बार कैसे दोनों साथ आईं।
6 दिनों तक दोनों दलों में व्यापक बातचीत!
बहुजन समाज पार्टी ने रविवार को गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों के समर्थन का एलान किया। इसी के साथ यूपी की इन दो बड़ी पार्टियों के बीच 23 साल से चली आ रही दुश्मनी फिलहाल खत्म नजर आ रही है। सपा-बसपा का साथ आना सुर्खियों में जरूर है, लेकिन यह फैसला यूं ही नहीं लिया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसके लिए 6 दिनों तक दोनों ही दलों के शीर्ष नेतृत्व और जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच व्यापक बातचीत हुई।
गठजोड़ के पीछे ये बन रहे समीकरण
खबरों की मानें, तो सपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि इसकी शुरुआत 27 फरवरी को उस समय हुई, जब पार्टी के वरिष्ठ रणनीतिकार राम गोपाल यादव ने यह मुद्दा बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा से उठाया। उन्होंने बताया कि दोनों ही पक्षों ने गठजोड़ की संभावनाओं पर चर्चा की। इसके बाद बसपा प्रमुख मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव से हरी झंडी मिलने के बाद अगले दौर की बातचीत में समर्थन की विस्तृत शर्तों पर बातचीत हुई। दूसरे दौर की बातचीत में दोनों ही पक्षों ने आगामी राज्यसभा चुनाव और विधान परिषद चुनाव में एक-दूसरे के समर्थन पर सहमति जताई। यह फैसला लिया गया कि सपा राज्यसभा चुनाव में बसपा का समर्थन करेगी, बसपा विधान परिषद चुनाव में समाजवादी उम्मीदवारों को अपना समर्थन देगी।
अखिलेश ने मायावती के पाले में डाली थी गेंद
गौरतलब है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने साल 2017 में ही सार्वजनिक तौर पर बसपा से हाथ मिलाने का इशारा किया था। इसके बाद गेंद बसपा सुप्रीमो मायावती के पाले में थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बसपा खेमे में यह मुद्दा 1 मार्च को पार्टी के क्षेत्रीय को-ऑर्डिनेटरों की मायावती के साथ बैठक में उठा। इस बैठक में मायावती ने सपा के साथ गठजोड़ पर जमीनी कार्यकर्ताओं से फीडबैक लेने के लिए कहा। उधर, अखिलेश ने भी अपने एक करीबी को जमीनी स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं से फीडबैक लेने के लिए कहा। इसके बाद दोनों पार्टियों के बड़े नेताओं के बीच गोरखपुर और फूलपुर में कई बैठकें हुईं, जो शनिवार शाम तक चलती रहीं। जमीनी कार्यकर्ताओं से सकारात्मक फीडबैक मिलने के बाद मायावती ने समर्थन की घोषणा की।
तब राम लहर, अब मोदी लहर ले आई साथ!
सपा-बसपा के साथ आने की खबरों ने एक बार को लोगों को चौंकाया, क्योंकि इन दोनों पार्टियों की राजनीतिक दुश्मनी जगजाहिर है। इससे पहले 1993 में सपा-बसपा एक साथ चुनाव लड़ चुके हैं। तब लक्ष्य ‘राम लहर’ को रोकना था। उस चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन को 176 सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा ने 177 सीटों पर जीत दर्ज की थी। मगर 1995 में गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा-बसपा का गठबंधन टूट गया। इसके बाद ये दोनों पार्टियां फिर कभी साथ नहीं आईं। राजनीति में इन दोनों पार्टियों को एक-दूसरे के दुश्मन के तौर पर माना जाता था। सियासी पंडितों का मानना है कि 2014 लोकसभा चुनाव से लेकर अभी तक हुए चुनावों में जैसे परिणाम आ रहे हैं, उससे यही लगता है कि इस बार ये दोनों पार्टियां मोदी लहर की वजह से साथ आई हैं। यूपी में फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए सपा-बसपा ने एक बार फिर हाथ मिला लिया है…Next
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