राजनीति में परिवारवाद एक ऐसा दीमक है, जो धीरे-धीरे लोकतंत्र को खाता रहता है. जहां पर प्रधानमंत्री के बेटे को भविष्य का प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री के बेटे को भविष्य के मुख्यमंत्री के तौर देखा जाता हो, वहां पर लोकंतत्र एक छलावा ही लगता है. लेकिन राजनीति में परिवारवाद कोई दूसरी दुनिया की बात नहीं बल्कि हमारे देश की स्थिति है. हाल ही में समाजवादी पार्टी के पारिवारिक कलह में राजनीति में परिवारवाद की बात एक बार फिर से उठने लगी है. सपा सुप्रीमो मुलायम से जब भी परिवारवाद के बारे में बात की जाती है वो परिवारवाद को आज की जरूरत बताते हैं. इसके अलावा भी मुलायम से कई विवाद और बयान जुड़े हैं, जिनकी वजह से वो हमेशा समय-समय पर सुर्खियां बटोरते हुए नजर आते हैं. आइए, डालते हैं ‘धरती पुत्र’ कहे जाने वाले मुलायम की जिंदगी के खास पहलुओं पर एक नजर.
किसान परिवार से आए मुलायम, गए जेल और बने हीरो
मुलायम का जन्म किसान परिवार में हुआ था. जिनका राजनीति से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं था. लेकिन बचपन से ही वो बेबाक थे और गांव में होने वाले आंदोलनों में हमेशा बढ़-चढ़कर भाग लेते थे. 14 साल की उम्र में मुलायम राममनोहर लोहिया के आह्वान पर ‘नहर रेट आंदोलन’ में शामिल हो गए थे. इसके बाद उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. आगे चलकर उन्होंने मुलायम ने आगरा विश्वविद्यालय से एमए, बीटी की डिग्री ली. साथ ही जैन इन्टर कॉलेज करहल मैनपुरी में प्रवक्ता भी रह चुके हैं.
कॉलेज में पढ़ाने से पहले कर चुके हैं पहलवानी
मुलायम के बारे में बहुत कम लोग ये जानते हैं कि इनका पहला शौक पहलवानी हुआ करता था. वैसे मुलायम सिंह यादव को देखकर ये अंदाजा लगा पाना थोड़ा मुश्किल है कि इन्होंने कभी पहलवानी भी की है, लेकिन ये सच है. एक जमाना था जब वो अच्छे खासे पहलवान हुआ करते थे. उनका सपना कभी राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेने का सपना था, लेकिन अपने दोस्तों को देखकर उनका रुझान राजनीति की ओर हो गया.
राजनीति में लाए थे इनके ये दोस्त
कुश्ती के दिनों में मुलायम युवाओं के बीच खासे मशहूर थे. उन्हें साईकिल लगाव के चलते कुछ लोग ‘साईकिल पहलवान’ के नाम से भी पुकारते थे. उनकी कुश्ती के सबसे बड़े फैन थे नत्थूसिंह, जो सोशलिस्ट पार्टी के कद्दावर नेता हुआ करते थे. उन दिनों मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती प्रतियोगिता में नत्थूसिंह ने मुलायम को लड़ते हुए देखा और उनसे प्रभावित हो गए. उनसे खुश होकर नत्थूसिंह ने जसवन्त नगर विधानसभा क्षेत्र से मुलायम को चुनाव में खड़ा कर दिया. चुनाव जीतने के बाद आगे चलकर उन्होंने ‘सोशलिस्ट पार्टी’ और फिर ‘प्रजा सोशलिस्ट पार्टी’ से भी चुनाव लड़ा. बाद में 1992 में मुलायम सिंह यादव ने ‘समाजवादी पार्टी’ का गठन किया.
ऐसे बना इनका चुनाव चिह्न
कहते हैं पहलवानी के समय वो साईकिल पर ही चला करते थे. उन्हें जिंदगी में दो चीजों से बेहद लगाव था, एक पहलवानी और दूसरी उनकी साईकिल. उन दिनों वो लंबी से लंबी दूरी साईकिल से पूरी किया करते थे. अपने इसी लगाव के चलते आगे जाकर उन्होंने पार्टी का चुनाव चिह्न भी साईकिल को चुना.
चुनावी दंगल में मायावती पर हमला करवाने का लगा आरोप
1993 में यूपी चुनाव के वक्त बसपा और सपा में गठबंधन हुआ था. जिसकी जोरदार जीत हुई. मुलायम आपसी सलाह से मुख्यमंत्री बन गए लेकिन उनकी मनमानी की वजह से मायावती को ये बात हजम नहीं हुई और 1995 में माया ने अपना समर्थन वापस ले लिया. जिसके चलते सरकार अल्पमत में आ गई. इससे खफा होकर समाजवादी पार्टी के विधायकों ने लखनऊ के मीराबाई मार्ग पर स्थित गेस्ट हाउस में जाकर तोड़फोड़ शुरू कर दी. इस गेस्ट हाउस में मायावती रूकी हुई थीं. कहा जाता है कि ये हमला मुलायम सिंह ने करवाया था. उस वक्त मायावती ने खुद को बचाने के लिए अंदर से दरवाजा बंद कर लिया था. कुछ लोगों ने गेस्ट हाउस को आग लगाने की भी घोषणा की थी. इसे ही भारतीय राजनीति के इतिहास में ‘गेस्ट हाउस कांड’ के नाम से जाना जाता है.
अपने विवादित बयानों की वजह से निशाने पर आए थे मुलायम
उस वक्त पूरे देश में मुलायम के इस बयान की खूब आलोचना हुई थी. जब उन्होंने बढ़ती रेप की घटनाओं पर कहा था ‘कि लड़के तो लड़के हैं, हो जाती है गलतियां, उन्हें फांसी देना जायज नहीं’. इसके अलावा भी मुलायम ने कई शर्मनाक बयान देकर अपनी साख गिरा ली थी. उनके कुछ बयान हैं.
1. यूपी में सबसे कम रेप होते हैं. मीडिया की बनाई हुई हवा है.
2. चार लोग कैसे कर सकते हैं एक महिला का रेप, ये इल्जाम लगाने वाली बात है.
3. ग्रामीण महिलाएं आकर्षक नहीं होती इसलिए उन्हें महिला आरक्षण बिल में जगह नहीं मिलनी चाहिए.
वक्त के साथ भारतीय राजनीति में काफी बदलाव आया है. ऐसे में अखिलेश के आगे मुलायम की चमक फीकी पड़ती नजर आ रही है. फिलहाल, आने वाले चुनाव में उत्तरप्रदेश की जनता का फैसला क्या होगा, ये देखने वाली बात होगी…Next
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