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अमेठी में कांग्रेस के लिए आगे कुआं पीछे खाई की स्थिति है

‘आप’ के विश्वासपात्र प्रत्याशी कुमार विश्वास ने कांग्रेस के विश्वास गढ़ अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की है. हालांकि कुमार विश्वास ने राहुल गांधी के साथ ही नरेंद्र मोदी को भी अमेठी से उनके मुकाबले में चुनाव लड़ने और जीतने की चुनौती दी है लेकिन मोदी और भाजपा से ज्यादा यह कांग्रेस के लिए घुटनों पर लानेवाला साबित हो सकता है.


kumar vishwas vs rahul gandhi in amethiअगर कहा जाए कि दिल्ली में ‘आप’ की अप्रत्याशित सफलता ने भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति में खलबली मचा दी है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. दिल्ली में अपनी ‘अल्पमत सरकार’ को केजरीवाल और उनकी टीम कितने दिनों तक स्थिर रख पाते हैं यह तो आनेवाला वक्त बताएगा लेकिन इस तरह इसने जहां देश की दो मुख्य पार्टियों कांग्रेस और भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी की है वहीं दिल्ली से आगे बढ़कर अब अगले लोकसभा चुनाव के लिए भी इसके हौसले बुलंद हुए हैं. ऐसे में शायर और लेखक कुमार विश्वास का अमेठी से ‘आप’ के लोकसभा चुनाव प्रत्याशी के रूप में राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी को ललकारना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है. सर्वविदित है कि अमेठी से राहुल गांधी चुनाव जीतते आए हैं. गांधी परिवार के लिए भावनात्मक लगाव रखने वाले लोगों के रवैये को देखते हुए हो सकता है कि चुनावी गतिविधियों के रूप में कई लोग इसे ‘आप’ का अति-आत्मविश्वासी रवैया बताएं. इस रूप में कांग्रेस के मुकाबले ‘आप’ और कुमार विश्वास को यहां बहुत बड़ी सफलता न मिलने की बात भी हो सकती है. लेकिन गहरे पानी मोती पखारे जाएं तो कुमार विश्वास का यह अति-विश्वासी रवैया ‘आप’ के लिए जादू भरा साबित हो या न हो लेकिन कांग्रेस को सपा का गुलाम बनाने के लिए काफी है.


गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश एक ऐसा चुनावी प्रदेश है जहां सपा और मुलायम सिंह यादव की स्थिति हमेशा मजबूत रही है. चार मुख्य पार्टियां ‘कांग्रेस’, ‘भाजपा’, ‘सपा’ और ‘बसपा’ में बसपा तो पहले ही यहां सत्ता से कोसों दूर है. भाजपा खुद अपनी जमीन तलाशने की जुगत लगा रही है. बचे ‘कांग्रेस’ और ‘सपा’ जिसमें सपा हमेशा मजबूत स्थिति में रहा है. कांग्रेस की युगांतकारी माता सोनिया गांधी रायबरेली से और उनके पुत्र तथा कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी अमेठी से जीतते अवश्य आए हैं लेकिन इसके अलावे उत्तर प्रदेश के अन्य चुनावी क्षेत्रों में कांग्रेस का कोई अस्तित्व नहीं है. इसके ठीक उलट जब बात आती है केंद्र की तो वहां कांग्रेस की पंहुच और सशक्त दावेदारी रही है. इस तरह उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सपा का साथ देकर और केंद्र में सपा कांग्रेस का साथ देकर एक दूसरे का दामन पकड़े दोनों कहीं न कहीं शासन में रहे. अब ‘आप’ प्रत्याशी कुमार विश्वास के आने से इस गठजोड़ में कहीं बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है.


दरअसल कुमार विश्वास का अमेठी से चुनाव लड़ना कांग्रेस के लिए कहीं प्रतिष्ठा का प्रश्न बन सकता है. प्रतिष्ठा का प्रश्न इसलिए क्योंकि रायबरेली और अमेठी कांग्रेस के लिए दो ऐसे गढ़ हैं जहां वे आंख मूंदकर जीत का दावा कर सकते हैं. हालांकि रायबरेली जहां से पहले इंदिरा गांधी और उनकी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए बहू सोनिया गांधी चुनाव लड़ती हैं, के लिए आप या किसी अन्य सशक्त प्रतिद्वंदी के उतरने की अब तक कोई खबर नहीं आई है लेकिन अमेठी जहां से युवराज (राहुल गांधी) प्रत्याशी रहे और जीते हैं और इस बार कुमार विश्वास उनके प्रतिद्वंद्वी बनकर इस जीत-क्रम का सिलसिला थमने और राहुल गांधी के जीतने के विश्वास पर प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं.

अब केवल ‘राजमाता’ ही इनका उद्धार कर सकती हैं

आप ने जिस तरह दिल्ली में लोगों का विश्वास जीता है और अल्पमत सरकार में आने के बाद भी जिस दृढ़ता और विश्वास के साथ दिल्ली के लोगों का साथ निभा रहा है, दिल्ली के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी ईमानदार छवि पर लोग भरोसा जताने लगे हैं. इस भरोसे के साथ जनता की नजर में ‘आप’ का हर प्रत्याशी है जिनमें कुमार विश्वास भी एक हैं. एक और बात इसमें गौर करने लायक है वह यह कि अरविंद केजरीवाल की तरह ही कुमार विश्वास भी आईआईटी नाम से जुड़े रहे हैं और काव्य जगत में लोग इनकी बेबाकी को काफी पसंद करते हैं. खासकर युवा पीढ़ी इन्हें बहुत पसंद करती है. इसलिए अमेठी में अगर राहुल गांधी और इनके बीच चुनावी द्वंद्व हुआ तो आम आदमी (मतदाता) के पास दो विकल्प होंगे. पहला होगा कांग्रेस का जिसके साथ भ्रष्टाचारी छवि जुड़ी है और दूसरा होगा ‘आप’ का, जिसके साथ कांग्रेस के ठीक विपरीत ईमानदार छवि जुड़ी हुई है. जाहिर है लोकतांत्रिक क्रांति का जो उबाल-सा नजारा पिछले दो वर्षों (अन्ना हजारे मूवमेंट) से दिखने लगा है उसमें बहुत संभव है अगर कुमार विश्वास ‘आप’ को जीत का सेहरा पहना दें. आप के लिए यह आम आदमी की जीत होगी लेकिन कांग्रेस के लिए युवराज (राहुल गांधी) की हार शर्मिंदगी का वह आलम होगा जिसमें भविष्य का हर दावा झूठा नजर आने लगेगा.


राहुल गांधी की जड़ें यूं भी अभी मजबूत नहीं हैं. बस बातों और राहुल के नाम का ढोल पीटकर वे राहुल के पक्ष में एक दृश्य बनाते आ रहे हैं. राहुल गांधी की हार के बाद वह दृश्य भी खोखला साबित हो जाएगा और कांग्रेस के पास ढोल पीटने का विकल्प भी बंद हो जाएगा. इसलिए कांग्रेस के लिए अमेठी में जीतना हर हाल में जरूरी बन जाता है. इसके लिए इसके पास अगर कोई विकल्प बचता है तो वह है सपा का विकल्प, कि वह चुनाव जीतने में सपा की मदद ले. अगर ऐसा होता है तो जाहिर है कांग्रेस की सत्ता के साथ सपा के लिए केंद्र की सत्ता में अपनी प्रभुता रखने के रास्ते खुल जाते हैं जिससे वह हमेशा दूर रहा है. युवराज की जीत के लिए वह केंद्र में अपनी सशक्त भागीदारी लेने का दांव खेल सकती है. कांग्रेस के लिए हर हाल में यह स्थिति घुटनों पर लाने वाला है. अगर वह सपा की बात नहीं मानती है तो राहुल की हार के साथ अपनी प्रतिष्ठा और अपना भविष्य दोनों खो देगी और अगर सपा की बात मानती है तो अब उत्तर प्रदेश की तरह केंद्र में भी उसे सपा की अधीनता स्वीकार करनी पड़ेगी जहां उसका हर फैसला और सरकारी गतिविधियां सपा से प्रभावित होंगी और दोनों ही सूरते हाल में सपा का या तो फायदा है या फिर वह किसी फायदे-नुकसान से अप्रभावित है. अब देखना यह है कि कांग्रेस कुमार विश्वास के विश्वास का कोई बीच का हल निकाल पाती है या मुलायम-विश्वास के बीच ‘आगे कुआं, पीछे खाई’ वाली स्थिति में डूब जाती है.

यह ढोंग कब तक काम आयेगा?

भीष्म पितामह की भूमिका से इनकार नहीं कर सकते

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