राजनीति की रणभूमि में अनुभव बहुत ज्यादा मायने रखता है और इसके अलावा अपने सहयोगियों के साथ आप किस तरह के रिश्ते कायम करते हैं यह भी आपके राजनीतिक भविष्य की नींव को बहुत हद तक मजबूत बनाते हैं. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि कभी देश सेवा का माध्यम समझे जाने वाली राजनीति आज निजी स्वार्थपूर्ति का एक बहुत बड़ा माध्यम बन गई है लेकिन जिस तरह पांचों अंगुलियां बराबर नहीं होतीं उसी तरह राजनीति की रणभूमि में अपने कदम जमाए राजनीतिज्ञों की प्राथमिकताएं भी समान नहीं होतीं. यही वजह है कि किसी पार्टी या गठबंधन की एक डोर ऐसी होती है जो अपने निजी हितों की परवाह किए बगैर सभी सदस्यों को एक साथ जोड़कर रखने का काम करती है. लेकिन जब उस डोर के महत्व को समझना बंद कर दिया जाता है, पार्टी के भीतर ही उसे तरजीह नहीं दी जाती तो इससे वह डोर तो ढीली पड़ ही जाती है साथ ही इसका परिणाम गठबंधन को भी भुगतना पड़ता है.
लालकृष्ण आडवाणी (Lalkrishna Adwani), भाजपा की नींव और एनडीए की एक मजबूत डोर, को आज जिस बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है, पार्टी के भीतर जिस तिरस्कार का सामना करना पड़ रहा है, उससे वह स्वयं तो आहत हैं ही लेकिन उनकी इस दशा का सीधा असर एनडीए गठबंधन पर पड़ रहा है. नरेंद्र मोदी को पार्टी के भीतर प्रमुखता देने से नाराज जेडीयू सदस्य और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बहुत पहले ही जेडीयू के एनडीए से अलग होने जैसी चेतावनी दे दी थी लेकिन अब जेडीयू ने एनडीए से अलग होने की लगभग सारी तैयारी कर ली है बस इसकी औपचारिक घोषणा होना बाकी रह गया है.
हालिया घटनाक्रमों के मद्देनजर यह कहना गलत नहीं होगा कि भले ही नरेंद्र मोदी का गुजरात मॉडल आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है लेकिन नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष घोषित कर भाजपा ने स्वयं अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है. भाजपा के वरिष्ठ सदस्य लालकृष्ण आडवाणी जो स्वयं भाजपा का ही पर्याय बन गए थे, ने अपने इस्तीफे में साफ लिखा था कि अब भाजपा की राह भटक चुकी है और वह देश सेवा के लिए नहीं बल्कि निजी हितपूर्ति के लिए काम करती है.
(Lalkrishna Adwani) को फिर से पार्टी से जोड़ लिया गया है लेकिन उनकेइस्तीफे को नामंजूर करते हुए नरेंद्र मोदी को दी गई जिम्मेदारियों पर कोई बात नहीं की गई जिसका आशय स्पष्ट है कि भाजपा नरेंद्र मोदी के नाम पर किसी तरह का समझौता करने के पक्ष में नहीं है फिर चाहे इसके लिए कोई भी उनका साथ छोड़कर चला जाए.
उल्लेखनीय है कि जेडीयू, जो पहले से ही एनडीए गठबंधन से अलग होने की फिराक में था उसे यह समझ में आ गया कि जब भाजपा के अनुभवी और वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भाजपा के हालात से त्रस्त हैं तो ऐसे में गठबंधन दलों की अहमियत वो कैसे समझेगी. नरेंद्र मोदी को दी जाने वाली प्रमुखता के प्रति नीतीश कुमार पहले ही अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं और कहीं ना कहीं उन्हें यह भी आभास हो गया था कि आगामी समय में नरेंद्र मोदी को और अधिक प्रचारित किया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप यह भी संभव है कि आगामी लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी को ही प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर भाजपा की ओर से मैदान में उतार दिया जाए.
(Lalkrishna Adwani) के अलावा जेडीयू की नाराजगी भी यह साफ करती है कि पार्टी के भीतर कुछ ना कुछ ऐसा जरूर हो रहा है जो स्वयं उसके लिए और शायद देश के लिए भी घातक सिद्ध हो सकता है.
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