लाल कृष्ण आडवाणी का जीवन परिचय
लौह पुरुष के नाम से विख्यात, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ और सबसे प्रतिष्ठित नेता लाल कृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवंबर, 1927 को वर्तमान पाकिस्तान के कराची शहर में हुआ था. इनका वास्तविक नाम लाल किशनचंद आडवाणी है. लाल कृष्ण आडवाणी की प्रारंभिक शिक्षा कराची के ही सेंट पैट्रिक हाई स्कूल में संपन्न हुई. स्नातक की पढ़ाई के लिए लाल कृष्ण आडवाणी ने सिंध प्रांत के डी.जी. नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया. विभाजन के पश्चात भारत आने के बाद स्नातकोत्तर की पढाई इन्होंने कानून विषय के साथ गवर्मेंट लॉ कॉलेज से पूरी की. 25 फरवरी, 1965 को लाल कृष्ण आडवाणी का विवाह कमला आडवाणी के साथ संपन्न हुआ. इनके दो बच्चे हैं.
लाल कृष्ण आडवाणी का व्यक्तित्व
लाल कृष्ण आडवाणी का नाम भारतीय राजनीति के कई बड़े नामों में शुमार है. वह आक्रामक छवि वाले और हिंदू धर्म में नई चेतना का सूत्रपात करने वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं. तेज-तर्रार और एक मजबूत विपक्षी नेता की भूमिका वह बखूबी निभा रहे हैं.
लाल कृष्ण आडवाणी का राजनैतिक सफर
लाल कृष्ण आडवाणी का राजनैतिक सफर कराची से ही शुरू हो गया था जब वो पहली बार वर्ष 1947 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सचिव नियुक्त हुए. विभाजन के बाद जब राजस्थान के मेवाड़ शहर में हिंसा की आग भड़क गई तो उन्हें पार्टी के तत्कालीन हालात और उसकी भूमिका का निरीक्षण करने के लिए वहां भेजा गया. वर्ष 1951 में जब श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जन संघ की स्थापना की तब लाल कृष्ण आडवाणी इसके सदस्य बने. जन संघ में कई पदों पर काम करने के बाद वह 1975 में इसके अध्यक्ष नियुक्त हुए. वर्ष 1975 में आपातकाल के दौरान जय प्रकाश नारायण ने जब सभी विपक्षी दलों को साथ मिलकर तत्कालीन सरकार का विरोध करने का आह्वान किया तब सरकार विरोधी मुख्य दलों का विलय कर जनता पार्टी की स्थापना की गई. आडवाणी और उनके मुख्य सहयोगी जैसे अटल बिहारी वाजपयी ने लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली. आपातकाल लगाने के कारण देशभर की जनता इन्दिरा गांधी के विरोध में खड़ी हो गई, जिसके परिणामस्वरूप आगामी चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा. इस दौरान उन्हें आंतरिक सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में भी रखा गया. जन संघ की विजय के बाद मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाया गया. इस कार्यकाल में लाल कृष्ण आडवाणी सूचना एवं प्रसारण मंत्री और अटल बिहारी वाजपयी विदेश मंत्री नियुक्त हुए. लेकिन 1980 में जन संघ दल के सदस्यों में मतभेद उत्पन्न होने के बाद जन संघ से अलग भारतीय जनता पार्टी का गठन किया गया. 1986 में लाल कृष्ण आडवाणी इस दल के अध्यक्ष नियुक्त हुए. राजनीति के क्षेत्र में लाल कृष्ण आडवानी का बढ़ता कद कांग्रेस के लिए चिंता का विषय बन गया था. लाल कृष्ण आडवाणी ने आक्रामक रूप से पार्टी को हिंदुत्व के सिद्धांतों पर चलने के लिए प्रेरित किया. मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने के बाद से उच्च और सामान्य वर्ग के लोगों में रोष उत्पन्न हो गया था. वर्ष 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाली जनता दल और भारतीय जनता पार्टी के आपसी समर्थन के कारण कांग्रेस को एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा. 1991 तक आडवाणी के प्रयासों ने पार्टी को एक नई उंचाई तक पहुंचा दिया था. वर्ष 1989 में आडवाणी की अध्यक्षता में बीजेपी द्वारा राम जन्म भूमि को बचाने के लिए अभियान चलाया गया. लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक एक रथ यात्रा की शुरुआत की जिसके अंतिम पड़ाव, बाबरी मस्जिद पर प्रार्थना करने के उद्देश्य से लोग बड़ी संख्या में एकत्र हुए. इस दौरान अयोध्या सहित भारत के कई भागों में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे. पी.वी. नरसिंह राव के काल में आडवाणी जी को नेता विपक्ष चुना गया. राव के कार्यकाल के दौरान सरकार को भ्रष्टाचार के कई आरोपों का सामना करना पड़ा. भारतीय जनता पार्टी ने इन आरोपों को अपने पक्ष में भुनाया और जनता के सामने स्वयं को कांग्रेस सरकार के एकमात्र विकल्प के रूप में पेश किया. वर्ष 1996 के आम चुनावों में बीजेपी एकमात्र बहुमत प्राप्त दल के रूप में सामने आई और राष्ट्रपति द्वारा इसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया. परिणामस्वरूप अटल बिहारी वाजपयी को प्रधानमंत्री पद प्राप्त हुआ. लेकिन केवल तेरह दिनों में ही यह सरकार गिर गई. इस घटना के दो वर्ष बाद दल को स्थायी रूप देने के लिए 1998 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन दल (एन.डी.ए.) का निर्माण किया गया. इन्द्र कुमार गुजराल और देवगौड़ा के असफल और अस्थिर शासन के बाद एन.डी.ए. को सत्ता में आने का और अटल बिहारी वाजपयी को दोबारा प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला. इस दौरान आडवाणी पहले गृहमंत्री के तौर पर नियुक्त हुए और बाद में उपप्रधानमंत्री के पद तक पहुंच गए.
लाल कृष्ण आडवाणी से जुड़े विवाद और आलोचनाएं
अच्छे आयोजक कहे जाने वाले लाल कृष्ण आडवाणी अपने समर्थकों से हमेशा यह कहते आए हैं कि उनमें हर स्थिति का मुकाबला करने की क्षमता होनी चाहिए. भारत की राजनीति में कांग्रेस के एकाधिकार को तोड़ने का श्रेय लाल कृष्ण आडवाणी को ही जाता है. भारतीय संसद में भी वह एक अच्छे सांसद के रूप में अपनी भूमिका के लिए हमेशा सराहे गए हैं. इसके अतिरिक्त वह किताबों, संगीत और सिनेमा में खासी रुचि रखते हैं. चुनाव प्रक्रिया में सुधार करवाना लाल कृष्ण आडवाणी की सबसे बड़ी प्राथमिकता है. वर्ष 2009 के चुनावों के बाद लाल कृष्ण आडवाणी ने नेता विपक्ष के पद से इस्तीफा देते हुए यह पदभार सुषमा स्वराज को सौंप दिया.
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