राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू यादव की अगुवाई में हाल ही में उनकी पार्टी ने ‘भाजपा भगाओ देश बचाओ’ रैली की। इसके माध्यम से लालू ने जहां कई पार्टियों को एक मंच पर लाकर मजबूत विपक्ष दिखाने का प्रयास किया, वहीं इससे अपना शक्ति प्रदर्शन भी किया। लालू यादव की रैलियों की एक और खास बात होती है, वो है रैलियों के नाम। लालू की रैलियों के नाम भी उनके अंदाज की तरह ही होते हैं। रैलियों के नाम से ऐसा लगता है जैसे रैलियों ने खुद लोगों को जुटाने का जिम्मा लिया है। आइये जानते हैं लालू की प्रमुख रैलियों और उनके नाम के बारे में।
1995 की गरीब रैली – जनता दल से अलग अपनी पहचान बनाने के लिए लालू प्रसाद यादव ने यह रैली की थी। गरीबी शब्द जोड़कर लालू बिहार की जनता को संदेश देना चाहते थे कि वे गरीबों के हितैषी हैं।
1996 में गरीब रैला – लोग रैली नाम देते हैं और लालू ने इसे रैला नाम दिया। रैला शब्द से उनका तात्पर्य था अधिक-अधिक से लोग इसका हिस्सा बनें। इससे लालू को अपने कोर वोटरों को एकजुट करने में काफी मदद मिली।
1997 में महागरीब रैला – इस बार लालू ने एक नया शब्द जोड़ा ‘महा’। इससे वे संदेश देना चाहते थे कि वे ओबीसी के साथ-साथ निचले तबके का भी खयाल रखते हैं और उनके नेता हैं।
2003 में लाठी रैली – लाठी नाम देकर लालू ने अपने कोर वोटरों में मजबूती बनाए रखने का प्रयास किया। आमतौर पर लाठी खेती-किसान और पशु पालन से जुड़े लोगों का प्रतीक है। लालू ने इस वर्ग को जोड़ने की रणनीति के तहत रैली का नाम लाठी दिया।
2007 की चेतावनी रैली – यह वो दौर था जब नीतीश राज में लालू की लोकप्रियता लगभग समाप्त हो गई थी। चेतावनी शब्द से उन्होंने नीतीश सरकार के खिलाफ अपने कोर वोटरों को एकजुट करने का प्रयास किया।
2012 की परिवर्तन रैली – ये वो दौर था, जब नीतीश कुमार और बीजेपी में खटास पैदा हो गई थी। इसी दौरान लालू ने यह रैली की। उनका संदेश था कि अब बिहार की सत्ता में परिवर्तन होगा।
2017 में भाजपा भगाओ देश बचाओ – लालू की यह रैली स्पष्ट रूप से भाजपा और नीतीश के खिलाफ थी। लालू ने इससे अपना शक्ति प्रदर्शन किया।
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