Menu
blogid : 321 postid : 621093

राजनीति के केंद्र में ‘तेलंगाना का विकास’ कोई मुद्दा नहीं

latest news on telangana issue in hindiआंध्र प्रदेश का बंटवारा कर अलग तेलंगाना राज्य के निर्माण के विरोध में आंध्र प्रदेश का माहौल दिनों दिन बिगड़ता जा रहा है. सीमांध्र के सरकारी कर्मचारियों के हड़ताल की घोषणा के बाद बिजली कर्मचारी भी रविवार को हड़ताल पर चले गए. आज तेलुगू देशम पार्टी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू भी दिल्ली में अनशन पर बैठने की घोषणा कर चुके हैं. सीमांध्र के लोगों और राजनीतिक पार्टियां बार-बार इसे केंद्र द्वारा आंध्र प्रदेश के बुरे हित में जबरदस्ती इस पर थोपा हुआ फैसला बताने की कोशिश कर रही है. सरसरी तौर पर एक तस्वीर उभर रही है कि क्यों इतने विरोध के बावजूद केंद्र जबरदस्ती तेलंगाना राज्य का गठन चाहता है?


आंध्र प्रदेश की आंतरिक राजनीति की समीक्षा की जाए तो स्थिति साफ हो जाती है. तेलंगाना के गठन का मसला केंद्र और हैदराबाद की राजनीति में अहम मोड़ लाने वाला है. यह न तो देश की आम जनता की सहमति का सवाल है, न आंध्र प्रदेश की जनता की. पूरा का पूरा फैसला राजनीतिक समीकरण का हिस्सा है. आंध्र प्रदेश की आंतरिक राजनीति कुछ इस प्रकार की रही है कि इसके अधिकांश सरकारी फैसले सीमांध्र प्रदेश (रायलसीमा और तटवर्ती आंध्र प्रदेश) के हित में होते हैं. यही कारण रहा कि सीमांध्र तो आज विकसित है लेकिन तेलंगाना के हिस्से आज भी विकास की बाट जोह रहे हैं. विकास में हिस्सेदारी के साथ ही राजनीति में तेलंगाना की हिस्सेदारी भी बहुत कम रही है. मुश्किल से 20 प्रतिशत की हिस्सेदारी तेलंगाना की ओर से विधानसभा में होती है. सांसदों के होने के बावजूद सरकार में मंत्रिमंडल में शामिल होना और सरकारी फैसलों में अपनी भूमिका निभा पाना उनके लिए नगण्य ही रहा है. ऐसे में तेलंगाना के लोग पिछले पांच दशकों से अलग तेलंगाना राज्य की मांग रहे थे.

Read: देवालय से ज्यादा शौचालय को प्राथमिकता देंगे मोदी जी !!


केंद्र ने 2014 के चुनावों के मद्देनजर एक विकास सूचक कदम के तहत आनन-फानन में नए तेलंगाना राज्य के गठन की मंजूरी दे दी. केंद्र के लिए यह उसके विकासात्मक कार्यों में एक और गुण जोड़ने वाला साबित होगा जबकि आंध्र प्रदेश की राजनीति के लिए यह झटका है. वहां की राजनीतिक पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं इसके दो कारण हैं. पहला कि इस तरह टुकडों में बंटने के बाद वे एक बड़े राज्य पर राज करने से वंचित रह जाएंगे. दूसरा, उनके लिए केंद्र की तरफ से आवंटित होने वाली राशि भी कम हो जाएगी. जाहिर है इस प्रकार उस फंड में विकास के नाम पर उनके लिए भी अपना लाभ लेने की हिस्सेदारी भी कम हो जाएगी जो कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं चाहेगी. तेलंगाना के लोगों को विकास मिल पाएगा या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन अभी वे खुश हो सकते हैं क्योंकि उनके अपने प्रदेश से चुने गए मंत्री और सरकार से अपने विकास की उम्मीद वे कर सकते हैं. इस प्रदेश की राजनीतिक पार्टियों के लिए अपना अलग फंड होगा और उसमें अपनी छुपी हुई हिस्सेदारी भी वे निकाल सकते हैं जो उनकी खुशी की वजह है.


इस तरह पूरा प्रकरण कहीं न कहीं राजनीतिक फायदों में रंगा नजर आता है. केंद्र के अपने फायदे हैं, आंध्र प्रदेश की सरकार के अपने नुकसान हैं, तेलंगाना की राजनीति के अलग फायदे होंगे. विरोध और समर्थन के पीछे मुख्य बिंदु हालांकि जनता का विकास है. लेकिन देखना यह है कि यह मुद्दा अपने राजनीतिक रंग में किस तरह उभरता है और तेलंगाना के लोग अपने राज्य गठन का फायदा ले पाते हैं या नहीं.

Read:

प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व की नई परंपरा शुरू हुई है

नीतीश-आडवाणी की दोस्ती ही तो संघ चाहता है

latest news on telangana issue in hindi

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh