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Life of Sister Nivedita

sister niveditaभगिनी निवेदिता का जीवन-परिचय

स्वामी विवेकानंद के अनुयायियों में सबसे प्रमुख स्थान प्राप्त करने वाली एंग्लो-आयरिश सामाजिक कार्यकर्ता भगिनी निवेदिता का जन्म 20 अक्टूबर, 1867 को टायरोन, आयरलैंड में हुआ था. भगिनी निवेदिता का वास्तविक नाम मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल था. मार्गरेट के पिता ने बचपन से ही उन्हें मानव जाति के कल्याण और समाज हित में कार्य करने की शिक्षा दी थी. अपने पिता की इस सीख का निवेदिता के मस्तिष्क पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा. मार्गरेट हमेशा से ही उत्साही और विनम्र थीं. लंदन के चर्च बोर्डिंग स्कूल से मार्गरेट ने अपनी शिक्षा पूरी की. वह अपने कार्यों से दूसरों की भलाई करती थीं. शिक्षा पूरी करने के बाद मार्गरेट ने मात्र सत्रह वर्ष की उम्र में ही अध्यापिका के रूप में कार्य करना शुरू कर दिया था. वह नए-नए और प्रभावी तरीकों के माध्यम से बच्चों में शिक्षा के प्रति रुचि उत्पन्न किया करती थीं. इसके अलावा वह चर्च में होने वाले सामाजिक कार्यक्रमों को भी प्रायोजित करती थीं. जल्द ही उनका नाम लंदन के बुद्धिजीवियों की सूची में शुमार हो गया. मार्ग्रेट का विवाह वेल्श यूथ के साथ होने वाला था लेकिन सगाई के कुछ ही समय बाद उसका देहांत हो गया. अपने सामाजिक और धार्मिक कार्यों के बावजूद मार्गरेट को संतुष्टि नहीं मिल पा रही थी, इसीलिए वह धर्म ग्रंथों को भी पढ़ने लगीं, लेकिन जल्द ही उन्होंने यह समझ लिया था कि धर्म का आशय ग्रंथ पढ़ने या पूजा पाठ करने से नहीं बल्कि अलौकिक शक्ति को प्राप्त कर समाज को जागरुक करना है.


स्वामी विवेकानंद से मुलाकात

बौद्ध आदर्शों में रुचि लेने और उनका पालन करने के कुछ समय बाद ही निवेदिता का परिचय भारत के महान दार्शनिक और आध्यात्मिक गुरू स्वामी विवेकानंद से हुआ. स्वामी विवेकानंद का मानना था कि मनुष्य पीड़ा की सबसे बड़ी वजह स्वार्थ और सामाजिक हितों की अनदेखी है. उनके आदर्शों और शिक्षा ने मार्ग्रेट के जीवन को पूरी तरह बदल दिया. वह अभी तक जिस सोच के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रही थीं वह पूरी तरह बदल गई. विवेकानंद ने ही मार्ग्रेट को भारतीय महिलाओं के कल्याण के लिए कार्य करने के लिए प्रेरित किया था.


18 मार्च, 1898 को विवेकानंद ने स्टार थियेटर में हुए एक आयोजन में मार्ग्रेट को कोलकाता के लोगों से परिचित करवाया था. समाज सेवा के लिए समर्पित और त्याग भावना से परिपूर्ण मार्ग्रेट को 25 मार्च, 1898 को विवेकानंद ने ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण करवाने के बाद अपने अनुयायी के रूप में स्वीकार किया. विवेकानंद ने ही उन्हें पहली बार निवेदिता( ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पित) कहकर संबोधित किया था. तभी से मार्गरेट नोबल भारतीयों के बीच सिस्टर या भगिनी निवेदिता के नाम से प्रख्यात होने लगीं. भगिनी निवेदिता पहली विदेशी महिला थीं जिन्हें भारतीय मठ में स्थान दिया गया. निवेदिता स्वामी विवेकानंद को अपने आध्यात्मिक पिता का दर्जा देती थीं. विवेकानंद के साथ रहते हुए निवेदिता ने चिंतन करना प्रारंभ कर दिया. उनके जीवन के मात्र दो उद्देश्य रह गए थे पहला, समाज में ज्ञान की नवज्योति विकसित करना और दूसरा, समाज सेवा के क्षेत्र में अधिकाधिक योगदान देना. विवेकानंद का ही प्रभाव था कि सभी सुविधाओं को त्याग कर निवेदिता ने बेहद साधारण जीवन व्यतीत करना प्रारंभ कर दिया.


सामाजिक कार्यकर्ता भगिनी निवेदिता

वर्ष 1898 में भगिनी निवेदिता ने शिक्षा विहीन लड़कियों को शिक्षित करने के उद्देश्य से एक स्कूल का निर्माण किया. निवेदिता परोपकार भावना को अपने जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान देती थीं. उनका ध्येय बिना किसी भेदभाव के भारतीय महिलाओं के जीवन में ज्ञान की रोशनी प्रज्वलित करना था. उन्होंने जातिवाद जैसी कुप्रथाओं के विरुद्ध भी अपनी आवाज उठाई. भगिनी निवेदिता का संपर्क बंगाल के लगभग सभी बुद्धिजिवियों के साथ था, जिनमें प्रख्यात साहित्यकार रबिंद्रनाथ टैगोर भी शामिल थे. भारत को स्वाधीनता दिलवाने के लिए उन्होंने अपनी ओर से हर संभव प्रयास किया. एक अच्छी लेखिका होने के कारण निवेदिता ने अपने लेखों के जरिए अपने राष्ट्रवादी रुख को साफ कर दिया था.


भगिनी निवेदिता का निधन

लगातार कार्य करते रहने और अपनी सेहत की ओर ध्यान ना देने के कारण भगिनी निवेदिता का स्वास्थ्य खराब रहने लगा. 13 अक्टूबर, 1911 को दार्जिलिंग में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए.


अपने जीवन के हर कदम पर भगिनी निवेदिता दूसरों के लिए प्रेरणा बन कर रहीं. उनके उपदेश लोगों को सही ढंग से जीवन जीने और अपने स्वार्थ को त्यागने के लिए प्रेरित करते थे. उन्होंने अपना पूरा जीवन जन सेवा को समर्पित रखा था. आज भी उन्हें एक आदर्श के रूप में ही देखा जाता है.


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