कहते हैं कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है लेकिन भारत में कुछ पाने के लिए लोग दूसरे की माँग व गोदों को उजाड़ देते हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है हमारे देश की राजनीति. सत्ता पाने के लिए लोग एक-दूसरे को खत्म करने तक का फैसला कर बैठते हैं. भारत एक लोकतंत्रात्मक देश है. लेकिन इससे इतिहास के काले-पन्नों की कालिमा नहीं मिटाई जा सकती. सत्ता के रस को पीने के लिए आजतक भारत में कितने ही उभरते नेताओं, मंत्रियों और विधायकों को मार दिया गया. आइए चलते हैं काले दिनों की यादों में जब देश ने बहुत कुछ खोया.
ललित नारायण मिश्रा
सन 1973 से 1975 तक भारत के रेलमंत्री का ओहदा संभालने वाले ललित नारायण मिश्रा का अंत काफी दर्दनाक हुआ था. 2 जनवरी, 1975 के दिन मिश्रा जी समस्तीपुर से मुजफ्फरपुर तक की बड़ी रेलवे लाइन के खुलने की औपचारिक घोषणा करने गये थे. अचानक वहाँ एक बस विस्फोट हुआ जिसमें वो घायल हो गए. कहा जाता है कि किसी साजिश के तहत उन्हें नज़दीक के सुविधा-सम्पन्न दरभंगा मेडिकल कॉलेज न ले जा कर दस घंटे की देरी से दानापुर के रेलवे अस्पताल में ले जाया गया. वहाँ उपचार में देरी की वजह से उन्हें मृत घोषित किया गया. आज इतने वर्षों बाद भी ललित नारायण मिश्रा की इस मौत का कारण पुलिस व सरकार ढूंढ नहीं पाई है.
मोहनदास करमचंद गांधी
मोहनदास करमचंद गांधी को बापू के नाम से पूरा भारत जानता है. भारत को आजादी से लेकर एक अच्छा व सुखी देश बनाने की उनकी लड़ाई से सभी परिचित हैं लेकिन इसी बीच ना चाहते हुए भी बापू के कुछ दुश्मन बन गए. यूं तो बापू अहिंसावादी थे और सभी को अंहिसा का पाठ पढ़ाते थे लेकिन उनका अंत जिस प्रकार से हुआ वह दर्दनाक था. बापू को 30 जनवरी, 1948 की शाम ठीक 5:17 पर लोगों के बीच तीन गोलियां मारकर छलनी कर दिया गया. उन्हें मारने वाले अपराधी का नाम नाथूराम गोडसे है जिसे बापू के पाकिस्तान को भावनात्मक समर्थन देने और अहिंसा की लहर चलाने की मुहिम से सख्त नफरत हो गई थी. इसी के चलते उसने बिड़ला हाऊस के उस बागीचे में जब बापू प्रार्थना के लिए रवाना हो रहे थे, तब रास्ते में ही गोली मारकर उनकी हत्या कर दी.
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प्रताप सिंह कैरों
पंजाब (तब पंजाब, हरियाणा और हिमाचाल प्रदेश से जुड़ा हुआ राज्य) राज्य के मुख्य मंत्री प्रताप सिंह कैरों को एक अच्छा मुख्यमंत्री और देश-प्रेमी के नाम से याद किया जाता है. उन्होंने ना केवल राजनीतिक सत्ता बल्कि भारत को आजादी दिलाने की लहर में भी अपने पांव जमाए थे. कैरों ने पंजाब को उन ऊंचाईयों तक पहुंचाया था जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था. पंजाब में चंडीगढ़ जैसा सुंदर शहर बनाना भी कैरों का ही सपना था. वर्ष 1964 में प्रताप सिंह कैरों पर उनके ही लोगों द्वारा अनगिनत राजनैतिक मसलों पर इल्जाम लगाया गया जिसके बाद उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. लेकिन 6 फरवरी, 1965 को दिल्ली से अमृतसर वाले जी. टी. राजमार्ग पर उनके ही साथी सुच्चा सिंह द्वारा उन्हें चलती कार में मार दिया गया. बाद में सुच्चा सिंह को कत्ल की सजा के तहत फांसी दी गई.
इंदिरा गांधी
31 अक्टूबर, 1984. इंदिरा हमेशा की तरह अपने किसी काम से बाहर जाने ही वाली थी कि अचानक उन्होंने अपने सामने अपने ही अंगरक्षकों को उनकी तरह हथियार साधते पाया. सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने बंदूक उठाई और इंदिरा को उन्हीं के घर 1, सफदरजंग रोड पर बुरी तरह से गोलियों से छलनी कर दिया. इस हत्या का कारण था ‘ऑप्रेशन ब्लू स्टार’ जिसमें देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक खालिस्तानी सरदार जरनैल सिंग भिंडरावाले को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से बाहर निकालने के लिए भारी तादाद में हथियारबंद सेना को उस पवित्र मंदिर के अंदर भेजा. भारी कत्लेआम हुआ, गोलियां चलीं, स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ की इमारतें तहस-नहस हो गईं. इस घटना को ना केवल सिक्ख आवाम बल्कि इंदिरा के खुद के अंगरक्षक, जो कि एक सिक्ख थे, बर्दाश्त ना कर सके और अंत में उन्होंने इंदिरा को मारने का फैसला किया. इस घटना के बाद बेअंत सिंह को मौके पर मार दिया गया और लेकिन सतवंत सिंह को बाद में सरकार द्वारा फांसी की सजा सुनाई गई.
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राजीव गांधी
1984 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद उनके बेटे राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री पद का कार्यभार संभाला. 31 अक्टूबर 1984 से 2 दिसंबर 1989 तक राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री के रूप में बने रहे लेकिन उनका यह कार्यकाल उनकी मौत के साथ खत्म हुआ. तमिलनाडु प्रदेश के चेन्नई क्षेत्र से ठीक 30 मील की दूरी पर श्रीपेरंबुदुर में वे अपने एक कांग्रेसी नेता के लिए लोकसभा चुनाव का समर्थन करते हुए जनता से रुबरू हो रहे थे. रात ठीक 10:10 पर एक महिला उनके पास आई और उनके पांव छूने के लिए नीचे झुकी. फिर अचानक एक बड़ा धमाका हुआ, इस धमाके में वहां मौजूद राजीव गांधी और उस महिला समेत अनगिनत लोगों की मौत हो गई. उस अंजान महिला की कमर पर एक खतरनाक बम फिट किया गया था जो कि राजीव गांधी को मारने की सोची समझी साजिश थी जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री आगाह करने के बावजूद समझ ना सके.
बेअंत सिंह
सरदार बेअंत सिंह, भारत की बड़ी राजनीतिक पार्टियों में से एक कांग्रेस के नेता और 1992 से 1995 तक पंजाब के मुख्यमंत्री थे. बेअंत सिंह को खालिस्तानी लिब्रेशन फोर्स के अलगाववादियों द्वारा मारा गया. उनकी कार को बम से उड़ा कर उन की हत्या कर दी थी. इस घटना में दिलावर सिंह जयसिंहवाला ने स्यूसाइड बॉम्बर का काम किया था और बाकी बचे बलवंत सिंह राजोआना को सरकार द्वारा 2014 में फांसी की सजा सुनाई गई. यह जान राजोआना के लाखों समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन किया और अंत में पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल द्वारा देश की तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से शांति का प्रस्ताव मांगते हुए सजा को रोकने की अपील की गई. जिसके बाद 28 मार्च, 2012 को राजोआना की सजा पर रोक लगाने का फैसला किया गया. Next….
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