अपने पूरे जीवन के राजनैतिक सफर के दौरान उन्होंने सत्ता में प्रत्यक्ष रूप से पद ग्रहण कर भागीदारी नहीं की. वे किसी राजकीय पद के बिना ही अप्रत्यक्ष रूप से शासन चलाते रहे. किंतु उनकी मृत्यु के बाद किसी-किसी को ही मिलने वाले पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनको अंतिम विदाई दी गई. इस मुद्दे पर कुछ बातें समझ से परे हैं और कुछ बातों पर विश्वास करना मुश्किल है. एक ऐसे व्यक्ति को राजकीय सम्मान के साथ विदाई दी गई जो हमेशा ही कोई ना कोई हंगामा पैदा करता रहता था. कभी जातिवाद के नाम पर तो कभी मराठा के नाम पर लोगों को एक-दूसरे से उलझाता रहा. तोड़-फोड़ और नफरत की राजनीति करने वाले इस दिवंगत मराठा क्षत्रप को आखिर कोई लोकतांत्रिक सरकार कैसे इतना महत्व दे सकती है. हिटलर और मुसोलिनी के प्रशंसक तथा यूपी व बिहार के लोगों को लात मार कर भगाने की बात करने वाले बाल ठाकरे की अंतिम विदाई सरकारी शानो-शौकत के साथ आखिर क्यों?
Read:भाजपा की एकता अब अखंड नहीं है
मराठा के नाम पर: बाल ठाकरे मराठा के नाम पर लोगों के बीच अपनी पैठ बनाने में सफल रहे. जातिवाद की राजनीति क्या फायदा पहुंचा सकती है यह शिवाजी स्टेडियम में सभी ने देख लिया. इतनी बड़ी तादाद में लोगों का जमावड़ा पिछ्ले सभी आंकड़ों को तोड़ गया और यह भी सबित कर गया कि राजनीति मात्र सत्ता में रहने से ही नहीं होती, इसकी जगह दिल में भी होती है. उत्तर भारतीयों का विरोध करना भी उनकी प्रसिद्धि का एक कारण बना पर यह विरोध कहां तक सार्थक था इसका अनुमान मात्र इस बात से लगाया जा सकता है कि मुम्बई के अलावा और कहीं भी उनका कोई खास प्रभाव नहीं रहा.
Read:मजदूर-किसान को कौन पूछता है यहां
क्या यह अपमान नहीं हुआ: अगर संविधान के आधार पर बात की जाए तो क्या राजकिय सम्मान के हकदार थे बाल ठाकरे? ना तो वो कभी भी सरकार में रहे और ना ही किसी ऐसे पद पर थे जहां उनके सम्मान में ये सब किया जाना चाहिए था. राष्ट्रीय ध्वज में क्या ऐसे ही व्यक्ति को श्रद्धांजलि देना जरूरी है जिसने हमेशा ही किसी न किसी बात पर लोगों के चर्चाओं में खुद को पाने के लिए ऐसे काम किये जो सामाजिक तौर पर बिल्कुल भी सही नहीं थे. हालांकि लोगों की आंखों के आंसू यह बताते हैं जैसे उनका कोई अभिन्न अंग उनसे अलग हो गया हो.
कुछ अनजाने तथ्य: बाल ठाकरे के बारे में कुछ बातें ऐसी भी हैं जो शायद उन्हें प्रसिद्ध करने में सहायक रही होंगी. उनकी समाज के हर एक व्यक्ति से सम्पर्क साधने की नीति उन्हें उस स्तर तक ले गई जो शायद किसी राजनेता को उसकी सत्ता भी ना ले जा सकती हो. कई बड़े सितारों से उनके खास संपर्क थे जैसे कि माइकल जैक्शन. उनके दफ्तर में शिवाजी के साथ-साथ अमिताभ बच्चन की भी तस्वीर लगी रही. कुल मिला-जुला कर यह कहा जा सकता है कि काफी सारे विवादों के बाद भी वो नायक बनने में सफल हुए.
Read More
Read Comments