अभी तक के रुझान यही बता रहे हैं कि पिछले 22 वर्षों से गुजरात की सत्ता पर काबिज भाजपा की सरकार प्रदेश में बनी रहेगी। इस बार का गुजरात चुनाव जबरदस्त सुर्खियों में रहा। इसकी वजह थी एक ओर राहुल गांधी का भाजपा और पीएम मोदी के खिलाफ मुखर होना और दूसरी ओर गुजरात के तीन नए युवा नेता। गुजरात में चुनाव की सरगर्मियों के बीच हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर युवा नेता के रूप में उभरकर सामने आए। इन तीनों में अल्पेश और जिग्नेश ने विधानसभा चुनाव लड़ा। वहीं, उम्र कम होने की वजह से हार्दिक खुद चुनावी मैदान में तो नहीं थे, लेकिन उन्होंने खुलकर कांग्रेस का समर्थन किया। चुनाव प्रचार और रैलियों में भी सक्रिय भूमिका निभाई। गुजरात का चुनाव परिणाम इन तीनों युवा नेताओं का राजनीतिक भविष्य तय करेगा। आइये आपको बताते हैं कि क्या रहा इस चुनाव में हार्दिक, जिग्नेश और अल्पेश फैक्टर।
अल्पेश ठाकोर
40 वर्षीय अल्पेश अहमदाबाद के एंडला गांव से ताल्लुक रखते हैं और गुजरात के OBC लीडर हैं। इन्होंने गुजरात क्षत्रिय-ठाकोर सेना के साथ मूवमेंट शुरू किया। समुदाय के लोगों को शराब की लत से मुक्ति दिलाना मकसद था। सामाजिक मंच OBC, SC, ST एकता मंच की स्थापना की। इसके जरिये अल्पेश ने इन समुदायों के लिए आरक्षण की आवाज उठाई। गुजरात की कुल आबादी में OBC लगभग 40 फीसदी हैं। गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 से ठीक पहले कांग्रेस पार्टी ज्वॉइन की। पाटन जिले की राधनपुर सीट से चुनाव लड़े। अल्पेश ने भाजपा के सोलंकी लाविंगी को करीब 13 हजार वोटों से हराया।
जिग्नेश मेवाणी
अहमदाबाद के रहने वाले जिग्नेश सामाजिक कार्यकर्ता और वकील हैं। गुजरात में दलितों के नेता के तौर पर उभरे। कथित गोरक्षकों द्वारा उना गांव में दलितों पर हमले के बाद विरोध में निकाली गई दलित अस्मिता यात्रा की अगुआई की। इस मार्च में महिलाओं समेत 20 हजार से ज्यादा दलितों ने हिस्सा लिया था। निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में गुजरात के बनासकांठा जिले की वडगाम-11 सीट से गुजरात विधानसभा का चुनाव लड़ा। यहां मुस्लिम और दलित वोटर्स का खास प्रभाव है। जिग्नेश ने करीब 20 हजार वोटों से जीत दर्ज की है।
हार्दिक पटेल
पाटीदार आरक्षण आंदोलन से उभरे हार्दिक पटेल ने अपना समर्थन कांग्रेस को दिया था। गुजरात चुनाव में 24 साल के हार्दिक पटेल की साख दाव पर थी। उन्हें गुजरात में केशुभाई के बाद पटेलों का विकल्प माना गया। हार्दिक ने खुद चुनाव तो नहीं लड़ा, लेकिन कांग्रेस का पुरजोर समर्थन किया। कांग्रेस के साथ उनकी मौजूदगी ने गुजरात की लड़ाई को बेहद दिलचस्प बना दिया। अब गुजरात में बीजेपी की सरकार बनने के बाद हार्दिक को अपना कद बचाए रखने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा। सबसे बड़ी चुनौती तो आरक्षण के लिए ‘पाटीदार अनामत आंदोलन समिति’ का खड़ा किया आंदोलन होगा। पाटीदारों में आरक्षण के मुद्दे पर अब पहले जैसा समर्थन हासिल करना हार्दिक के लिए काफी कठिन कार्य साबित हो सकता है…Next
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