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तख्ती लेकर गली-गली घूमकर चुनाव प्रचार कर रहा है 73 साल का यह उम्मीदवार, 24 बार देखा हार का मुंह

लोकसभा चुनाव 2019 में ऐसे कई किस्से सामने आए हैं, जिससे राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को नई-नई जानकारी मिली है। कहीं जीत-हार की माथापच्ची है, तो कहीं पर नेता जनता का दिल जीतने की कोशिशों में लगे हुए हैं। इन खबरों के बीच एक ऐसी दिलचस्प है पुणे से, जहां पर 73 साल के प्रकाश पिछले दो महीने से मुहल्ले में घूम-घूमकर अपने चुनाव प्रचार अभियान के लिए समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal22 Apr, 2019

 

 

 

इस बार भी लड़ रहे हैं चुनाव
प्रकाश कोंडेकर एक लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं जहां तीसरे चरण में 23 मई को वोटिंग होगी। वो निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि वो एक दिन भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे।

 

कौन हैं प्रकाश कोंडेकर
साल 1980 तक प्रकाश महाराष्ट्र के बिजली विभाग में काम करते थे। अब उन्हें अक्सर पुणे की गलियों में साइनबोर्ड लगी स्टील की एक गाड़ी धकेलते देखा जा सकता है। स्थानीय लोग बताते हैं कि पहले इस साइनबोर्ड पर 100 रुपये दान करने की अपील लगी होती थी, लेकिन आजकल इस बोर्ड पर ‘जूते को जिताएं’ लिखा रहता है। प्रकाश कोंडेकर का चुनाव चिह्न जूता है, जो उन्हें निर्वाचन आयोग ने दिया है।

 

 

 

अब सिर्फ 222 ही निर्दलीय नेता जीते हैं
प्रकाश उन सैकड़ों निर्दलीय प्रत्याशियों में शामिल हैं जो इस बार के लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं। 2014 के आम चुनाव में 3,000 स्वतंत्र उम्मीदवारों ने हिस्सा लिया था जिसमें से सिर्फ़ तीन लोग चुनाव जीते थे। साल 1957 का चुनाव ऐसा था जिसमें बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। इस चुनाव में 42 निर्दलीय उम्मीदवार बतौर सांसद चुने गए थे। साल 1952 में हुए पहले आम चुनाव के बाद से अब तक भारत में 44,962 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनावी समर में हिस्सा लिया है लेकिन इनमें से सिर्फ़ 222 को जीत हासिल हुई।

 

24 बार देखना पड़ा है हार का मुंह
प्रकाश कोंडेकर कहते हैं कि उन्हें अच्छी तरह पता है कि उनके जीतने की संभावना बहुत कम है। पिछले कई सालों में उन्होंने अपने चुनावी अभियान की ख़ातिर पैसे जुटाने के लिए अपने पुरखों की ज़मीन बेच दी। नामांकन भरते वक़्त प्रकाश ने अपने हलफ़नामे में जो जानकारी दी है, उसके मुताबिक़ उन्हें हर महीने 1,921 रुपये पेंशन मिलती है। कोंडेकर मानते हैं कि उनका चुनाव लड़ना अपने आप में सांकेतिक है लेकिन लगातार मिलने वाली हार के बावजूद वो उम्मीद छोड़ने को तैयार नहीं हैं।….Next

 

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