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चुनाव में जनता को कितना लुभा पाते हैं नारे, जानें आजादी के बाद से आज तक गूंजे कौन से नारे

चुनाव में नारों का भी बहुत बड़ा रोल है बल्कि सोशल मीडिया के इस दौर में तो चुनावी नारों का चर्चा का विषय बनते हुए देर नहीं लगती। चुनावी पार्टियां अपने वादे बेशक पूरा न करें लेकिन नारे ऐसे देना चाहती है, जिसकी चर्चा आम लोगों के बीच हो। कई वन लाइनर तो इतने दिलचस्प होते हैं कि पार्टियां चाहें चुनाव हार जाएं लेकिन उनके नारे हमेशा के लिए यादगार रह जाता है। नारों के जरिए मुद्दों को आसानी से वोटर के जेहन में उतार दिया जाता है। आइए, एक नजर ऐसे ही नारों पर।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal14 Mar, 2019

 

 

 

जनसंघ को वोट दो, बीड़ी पीना छोड़ दो, बीड़ी में तम्बाकू है, कांग्रेस वाला डाकू है
1967 के चुनाव में भारतीय जनसंघ पार्टी ने जनता को धूम्रपान और कांग्रेस दोनों से दूर रहने का नारा दिया था।

 

जय जवान, जय किसान
1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान मनोबल बढ़ाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का यह नारा, आगे कांग्रेस के चुनावी समर में भी खूब हिट हुआ।

 

समाजवादियों ने बांधी गांठ, पिछड़े पांव सौ में साठ
70 के दशक में सोशलिस्टों का यह नारा चुनावी राजनीति में बड़ा बदलाव लेकर आया। पहली बार जातीय आधार पर वोटरों का बड़ा बंटवारा हुआ और एक नया ओबीसी वोटर वर्ग खड़ा हुआ।

 

गरीबी हटाओ
1971 में इंदिरा गांधी के चुनावी अभियान को इस नारे ने ऐतिहासिक सफलता दिलाई और ‘इंदिरा इज इंडिया’ की जमीन तैयार की।

 

 

इंदिरा हटाओ, देश बचाओ
आपातकाल के जुल्म और आक्रोश के बीच विपक्ष ने इंदिरा के 1971 के नारे को ‘इंदिरा हटाओ’ में बदल दिया। इस नारे से केंद्र से कांग्रेस की सत्ता उखाड़ दी।

 

राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है
1989 में कांग्रेस का विजय रथ रोकने में सफल रहे विपक्ष की अगुवाई कर वीपी सिंह के लिए गढ़ा यह नारा खूब चर्चा में रहा। कांग्रेस ने भी जवाबी नारा गढ़ा ‘फकीर नहीं राजा है, सीआईए का बाजा है।’

 

मिले मुलायम-कांशीराम, हवा हो गए जय सिया राम
1993 के यूपी के विधानसभा चुनाव में राम लहर पर सवार बीजेपी को रोकने के लिए एसपी-बीएसपी ने गठबंधन किया। इसके साथ ही यह नारा भी अस्तित्व में आया। बीजेपी का विजय रथ रुक ही गया।

 

सबको देखा बारी-बारी, अबकी बारी अटल बिहारी
पहली बार बीजेपी को केंद्र की सत्ता में काबिज होने के चुनावी अभियान में इस नारे ने भी खूब असर दिखाया।

 

इंडिया शाइनिंग बनाम आम आदमी को क्या मिला
चुनाव में कॉरपोरेट और प्रबंधन फर्मों की एंट्री हुई और 2004 में अटल सरकार की दोबारा वापसी के लिए ‘इंडिया शाइनिंग’ गढ़ा गया लेकिन जनता को कांग्रेस का स्लोगन ‘आम आदमी को क्या मिला?’ अधिक समझ में आया।

 

 

अबकी बार मोदी सरकार
2014 लोकसभा चुनाव में इसी नारे के साथ भाजपा की सत्ता में वापसी हुई थी।

पांच साल केजरीवाल
आम आदमी पार्टी ने सत्ता में आने से पहले यही नारा देकर दिल्ली के वोटर्स को लुभाया था।…Next

 

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