1989 लोकसभा चुनाव में भारतीय राजनीतिक का एक ऐसा अध्याय देखने को मिला, जो हमेशा के लिए भारतीय इतिहास में दर्ज हो गया। इस चुनाव को राजनीतिक का एक नया युग कहा गया क्योंकि गठबंधन सरकारों का दौर इसी साल शुरू हुआ। 1989 का लोकसभा चुनाव कई मायनों में खास होने के साथ एक ऐसे व्यक्ति के लिए भी खास था जिन्हें भारतीय राजनीति का खास चेहरा माना जाता है। राजनीति में कभी बीजेपी युग लाने में अहम भूमिका वाले लालकृष्ण आडवाणी लोकसभा चुनाव 2019 के चुनाव में नहीं उतरेंगे। गुजरात की गांधीनगर लोकसभा सीट से लालकृष्ण आडवाणी के बजाय अमित शाह लड़ने वाले हैं, जिसकी वजह से आडवानी समर्थकों के बीच गहरी निराशा है। आडवाणी ने 1989 में अपना पहला लोकसभा चुनाव नई दिल्ली से लड़ा था, जिसमें उन्होंने जीत हासिल की थी। आइए, जानते हैं लालकृष्ण आडवाणी के पहले लोकसभा से जुड़ी खास बातें।
14 साल की उम्र में ज्वाइन किया था RSS
महज 14 साल की उम्र में आरएसएस से जुड़े आडवाणी को जनसंघ की स्थापना के बाद आरएसएस ने राजनीतिक क्षेत्र में भेजा था। श्याम सुंदर भंडारी के निजी सचिव के तौर पर राजनीति से जुड़ने वाले आडवाणी राजनीति का मुख्य स्तंभ रहे।
1989 में लालकृष्ण आडवाणी ने लड़ा था पहला लोकसभा चुनाव
आडवाणी ने 1989 में पहला लोकसभा चुनाव नई दिल्ली से लड़ा था और इस सीट से जीत हासिल की थी, इसके बाद उन्होंने 1991 में गांधीनगर का रुख किया और वहां से संसद पहुंचे। आडवाणी 1996 में गांधीनगर सीट से इस्तीफा देकर 1998 में क्लीन चिट मिलने पर ही वह मैदान में उतरे। इसके बाद वह 1999, 2004, 2009 और 2014 का चुनाव यहीं से जीतते रहे। अब इस सीट पर उनकी जगह अमित शाह लेंगे, जिन्होंने अपने शुरुआती दिनों में इस सीट पर चुनाव प्रबंधन का काम भी संभाला था। इस सीट को बीजेपी के लिए मजबूत बनाने में आडवाणी का नाम ही लिया जाता है।
आडवाणी का पहला लोकसभा चुनाव क्यों था खास
1984 में पार्टी को मिली करारी हार के बाद उसे देश में कांग्रेस के विकल्प के तौर पर खड़ी करने वाले लोगों में से प्रमुख रहे आडवाणी ने 90 के दशक में रथायात्रा निकालकर देश भर में चर्चा बटोरी थी। सोमनाथ से अयोध्या की उनकी रथयात्रा ही थी, जिसके चलते बीजेपी और वह समानांतर रूप से देश में बड़े होते गए। 1989 में हुए चुनाव को इसलिए भी खास मान माना जाता है क्योंकि इस चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था और गठबंधन सरकार का दौर इसी चुनाव से शुरू हुआ। बड़ी पार्टियां खासकर के कांग्रेस अपनी जमीन खो रही थी। मंडल और कमंडल की राजनीति जोर पकड़ रही थी। क्षेत्रीय पार्टियां तेजी से उभर रही थीं और इसके साथ ही गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ। इस नए दौर में क्षेत्रीय पार्टियों के सहयोग के बिना केंद्र में सरकार बनाना मुश्किल थ। वहीं, आडवाणी के नई दिल्ली सीट के जीतने से बीजेपी को काफी मजबूती मिली थी। 9वीं लोकसभा में कुल सीटें 529 थी, जिसमें इंडियन नेशनल कांग्रेस को 197, जनता दल 143 और भारतीय जनता पार्टी 85 सीटें मिली थी। 2009 में उन्हें पीएम उम्मीदवार भी चुना गया था।…Next
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