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जब महात्‍मा गांधी के अहिंसावादी होने पर उठे सवाल, ऐतिहासिक है घटना

देश को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले महत्‍मा गांधी की आज के दिन हत्‍या कर दी गई है। आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि है। वर्ष 1869 में पोरबंदर (गुजरात) में जन्मे महात्मा गांधी का वास्तविक नाम मोहनदास करमचंद गांधी था, लेकिन चंपारन सत्याग्रह आंदोलन के बाद रबिन्द्रनाथ टैगोर ने उन्‍हें ‘महात्मा’ की उपाधि से नवाजा, तभी से गांधी के साथ ‘महात्मा’ एक उपनाम की तरह जुड़ गया। उन्‍होंने अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए देश को आजाद कराने का पाठ पढ़ाया। मगर बहुत कम लोगों को पता कि एक बार उनके अहिंसावादी होने पर भी सवाल उठे थे। आइये उनकी पुण्‍यतिथि पर आपको बताते हैं उस घटना के बारे में, जब ऐसे सवाल उठे थे।


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भारत छोड़कर दक्षिण अफ्रीका में नौकरी करने का किया निश्चय

महात्मा गांधी ने शायद ही सोचा होगा कि उनके अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांत उन्हें उस मुकाम पर पहुंचाएंगे, जहां लोग उनके आदर्शों को अपने भीतर समाहित करने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पण कर देंगे। वर्ष 1888 में वकालत की पढ़ाई करने के लिए मोहनदास करमचंद गांधी इंग्लैंड गए, लेकिन जब वे बैरिस्टर बनने के बाद भारत लौटे, तो उन्हें यहां कहीं भी नौकरी नहीं मिली। यही वजह रही, जो उन्हें भारत छोड़कर दक्षिण अफ्रीका में नौकरी करने का निश्चय किया। उनके दक्षिण अफ्रीका जाने ने भारत की तस्वीर पूरी तरह पलटकर रख दी और भारतीयों को पता चला गुलामी की जकड़न कितनी कष्टकारी होती है।


mahatma gandhi


एक समय ऐसा आया, जब उनके अहिंसावाद के सिद्धांत पर पहुंचा आघात

दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति के खिलाफ अपना आंदोलन शुरू करने के बाद जब महात्मा गांधी भारत आए, तब यहां भी उन्होंने अपने आदर्शों को जन-जन के बीच पहुंचाकर आज हमें आजाद कहलवाने का अधिकार दिलवाया। महात्मा गांधी का पूरा जीवन एक उदाहरण साबित हुआ। उन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी हिंसा का साथ नहीं दिया। कभी हथियार नहीं उठाए और ना ही कभी किसी को गलत मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। मगर जिस तरह सभी के जीवन में उतार-चढ़ाव का दौर आता है, वैसे ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन में भी एक समय ऐसा आया था, जब उनके अहिंसावाद के सिद्धांत पर आघात पहुंचा था।


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भारतीयों को विश्व युद्ध में भाग लेने के लिए किया तैयार!

दरअसल, वर्ष 1914 में दक्षिण अफ्रीका से वापस आने के बाद गांधीजी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में पूरी तरह शामिल हो गए थे। अप्रैल 1918 में प्रथम विश्व युद्ध के आखिरी चरण में भारत के वायसराय ने महात्मा गांधी को दिल्ली में हुई वार कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए बुलाया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में साथ देने के बदले महात्मा गांधी से यह कहा गया कि वे भारतीयों को सेना की टुकड़ी में शामिल करने के लिए तैयार करें, ताकि विश्व युद्ध में शामिल अन्य महाशक्तियों का सामना किया जा सके। कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने वायसराय की यह बात मान ली और लड़ाकों को शामिल करने के लिए तैयार हो गए। गांधी जी जिस तरह भारतीयों को विश्व युद्ध में भाग लेने के लिए तैयार कर रहे थे, उससे उनके अहिंसावाद के सिद्धांत पर सवाल उठे थे…Next


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