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राष्ट्रपति चुनाव 2012: क्या हैं ममता मुलायम के दांवपेच !!

देश में महंगाई और भ्रष्टाचार लोगों के लिए रोज की नियति बनती जा रही है. महंगाई और भ्रष्टाचार से देश इतना जकड़ चुका है कि अगर कोई नया घोटाला या फिर किसी वस्तु की कीमत बढ़ती है तो लोग अब आश्चर्यचकित नहीं होते. अगर हम अर्थव्यवस्था की बात करें तो यह अपने बुरे दौर से गुजर रही है. विकास दर निरंतर नीचे की ओर लुढ़कता जा रहा है. डॉलर ने रुपए को पूरी तरह से गिरफ्त में कर लिया है. विदेशी निवेश के मामले में भारत विश्वास खोता जा रहा है.


ऐसे में भारत में 13वें राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर सत्ता पक्ष, विपक्ष और अन्य छोटे दलों के बीच गठजोड़ की राजनीति साफ तौर पर देखी जा सकती है. राष्ट्रपति चुनाव में जनता के आम मुद्दों को दरकिनार कर दिए जाते हैं. उनसे तो यह भी राय नहीं ली जाती है कि वह किस व्यक्ति को भावी राष्ट्रपति के रूप में देखना चाहते हैं. यहां तो उसकी राय को तवज्जो दी जाती है जिसके हाथ में बहुमत है. राष्ट्रपति पद के लिए संभवत: यह देश का पहला ऐसा चुनाव बन रहा है जिसमें सत्ता पक्ष और उसके समर्थक खेमे से हर कोई चाहता है कि रायसीना हिल पर उसकी पसंद का राष्ट्रपति हो.


इस बार छोटे दलों की बढ़ रही अहमियत ने उन्हें खास और राष्ट्रपति चुनाव को पेंचीदा बना दिया है. आमने-सामने की लड़ाई में सत्ता पक्ष को अपनी पसंद के उम्मीदवार को राष्ट्रपति बनाने के लिए साढ़े पांच लाख वोट की जरूरत है. लेकिन तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के अडियल रवैये ने उनकी आकांक्षा पर पानी फेर दिया है.


अपनी अहमियत को समझते हुए ममता बनर्जी और मुलायम सिंह यादव ने बुधवार को भावी राष्ट्रपति के नामों को लेकर चल रही अटकलों को एक नया मोड़ दे दिया. दोनों नेताओं ने दिल्ली में एक बैठक के बाद कांग्रेस की ओर से प्रस्तावित प्रणब मुखर्जी और हामिद अंसारी के नामों को खारिज करते हुए अपनी ओर से तीन नाम सुझाए. यह तीन नाम पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हैं जिनमें सबसे चौकाने वाला नाम प्रधानमंत्री का है.


सबका रखा ख्याल

ममता बनर्जी और मुलायम सिंह यादव द्वारा सुझाए गए तीन नामों को अगर देखा जाए तो उन्होंने सबकी पसंद का ख्याल रखा है. एक तरफ पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का नाम लेकर समाजवादी पार्टी का मनोरथ साफ हो गया जिसमें पहले उन्हीं के पार्टी के एक बड़े सदस्य ने उनके नाम को सुझाया था. दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी की पहली पसंद भी हैं एपीजे अब्दुल कलाम. पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी का नाम राजनीति दृष्टि से तृणमूल कांग्रेस के लिए फायदेमंद हो सकता है. लेकिन मनमोहन सिंह का नाम सबको हैरान करता है क्योंकि प्रणब मुखर्जी और हामिद अंसारी कांग्रेस की पसंद थे लेकिन मनमोहन तो उनमें कहीं शामिल ही नहीं होते.


ममता का प्रभाव

सुझाए गए तीन नामों में ममता का प्रभाव साफ तौर पर दिखता है. कांग्रेस की ओर से प्रस्तावित प्रणब मुखर्जी का नाम ममता बनर्जी के लिए सिरदर्दी बन सकता है. क्योकि एक तो वह कांग्रेस से जुड़े हुए हैं दूसरे वह पश्चिम बंगाल के एक वरिष्ठ नेता हैं और सबको पता है कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के बीच किस तरह का मनमुटाव चल रहा है. इसके अलावा ममता ने पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और माकपा से निष्कासित सदस्य सोमनाथ चटर्जी के नाम पर मोहर लगाकर माकपा को तमाचा मारा. राष्ट्रपति कौन बनेगा यह तो 22 जुलाई को साफ हो ही जाएगा लेकिन इस राष्ट्रपति चुनाव को लेकर जो गहमागहमी चल रही है वह काफी दिलचस्प है.


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