राजनीति का एक बहुत बड़ा सच यह है कि एक पार्टी को दूसरी पार्टी की जरूरत है और राजनेताओं का सबसे बड़ा सच यह है कि उन्हें अपनी सत्ता से बेहद प्यार है. सत्ता से बेहद प्यार करने वाले राजनेता अपनी सत्ता को हासिल करने के लिए या फिर बनाए रखने के लिए अपनी विरोधी पार्टी को भी समर्थन दे सकते हैं और समर्थन वापस भी ले सकते हैं. कहते हैं कि मजबूरी व्यक्ति से कुछ भी करा सकती है और ऐसी ही मजबूरी में इन दिनों मायावती(Mayawati)फंसी हुई हैं. न्यूज चैनलों से लेकर अखबारों तक में यह दिखाया जा रहा है कि मायावती(Mayawati) अपने पत्तों का राज कब खोलेंगी या फिर मायावती(Mayawati)यूपीए को समर्थन देंगी या नहीं. पर सच तो यह है कि जब कोई राज ही नहीं है तो फिर किस राज के खुलासे की बात की जा रही है.
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यूपीए सरकार हाल ही में केंद्रीय कानून और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री सलमान खुर्शीद के स्टिंग ऑपरेशन “ऑपरेशन धृतराष्ट्र” के कारण घोटाले के विवाद से घिरी हुई है और ‘मंदिर से अहम टॉयलेट’ बताने वाले केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश का विवाद भी अब यूपीए गठबंधन को चैन की सांस नहीं लेने दे रहा है. इसके साथ ही अरविंद केजरीवाल भी सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर आरोप लगाने में लगे हैं. ऐसे समय में यूपीए गठबंधन की परेशानियां बढ़ती चली जा रही हैं. इस समय यूपीए गठबंधन की मजबूरी है कि यूपीए गठबंधन को बाहर से समर्थन दे रही मायावती की पार्टी बसपा से सहयोग बनाए रखे पर सच तो यह है कि राजनीति में कोई भी इस बात से अज्ञात नहीं है कि एक पार्टी की कमजोरी दूसरी पार्टी की ताकत हो सकती है या फिर दो पार्टियों की कमजोरी मिलकर एक ताकत बन सकती है.
उत्तर प्रदेश में अपना राज चलाने वाली मायावती(Mayawati) के लिए यह समय मजबूरी का समय है क्योंकि ना तो मायावती(Mayawati)के हाथ में उत्तर प्रदेश की सत्ता रही है और ना ही अब मायावती(Mayawati) का वर्चस्व नजर आता है. कांशीराम की याद का बहाना करके एक पार्क में 700 करोड़ लगाने वाली मायावती उत्तर प्रदेश में गरीबी के लिए रोती हैं तो क्यों नहीं 700 करोड़ रुपए गरीबों के भोजन के लिए खर्च करें? मायावती के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाले से कौन नहीं परिचित है. बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती(Mayawati) के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने रोक रखी है. क्यों नहीं इस जांच में तेजी दिखाई जा रही है? ये सब माया यूपीए गठबंधन को समर्थ देने की है. मायावती(Mayawati) इस बात को भली प्रकार जानती हैं कि जिस दिन उन्होंने यूपीए गठबंधन से अपना समर्थन वापस ले लिया तो उनके घोटालों के सारे पत्ते खुल जाएंगे और फिर उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी बसपा की सत्ता वापस लाना टेढ़ी खीर हो जाएगी.
मायावती(Mayawati) का ऐसा समय है कि अब उन्हें यूपीए गठबंधन को मजबूरी में ही सही पर समर्थन देना होगा और मायावती(Mayawati) की मजबूरी इस कदर है कि यूपीए की जिन खराब नीतियों की आलोचना आम जनता कर रही है वह उन नीतियों की आलोचना भी नहीं कर सकती हैं. राजनीति के जानकार माया के फैसले को मुलायम सिंह के निर्णय से जोड़कर देख रहे हैं. उत्तर प्रदेश की राजनीति में माया के प्रतिद्वंद्वी मुलायम पहले ही सरकार को समर्थन जारी रखने की घोषणा कर चुके हैं. ऐसे में माया के पास मोहलत लेने के अलावा कोई और चारा भी नहीं था. चाहे मायावती ने यूपीए गठबंधन को समर्थन देने का निर्णय करने के लिए यूपीए से वक्त मांगा हो पर सच तो यही है कि यूपीए भी भली प्रकार जानती है कि माया को हमारी जरूरत है और हमें माया की जरूरत है.
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