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आज के दिन ही हुई थी महात्मा गांधी के हत्यारे को फांसी, नथ पहनने की वजह से नाम पड़ा था ‘नाथूराम’

वो तीन गोलियां जिसने पूरे देश को हिला दिया था। वो दिन था 30 जनवरी 1948, जब शाम पांच बजकर पंद्रह मिनट पर जब गांधी लगभग भागते हुए बिरला हाउस के प्रार्थना स्थल की तरफ़ बढ़ रहे थे, तो उनके स्टाफ़ के एक सदस्य गुरबचन सिंह ने अपनी घड़ी की तरफ़ देखते हुए कहा था, ‘बापू आज आपको थोड़ी देर हो गई।’ गांधी ने चलते-चलते ही हंसते हुए जवाब दिया था, ‘जो लोग देर करते हैं उन्हें सजा मिलती है।’ दो मिनट बाद ही नाथूराम गोडसे ने अपनी बेरेटा पिस्टल की तीन गोलियां महात्मा गांधी के सीने में उतार दी।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal15 Nov, 2018

 

 

 

The Life of Mahatma Gandhi किताब में बापू की मौत के बाद देश का क्या मंजर था, इस बारे में कुछ ऐसे किस्से लिखे हुए हैं, जिसे पढ़कर महात्मा गांधी की हत्या से उपजे दुख और गुस्से का अंदाजा लगाया जा सकता है। उस रोज भी मानवता जल गई थी, जब महात्मा गांधी नाथूराम गोडसे ने गोली मारी थी। आज के दिन नाथूराम को फांसी की सजा दी गई थी। आइए, जानते हैं नाथूराम के बारे खास बातें।

 

 

ऐसे पड़ा नाथूराम नाम
नाथूराम गोडसे के पिता विनायक गोडसे भारतीय डाक सेवा में एक छोटे पद पर थे। गोडसे के पिता ने 1892 में दस साल की चितपावन ब्राह्मण समुदाय की लड़की से शादी की थी। इन दोनों की पहली तीन संतानें बचपन में ही चल बसीं। उनमें से सिर्फ इनकी दूसरी संतान जो कि एक लड़की थी, वही जीवित बची। इस घटना के बाद विनायक गोडसे के परिवार ने एक ज्योतिषी से सलाह ली। ज्योतिषी ने बताया कि ये घटनाएं एक ‘शाप’ के प्रभाव से हो रही हैं। इस ‘शाप’ का प्रभाव खत्म करने का सिर्फ एक ही तरीका है, ‘आप अपनी अगली संतान का पालन-पोषण लड़की की तरह करें। ‘ नाथूराम के मां-बाप ने इसके लिए सारे धार्मिक अनुष्ठान किए। उन्होंने मनौती मानी कि जन्म के बाद वो लड़के के बाएं नथुने को छिदवाएंगे और उसमें नथ भी पहनाएंगे। एक लड़का इसके बाद 19 मई, 1910 को पैदा हुआ। जैसे ही बच्चा पैदा हुआ, मनौती के अनुसार उसकी नाक छिदवाकर नाक में नथ पहना दी गई। इस तरह से इस नथ पहनने वाले लड़के का नाम नाथूराम पड़ा। आगे जब बच्चे जिंदा रहने लगे तो नथ तो निकाल दी गई पर नाम नाथूराम ही रहा। नाथूराम के तीन भाई और दो बहनें थीं।

 

 

 

 

बंटवारे की वजह से मन में घर गई नफरत

देश के बंटवारे के बाद नाथूराम गोडसे के मन में गांधी के प्रति कटुता बढ़ती चली गई और फिर वह 1937 में वीर सावरकर से जुड़ा और उन्हें अपना गुरु मान लिया। जब देश में बंटवारे की तैयारी शुरू हुई तो गोडसे और उसके साथी इसके विरोध में उतर आए। 3 जुलाई 1947 को गोडसे, उसके साथियों और तमाम हिंदूवादी नेताओं ने शोक दिवस मनाया।

 

 

 

हत्या करने से पहले छुए थे महात्मा गांधी के पैर
नाथूराम गोडसे का मानना था कि भारत के विभाजन और उस समय हुई साम्प्रदायिक हिंसा में लाखों हिन्दुेओं की हत्या के लिए महात्मा गांधी जिम्मेदार थे।  गोडसे ने दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में बापू की हत्या की थी। 30 जनवरी 1948 की शाम नाथूराम गोडसे बापू के पैर छूने बहाने झुका और फिर बैरेटा पिस्तौल से तीन गोलियां दाग कर उनकी हत्या कर दी थी…Next

(गांधी मर्डर ट्रायल, Nathuram Godse – The Story Of An Assassin किताबों पर आधारित)

 

 

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