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वो नेता जिसे तमाम अड़चनों के बाद भी कोई राष्ट्रपति बनने से रोक नहीं पाया, जानिए छठे राष्ट्रपति चुनाव का ऐतिहासिक घटनाक्रम

 

Rizwan Noor Khan
Rizwan Noor Khan1 Jun, 2020

भारत के छठे राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को राजनीति में रिकॉर्ड बनाने के लिए याद किया जाता है। वह सबसे युवा सीएम और राष्ट्रपति बनने का दर्जा रखते हैं। हालांकि, उनका राजीनतिक जीवन काफी उठापटक भरा माना जाता है। उनके राष्ट्रपति बनने की घटना भी बेहद रोमांचक है। जब वह पहली बार सबसे कम उम्र में देश के राष्ट्रपति बनने वाले थे तो उनकी ही पार्टी के दिग्गज नेता रोड़ा बन गए। एक जून को नीलम संजीव रेड्डी की पुण्यतिथि है। आइये जानते हैं उनके जीवन के रोचक किस्सों के बारे में।

 

 

 

 

स्वतंत्रता आंदोलन, जेल और नेतागिरी
आंध्र प्रदेश में अनंतपुरम के सामान्य परिवार में 19 मई 1913 को जन्मे नीलम संजीव रेड्डी बचपन से ही नेतृत्व क्षमता के धनी थे। कॉलेज के दिनों में जब संजीव नीलम रेड्डी 18 साल के थे तब महात्मा गांधी से इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़कर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में कूद पड़े। संजीव को अंग्रेजों ने पकड़कर जेल में भी बंद कर दिया था। जब वह बाहर निकले तो नेता बनकर उभर गए और कांग्रेस की सदस्यता ले ली।

 

 

 

इस्तीफा दिया तो ताकतवर बनकर उभरे
नीलम संजीव रेड्डी पहली बार आंध्र प्रदेश में कुमारस्वामी राजा की सरकार में मंत्री बनाए गए। वह प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस बीच उनके बेटे की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई तो वह निराश हो गए और राजनीति त्यागने के इरादे से त्यागपत्र दे दिया। दिग्गज नेता रहे संजीव को कांग्रेस आलकमान ने किसी तरह मना लिया। इसके साथ ही वह पार्टी में और भी ताकतवर बनकर उभरे।

 

 

 

 

आंध्र के पहले सीएम और देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री
आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के सबसे बड़े लीडर बन चुके संजीव रेड्डी साल 1956 में गठित आंध्र प्रदेश के वह पहले मुख्यमंत्री चुने गए। प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री बनने का गौरव भी हासिल किया। संजीव जब पहली बार सीएम बने तब उनकी उम्र मात्र 43 साल थी। इस तरह देश के सबसे युवा सीएम का ​कीर्तिमान रचने वाले वह पहले नेता बने।

 

 

 

 

राष्ट्रपति पद के लिए नामित हुए तो हो गया ‘बवाल’
आंध्र प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे संजीव रेड्डी केंद्र सरकार में कई बार मंत्री बने। उन्हें 1967 में लोकसभा का स्पीकर भी बनाया गया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 1969 में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। अचानक राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद राष्ट्रपति पद खाली हो गया। इस बीच कांग्रेस संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष के लिए इंदिरा गांधी ने बाबू जगजीवन राम को नामित किया तो बाकी नेताओं ने नीलम संजीव रेड्डी का नाम आगे कर दिया। इस घटना ने कांग्रेस के दोफाड़ होने का रास्ता बना दिया।

 

 

 

 

 

राष्ट्रपति चुनाव में वी​वी गिरी से ठनी
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 1969 में राष्ट्रपति पद के दौरान हुए घटनाक्रम को एक इंटरव्यू में बताया है। उनके अनुसार राष्ट्रीय कार्यसमिति के नेताओं के 10 वोटों में से 6 वोट नीलम संजीव रेड्डी पाकर कांग्रेस संसदीय दल के अध्यक्ष बने। इसके साथ ही वह राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार भी हो गए। राष्ट्रपति बनने की चाह रखने वाले तत्कालीन उपराष्ट्रपति वीवी गिरी नाराज हो गए। वह राष्ट्रपति पद के लिए निर्दलीय खड़े हो गए। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वीवी गिरी का समर्थन किया। इस चुनाव में नलीम संजीव रेड्डी हार गए और वीवी गिरी राष्ट्रपति बने। इसके बाद कांग्रेस दो हिस्सों कांग्रेस ओ और कांग्रेस आर में बंट गई।

 

 

 

 

 

देश के पहले निर्विरोध और सबसे कम उम्र के राष्ट्रपति बने
राष्ट्रपति चुनाव में वीवी गिरी के जीतने पर और लोकसभा चुनाव में अपनी हार से निराश संजीव रेड्डी ने राजनीति से दूरी बना ली और खेती किसानी में जुट गए। 1975 में नीलम संजीव रेड्डी जय प्रकाश नारायण के मनाने पर राजनीति में लौटै और 6ठे लोकसभा चुनाव में भारी अंतर से जीत हासिल की। इसके बाद 1977 में संजीव रेड्डी लोकसभा के स्पीकर नियुक्त किए गए। इसके दो साल बाद ही उन्हें सर्वसम्मति से निर्विरोध राष्ट्रपति चुन लिया गया। संजीव 64 बरस की उम्र में देश के 6ठे राष्ट्रपति चुने गए। सबसे कम उम्र के राष्ट्रपति होने का गौरव भी संजीव रेड्डी को हासिल हुआ।…NEXT

 

 

 

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