नरेंद्र मोदी को खरी-खोटी सुनाने के बाद नीतीश कुमार और भाजपा के बीच जिस शीत युद्ध की शुरुआत हुई थी वह वक्त के साथ-साथ और अधिक बढ़ती जा रही है. हाल ही में जदयू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक के दौरान अपने भाषण में जदयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुजरात के मॉडल और प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी की दावेदारी को खारिज करते हुए उन्हें गुजरात दंगों का दोषी ठहराते हुए एक सांप्रदायिक नेता बताया था, जिसके बाद भाजपा की ओर से नीतीश कुमार का विरोध शुरू हो गया था. भाजपा की प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी का कहना है कि गुजरात दंगों के जिम्मेदार नरेंद्र मोदी नहीं बल्कि नीतीश कुमार हैं क्योंकि नीतीश उस समय रेल मंत्री थे और उनके रेल मंत्री पद पर रहते हुए साबरमती एक्सप्रेस में आग लगाई गई जिसमें कई बेगुनाहों की जानें गईं. अगर नीतीश कुमार उस समय यह घटना रोक देते तो गुजरात दंगे, जो कि इस घटना की प्रतिक्रिया थे, होने का सवाल ही पैदा नहीं होता.
भाजपा पहले ही यह साफ कर चुकी है कि नरेंद्र मोदी का सम्मान पार्टी के साथ जुड़ा हुआ है इसीलिए अगर कोई नरेंद्र मोदी की छवि खराब करने की कोशिश करता है तो उसे बक्शा नहीं जाएगा. किसी भी हाल में घुटने ना टेकने का संकेत देते हुए भाजपा जदयू को गठबंधन से बाहर जाने का भी रास्ता दिखा चुकी है, इसीलिए यह स्पष्ट हो चुका है कि नीतीश कुमार की धमकियों का असर भाजपा की सेहत खराब नहीं कर सकता.
राष्ट्रीय परिषद की बैठक के दौरान नरेंद्र मोदी पर हमला कर नीतीश कुमार ने अपने संबंध भाजपा के नेतृत्व वाले राजग गठबंधन से खराब कर लिए हैं. नीतीश के बयानों से नाराज बीजेपी ने बिहार के मुख्यमंत्री पर जवाबी हमला करते हुए इस बात के संकेत दिए हैं कि वह बिहार में सरकार से अलग हो सकती है. सूत्रों की मानें तो बीजेपी अगले महीने होने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनावों के बाद बिहार में नीतीश मोदी की नेतृत्व वाली सरकार से खुद को अलग कर सकती है.
लेकिन हालातों का बिगड़ना 17 साल पुराने साथी को पटखनी देने के साथ ही नहीं थम रहा क्योंकि अब भाजपा के अंदर से भी मोदी के विरोध में स्वर सुनाई दे रहे हैं. नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी को नकारने वालों में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है. शिवराज सिंह चौहान के अलावा भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा और जसवंत सिंह भी मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार मानने जैसी बात को नकार रहे हैं, जबकि तीनों ही नेता इस बात पर एकमत हैं कि जब लालकृष्ण आडवाणी जैसे वरिष्ठ और प्रधानमंत्री पद के लिए योग्य नेता भाजपा में मौजूद हैं तो किसी और नाम पर विचार करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता.
शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि लालकृष्ण आडवाणी का कद पार्टी में सबसे बड़ा है इसीलिए जब तक वह पार्टी और सरकार का नेतृत्व करने के लिए उपलब्ध हैं तो किसी और को उम्मीदवार बनाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. सिर्फ भाजपा ही नहीं बल्कि राजग के अन्य घटक दल, शिवसेना और अकाली दल, भी आडवाणी को अपना उम्मीदवार बनाने के समर्थन में हैं.
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