हालिया घटनाक्रम में केंद्र सरकार ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बहुप्रतीक्षित मांग को आंशिक रूप से मानते हुए 12 हजार करोड़ की राशि पिछ्ड़े राज्य के आधार पर आवंटित करने की घोषणा की. केंद्र सरकार द्वारा लोक सभा चुनाव की आहट के बीच नीतीश कुमार की मांग को इस प्रकार से मान लेने के कई राजनीतिक निहितार्थ तलाशे जाने लगे हैं. 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत ‘बैकवर्ड रीजन ग्रांट फंड’ के रूप में बिहार को यह राशि पांच किश्तों में मिलेगी. हालांकि केंद्र सरकार ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा ना देते हुए इसे पिछड़े राज्य के अंतर्गत राशि का आवंटन किया है, लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव के लिये यूपीए सरकार की यह घोषणा काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है.
गौरतलब है कि नीतीश कुमार ने वर्ष 2012 में योजना आयोग को सौंपी 57344 करोड़ राशि की योजनाओं के कार्यान्वयन के लिये 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत केंद्र से 20 हजार करोड़ की राशि की मांग की थी. पिछ्ले दिनों नीतीश बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की अपनी मांग के साथ अधिकार रैली लेकर दिल्ली भी आए थे. उन्होंने केंद्र सरकार पर बिहार की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए विशेष राज्य का दर्ज़ा मिलना उसका हक बताया था. तब यूपीए सरकार ने उनके आरोपों का खंडन करते हुए कहा था कि यूपीए सरकार ने कांग्रेस शासित राज्यों से ज्यादा राशि बिहार को आवंटित की है.
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किंतु अब जब एनडीए में आपसी फूट पड़ी हुई है तथा जद(यू) और भाजपा के मोदी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को लेकर घमासान छिड़ा हुआ है तो ऐसे में यूपीए सरकार का यह फैसला विवादों के घेरे में आ गया है तथा राजनैतिक विश्लेषक इसका आंकलन करने में जुट गए हैं. इस मसले पर यूपीए सरकार का कहना है कि यह राज्य हित में लिया गया फैसला है और इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिये. लेकिन यहां यह प्रसंग उठना लाजिमी है कि आखिर क्यों केंद्र का यह फैसला लोकसभा चुनाव की नजदीकी के बाद आया है?
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गैरतलब है कि कुछ समय पूर्व नीतीश कुमार का बयान आया था कि जो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगा अगले लोकसभा चुनाव में जद(यू) उसे ही समर्थन देगा. मोदी के प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल होने और आगामी लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के लिये उनकी प्रबल दावेदारी के मुद्दे पर भाजपा और जेडी(यू) में चल रहे विवादों से एनडीए गठबंधन लगभग टूटने के कगार पर है. आए दिन दोनों पार्टियों की एक-दूसरे पर कटाक्ष और बयानबाजी से यह लगभग साफ हो गया है कि अगले चुनाव तक यह गठबंधन आखिरी सांसें ले चुका होगा. यूपीए गठबंधन के भी लगभग यही हालात हैं. केंद्र सरकार से डीएमके का समर्थन वापस लेने से इस पर भी अविश्वास प्रस्ताव आने और सरकार गिरने का खतरा मंडरा रहा है. क्योंकि जदयू के पास लोकसभा में 20 सांसद हैं तो इसे विश्वास में लेना यूपीए सरकार के लिये दोनों तरह से मुनाफे का सौदा है. अगर अविश्वास प्रस्ताव आता है तो भी जदयू के 20 सांसद सरकार के अंगरक्षक बन सकते हैं और अगर ऐसी कोई दुर्घटना नहीं भी घटी तो अगले लोकसभा चुनाव में जद(यू) का समर्थन सरकार बनाने का समीकरण यूपीए के पक्ष में करने में अहम भूमिका निभा सकती है. अतः बिहार को पिछ्ड़े राज्य का दर्जा देकर 12 हजार करोड़ रुपयों के आवंटन में बिहार की दशा और दिशा सुधारने की मंशा कम, अगले लोकसभा चुनाव के नये गठबंधनों की पहल ज्यादा लग रही है. अगले चुनाव के लिए नये गठबंधन बनने लगभग तय हैं जिसके जोड़-तोड़ की प्रक्रिया अभी से शुरू हो गयी है.
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